बंगाल के महान क्रांतिकारियों में से एक महर्षि अरविंद की जंयंती पर पीएम मोदी ने उन्हें याद किया. उन्होंने ट्वीट कर कहा "आज श्री अरविन्द घोष की जयंती है. उनके पास एक शानदार दिमाग था. हमारे देश के लिए उनकी स्पष्ट दृष्टि थी. शिक्षा, बौद्धिक कौशल और वीरता पर उनका जोर हमें प्रेरित करता रहता है. पुडुचेरी और तमिलनाडु में उनके साथ जुड़े स्थानों की अपनी यात्राओं की कुछ तस्वीरें साझा कर रहा हूं."

अरविंद घोष देश की आध्यात्मिक क्रां‍ति की पहली चिंगारी थे. उनका जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ था और 5 दिसंबर 1950 को उनका पांडुचेरी में निधन हो गया था. सन् 1906 में जब बंग-भंग का आंदोलन चल रहा था तो उन्होंने बड़ौदा से कलकत्ता की ओर प्रस्थान कर दिया. इस दौरान उन्होंने 1906 में नौकरी से त्यागपत्र देकर 'वंदे मातरम्' साप्ताहिक के सहसंपादन के रूप मे कार्य प्रारंभ किया और सरकार के अन्याय के खिलाफ जोरदार आलोचना की. वंदे मातरम्' में ब्रिटीश के खिलाफ लिखने के वजह से उनके उपर मामला दर्ज किया गया, लेकिन वो छुट गए.

अरविंद एक महान योगी और दार्शनिक थे. उनका पूरे विश्व में दर्शनशास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा है. उन्होंने जहां वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों पर टीका लिखी, वहीं योग साधना पर मौलिक ग्रंथ लिखे. खासकर उन्होंने डार्विन जैसे जीव वैज्ञानिकों के सिद्धांत से आगे चेतना के विकास की एक कहानी लिखी और समझाया कि किस तरह धरती पर जीवन का विकास हुआ. वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के 'विकासवादी सिद्धांत' की उनके काल में पूरे यूरोप में धूम रही थी.

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