कलयुग में श्रवण कुमार का दूसरा रूप सामने आया है. कैलाश गिरी ब्रह्मचारी अपनी अंधी मां को कंधे पर बिठाकर चार धाम की यात्रा करा रहे हैं. कैलाश गिरी पिछले 20 साल से डोली के सहारे पैदल चल कर अपनी मां की मनोकामना पूरी कर रहे हैं. आज के जमाने में लोग शादी के बाद अपने मां बाप को वृद्धाश्रम भेज देते हैं. ऐसे बेटों के मुंह पर कैलाश गिरी ने जोरदार तमाचा मारा है. दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम ही हैं जो अपने मां बाप की सेवा करते हैं. कैलाश अपनी बूढ़ी मां को उठाकर अब तक 37000 किलोमीटर पैदल चल चुके हैं. उन्होंने जब इस यात्रा की शुरुआत की थी तब वो 25 साल के थे. अब उनकी उम्र 50 साल से भी ज्यादा हो चुकी है. पिछले 50 साल से कैलाश जी जान से अपनी मां की सेवा में जुटे हुए हैं.
आज के दौर में मां बाप जब बच्चों पर बोझ बन जाते हैं उनकी कमाई बंद हो जाती है तो बच्चे उन्हें पुराने सामान की तरह अपनी जिंदगी से निकाल फेंकते हैं. लेकिन कैलाश गिरी ने अपनी अंधी बूढ़ी मां को कभी भी बोझ नहीं समझा. बल्कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और अपनी जिम्मेदारी को बहुत ही अच्छी तरह से निभा रहे हैं. सफर के दौरान कैलाश को दान में लोगों से जो भी मिलता है उसी से वो खाना बनाते हैं और अपनी मां को खिलाते हैं. आपको बता दें कि कैलाश ब्रह्मचारी रोजाना 5 से 7 किलोमीटर पैदल चलते हैं.
कैलाश ब्रह्मचारी अब तक अपनी मां को चार धाम (बद्रीनाथ, द्वारिका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम) की यात्रा के अलावा गंगासागर, तिरुपति बालाजी, ऋषिकेश, हरिद्वार, केदारनाथ, अयोध्या, चित्रकूट, पुष्कर और इलाहाबाद जैसे पवित्र तीर्थों की यात्रा करवा चुके हैं. बता दें कि कैलाश ने साल 2016 में अपनी यात्रा का समापन ब्रज भूमि में किया और पूरे 20 साल बाद अपने शहर जबलपुर पहुंचे थे.