काशी विश्वनाथ, जहां साक्षात बसते हैं 'देवो के देव महादेव'
1983 के बाद से, इस मंदिर की व्यवस्था उत्तरप्रदेश की सरकार द्वारा की जा रही है
"अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चंडाल का.... काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का" !! ॐ नम: शिवाय !! भगवान शंकर या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं. महादेव के बहुत रूप व नाम हैं और हर नाम की अपनी महिमा है. उसी तरह से भारत में भगवान शिव के कई ऐसे मंदिर हैं जहां दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते है. काशी विश्वनाथ का दौरा आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, गोस्वामी तुलसीदास, स्वामी दयानन्द सरस्वती और गुरुनानक भी कर चुके हैं. हम बात करेंगे कशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में, जिसका नाम तो आपने कई बार सुना होगा लेकिन इससे जुड़ी कई ऐसी खास चीज जो शायद ही आपको पता होगी.
शिव के त्रिशूल पर विराजमान है काशी नगरी
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर स्थित है. भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में काशी विश्वनाथ मंदिर का नाम शुमार है. मंदिर गंगा नदी के तट पर है. यहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजे हैं. यह भी कहा जाता है कि काशी नगरी देवादिदेव महादेव की त्रिशूल पर बसी है. महादेव के इस पावन धाम को धर्मग्रन्थों और पुराणों में मोक्ष की नगरी के नाम से उल्लेख किया गया है.
बाबा के धाम में पूरी होती है हर मुराद
वाराणसी में जब आप दर्शन करने पहुंचेंगे तो आपको यह अंदाजा लग जाएगा की महादेव के दरबार में देश से ही नहीं विदेश से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं. जहां एक तरफ भोलेनाथ का दुर्लभ दर्शन करने का मौका मिलता है तो वहीं दूसरी तरफ मां गंगा में स्नान मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं. इस पवित्र नगरी में सावन के महीने में बड़ी संख्या में शिव भक्त आते हैं. कहा जाता है की जो भी श्रद्धालु शिव जी के इस ज्योतिर्लिंग को सावन के महीने में सोमवार के दिन जलाभिषेक करता है महादेव उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. आज भी साल के 12 महीने यहां भक्तों तांता लगा रहता है.
मंदिर का इतिहास
इतिहास काल में कई बार काशी विश्वनाथ मंदिर को नष्ट किया गया. जिसमें औरंगजेब का नाम भी शामिल है. लेकिन उसके बाद फिर इसका दुबारा निर्माण किया गया. नवीनतम संरचना जो आज यहां दिखाई देती है वह 18वीं शताब्दी में बनाई गई थी. कहा जाता है कि एक बार इंदौर की रानी अहिल्या बाई होलकर को भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन दिया और उसके बाद अहिल्याबाई बाई ने 1777 में मंदिर की निर्मित कराई थी. 1983 के बाद से, इस मंदिर की व्यवस्था उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा की जा रही है.