Santan Saptami 2021: क्या है संतान सप्तमी? जानें इसकी महिमा? शुभ मुहूर्त, पूजा-विधान एवं व्रत कथा
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo: Wikimedia Commons)

Santan Saptami 2021: सनातन धर्म के अनुसार भाद्रपद शुक्लपक्ष की सप्तमी के दिन संतान सप्तमी के दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती की विशिष्ठ पूजा-अर्चना करने से संतान प्राप्ति का सुख मिलता है. भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की सप्तमी के दिन संतान सप्तमी का व्रत रखा जाता है. यह व्रत माता-पिता संतान प्राप्ति, उसकी अच्छी सेहत एवं सुख समृद्धि के लिए रखते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 13 सितंबर 2021 को देश भर में यह त्यौहार मनाया जायेगा. जानें व्रत की महिमा, पूजा विधान, शुभ मुहूर्त एवं व्रत कथा. यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2021: कब शुरु हो रहा है पितृपक्ष? क्या है इसका महात्म्य? जानें श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां

संतान सप्तमी की महिमा

संतान सप्तमी व्रत महिलाओं द्वारा संतान-प्राप्ति, उनकी सेहत एवं सुखी जीवन के लिए करती हैं. सन्तान सुख देने वाला एवं व्यक्ति के समस्त पापों को नष्ट करने हेतु यह सर्वोत्तम व्रत है. यह सप्तमी पुराणों में रथ, सूर्य, भानु, अर्क, महती, आरोग्य, पुत्र, सप्त सप्तमी आदि अनेक नामों से भी लोकप्रिय है और अनेक पुराणों में इन नामों के अनुरूप व्रत की अलग-अलग विधियां उल्लेखित हैं. इस व्रत में भगवान शिव एवं माता गौरी का व्रत एवं पूजा करने का विधान है. कहीं-कहीं यह व्रत माता-पिता दोनों रखते हैं. मान्यता है कि इस व्रत-पूजन शास्त्र सम्मत तरीके से करने पर भगवान शिव एवं माता पार्वती प्रसन्न होकर जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं तथा जीवन के अंत में उन्हें शिवलोक में स्थान प्राप्त होता है. सोमवार का दिन होने से इस व्रत की महत्व बढ़ जाता है.

संतान सप्तमी का शुभ मुहूर्त:-

13 सितंबर 2021 को दिन 12:00 बजे से दोपहर में 3:10 बजे तक.

पूजा विधि:

सप्तमी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर भगवान शिव एवं विष्णुजी का ध्यान करते हुए व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. पूरे दिन निराहार रहते हुए पूरी साफ-सफाई से महाप्रसाद (खीर एवं 7-7 पुआ बनायें.) अब पूजन स्थल की सफाई कर वहां पर गंगाजल छिड़कें अब वहीं छोटी चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें. इस पर शिव-परिवार की प्रतिमा अथवा तस्वीर रखें. प्रतिमा के सामने एक कलश स्थापित करें. कलश में पांच सुपारी, अक्षत, सिक्का डालकर उस पर आम्र पल्लव लगाकर एक बड़ा दीया उस पर रखें. दीया में चावल डालकर उस पर शुद्ध देशी घी का एक दीपक जलाएं. हाथों में फूल और अक्षत लेकर भगवान शिव एवं माता पार्वती का आह्वान करें. अब भगवान शिव के सामने धूप जलाएं, फूल, चंदन, महाप्रसाद, नारियल, सुपारी, अक्षत आदि अर्पित करें. शिवजी एवं माता पार्वती को महाप्रसाद को भोग के रूप में अर्पित करें. एक कलावे में 7 गांठ बांधकर संतान की रक्षा की कामना करते हुए भगवान शिव को अर्पित करें. इसके पश्चात इसे स्वयं धारण कर व्रत की कथा सुननी चाहिए. कथा पूरी होने के बाद भगवान शिव की आरती उतारें और चढ़ाये गये सात पुआ को ब्राह्मण को दे दें और शेष सात पुए को प्रसाद के रूप में बांट दें.

संतान सप्तमी की व्रत कथा:

अयोध्या में एक समय राजा नहुष का राज्य था, उनकी पत्नी चन्द्रमुखी थी. चंद्रमुखी की एक सहेली रूपमती थी, जो एक ब्राह्मण की पत्नी थी. दोनों एक दूसरे की गहरी सखी थीं. एक बार वे सरयू नदी के तट पर स्नान करने गयीं वहां बहुत-सी स्त्रियां संतान सप्तमी का व्रत कर रही थीं. पूजा के बाद व्रत की कथा सुनकर दोनों सखियों ने भी पुत्र-प्रप्ति के लिए इस व्रत को करने का निर्णय किया, लेकिन घर आकर वे व्रत करना भूल गई. कुछ समय बाद दोनों की मृत्यु हो गई. अगले जन्म में चंद्रवती ने ईश्वरी एवं रूपमती ने भूषणा के नाम से जन्म लिया. ईश्वरी राजा की पत्नी एवं भुषणा ब्राह्मण की पत्नी थी. इस जन्म में भी दोनों के बीच बहुत प्रेम था. इस जन्म में भूषणा ने संतान सप्तमी का व्रत किया. लिहाजा उस 8 पुत्र प्राप्त हुए. लेकिन ईश्वरी ने पुनः व्रत नहीं किया. इसलिए वह निसंतान ही रही. उसे भूषणा से ईर्ष्या होने लगी. उसने भुषणा के पुत्रों को मारने की कई कोशिशें की, लेकिन भुषणा के व्रत के प्रभाव से उसके पुत्रों को कोई नुकसान नहीं हुआ. अंततः हारकर ईश्वरी ने दुखी होकर भुषणा क्षमा मांगी. भुषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात याद दिलाई. और संतान सप्तमी का व्रत करने की सलाह दी. ईश्वरी ने पूरे विधि-विधान से व्रत किया. उसे एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई.