World Day Against Child Labour 2019: कड़े कानून के बावजूद भारत में आज भी कई जगह 'बाल श्रम'
युनिसेफ के अनुसार कल-कारखानों पर लगाम कसने के बाद अब आम कल-कारखानों में बाल श्रमिकों की संख्या में गिरावट आई है, लेकिन पटाखा फैक्टरियों जैसे खतरनाक जगहों पर भारी आज भी संख्या में बाल मजदूरी काम करते हैं
आज के बच्चे आनेवाले कल में वृक्ष बनकर राष्ट्र के कर्णधार बनते हैं. लेकिन तब जब उनकी परवरिश, उनके खानपान, उनकी शिक्षा आदि पर विशेष ध्यान दिया जाए. बच्चों के खुशहाल जीवन में ही परिवार की खुशी छिपी होती है. हर इंसान की जिंदगी में बालपन वह पल होता है, जब खेल-खेल में वह आने वाले कल का जिम्मेदार नागरिक बनने की दिशा में कुछ सीखने का प्रयास करता है.
लेकिन यह त्रासदी का विषय है कि केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के अधिकांश बच्चों का वह बालपन छीन लिया जाता है. और उन्हें पेट भरने के लिए दो जून की रोटी के चक्रव्यूह में फंसा दिया जाता है. ऐसे बेबस बच्चों से राष्ट्र क्या उम्मीद लगा सकता है.
विकासशील भारत का एक पहलू यह भी
यह दुर्भाग्य की ही बात है कि संविधान में बाल मजदूरी निषेध पर कड़ा कानून होने के बावजूद दुनिया भर में सबसे ज्यादा बाल मजदूरी भारत में ही देखने को मिलती है. आज विकासशील देशों की होड़ में सबसे आगे होने के बावजूद भारत की सबसे बड़ी और अहम समस्या है बाल मजदूरी. हमारे यहां तमाम ऐसे सेक्टर मिलेंगे जहां 14 वर्ष की आयु से भी कम के बच्चों से काम कराया जाता है. इनमें अधिकांश कार्य उनकी नाजुक एवं मासूम उम्र को देखते हुए काफी नुकसानदेह होते हैं. जो उम्र उनके खेलने-कूदने एवं शिक्षा हासिल करने के दिन होते हैं, तब उऩ्हें हालातवश काम करने के लिए मजबूर किया जाता है अथवा दो जून की रोटी के लिए काम करने को मजबूर होना पड़ता है. इस वजह से वे स्कूली शिक्षा से तो वंचित होते ही हैं, साथ ही उनका भविष्य तेजी से अंधी गलियों की ओर बढ़ने लगता है. किसी भी बच्चे के लिए यह नैतिक, सामाजिक, शारीरिक अथवा सामाजिक रूप से हानिकारक होता है.
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बढ़ते बाल श्रमिकों की संख्या के कारण
बाल श्रम का मुख्य कारण गरीबी और सामाजिक सुरक्षा की कमी के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की व्यापक व्यवस्था का अभाव है. सही शिक्षा और आर्थिक असुरक्षा के कारण मजदूर के बच्चों को छोटी-सी उम्र में ही काम धंधे पर लग जाना पड़ता है. इसके साथ ही नियोजक अधिक लाभ अर्जित करने की लालसा में चोरी-छिपे बाल श्रमिकों को प्राथमिकता देता है. हालिया जनगणना के अनुसार अन्य क्षेत्रों के मुकाबले खेतों में कार्य करने वाले बाल श्रमिकों की संख्या अब शहरी सेक्टर की ओर बढ़ रही है. यानी अब बच्चों को खेतों के बजाय शहरी क्षेत्रों में काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. बाल श्रम के प्राप्त ताजे आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 10.1 मिलियन (एक करोड़ से ज्यादा) बाल मजदूर कार्य कर रहे हैं, जिनकी आयु 14 वर्ष से कम है.
खतरनाक फैक्टरियों में काल कवलित होते बाल श्रमिक
युनिसेफ के अनुसार कल-कारखानों पर लगाम कसने के बाद अब आम कल-कारखानों में बाल श्रमिकों की संख्या में गिरावट आई है, लेकिन पटाखा फैक्टरियों जैसे खतरनाक जगहों पर भारी आज भी संख्या में बाल मजदूरी काम करते हैं. यद्यपि सरकार का दावा है कि ऐसी फैक्टरियों के खिलाफ भी कड़े कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन चूंकि अधिकांश पटाखा फैक्टरी अवैध रूप चलाई जा रही हैं, लिहाजा बाल श्रमिकों से वहां धड़ल्ले से काम कराया जाता है. जिसका खामियाजा अकसर बाल श्रमिकों को भुगतना पड़ता है. 2015 के एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 14 से कम उम्र के 7 बच्चे, 14 से 18 आयु के बीच वाले 10 बच्चे फैक्ट्री में कार्य करते हुए जान गंवा बैठे. जबकि 14 से कम उम्र के 9 बच्चे और 14-18 वर्ष की आयु वाले 11 बच्चे खानों के भीतर कार्य करते हुए काल कवलित हुए.
बाल श्रम परियोजनाएं
बाल श्रम पर नियंत्रण लगाने एवं कामकाजी बच्चों के हित संबंधी तमाम परियोजनाएं केंद्र सरकार द्वारा चल रही हैं. जिसका मुख्य उद्देश्य है बाल मजदूरों को वहां से हटाकर उनके भविष्य को सुधारना है. इस परियोजना के तहत 2017 से 2018 के बीच लगभग 50 हजार से ज्यादा बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्ति दिलायी जा चुकी है. हालांकि सवा सौ से ज्यादा आबादी वाले भारत के लिए यह आंकड़ा ऊंट के मुंह में जीरा समान ही कहा जायेगा. सबसे दुःखद बात यह है कि हमारे पढ़े-लिखे समाज में बाल मजदूरी सबसे ज्यादा है. आज भी घरों में आठ से दस साल की लडकियों अथवा लड़कों से घरेलू कार्य करवाया जाता है. इसके पीछे एक बडा नेटवर्क सक्रिय है. सूत्रों के अनुसार ऐसे असंवैधानिक काम प्रशासन की नाक के नीचे चलता है.
बाल श्रम पर कानून और सजा
14 साल से कम आयु के बच्चों को काम देना या काम करवाना गैर-क़ानूनी है. यह अपराध संज्ञेय अपराधों की श्रेणी में आता है, यानि इस कानून का उल्लंघन करते हुए पकड़े जाने पर वारंट की गैर-मौजूदगी में भी गिरफ़्तारी या जाँच की जा सकती है. इसके अलावा कोई भी व्यक्ति अगर 14 साल से कम आयु के बच्चे से काम करवाता है अथवा 14-18 वर्ष के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय में लिप्त करवाता है तो उसे 6 माह से 2 साल तक की जेल की सजा हो सकती है. साथ ही 20 से 50 हजार रूपये का जुर्माना भी हो सकता है.
इसके अलावा और भी ऐसे अधिनियम हैं ( मसलन फैक्ट्रीज अधिनियम, खान अधिनियम, शिपिंग अधिनियम, मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम इत्यादि) जिनके तहत बच्चों को काम पर रखने के लिए सज़ा का प्रावधान है, पर बाल मज़दूरी करवाने के अपराध के लिए अभियोजन बाल मज़दूर कानून के तहत ही होगा.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.