Rishi Panchami Vrat 2019: सप्तऋषियों की पूजा एवं व्रत कर जाने अनजाने में किए पापों से पाएं मुक्ति, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा-व्रत एवं कथा
ब्रह्म पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पंचमी को सप्तऋषि पूजन एवं व्रत का विधान है. इस दिन हर वर्ण की महिलाओं एवं पुरुषों को व्रत रखना चाहिए. व्रत एवं विधि विधान से पूजा अर्चना करने से जाने अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है.
ब्रह्म पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पंचमी को सप्तऋषि पूजन एवं व्रत का विधान है. इस दिन हर वर्ण की महिलाओं एवं पुरुषों को व्रत रखना चाहिए. व्रत एवं विधि विधान से पूजा अर्चना करने से जाने अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है. मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान एवं दान-पुण्य करने का विशेष महात्म्य है.
कैसे करें व्रत एवं पूजा अनुष्ठान
सूर्योदय से पूर्व प्रातःकाल किसी पवित्र नदी अथवा सरोवर पर स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र वस्त्र पहनना चाहिए. इसके पश्चात घर के किसी एक स्थान जिसका मुंह पूर्व अथवा पश्चिम की ओर हो पर जमीन के छोटे से हिस्से को गेरू अथवा गोबर से लीपकर पवित्र कर लें. अब यहां हल्दी से चौक बनाकर इस पर सप्त ऋषियों को स्थापित करें. अब उन पर पुष्प अर्पित करें और धूप जलाकर दीप प्रज्जवलित करें. सप्तऋषिओं पर गंध एवं प्रसाद चढ़ाएं. प्रसाद में मिष्ठान अथवा मौसमी फल ले सकते हैं. इनकी पूजा करने के पश्चात निम्न मंत्रों का जाप करते हुए अर्घ्य दें.
'कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥'
पूजा सम्पन्न होने के पश्चात सप्तऋषियों की आरती उतारें और अंत में प्रसाद वितरित करें. व्रत के दौरान उन्हीं वस्तुओं से बने खाद्य-पदार्थों का सेवन करें, जो जमीन पर नहीं उगायी जाती हो. सात वर्ष लगातार ऋषि पंचमी की पूजा-अर्चना करने के पश्चात इसका उद्यापन कर लें. इसमें सात ब्राह्मणों को सप्त ऋषि मानकर उऩ्हें भोजन एवं दान-दक्षिणा देकर खुशी-खुशी विदा करना चाहिए.
तिथि और शुभ मुहूर्त
ऋषि पंचमी, 3 सितंबर 2019
पूजा का शुभ मुहूर्तः दिन 11.05 बजे से 13.36 तक
अवधिः 02 घंटा 31 मिनट
पंचमी तिथि का प्रारंभ 03 सितंबर 2019 को 01.53 रात
पंचमी तिथि का समापनः 03 सितंबर 2019, 11.27 रात
ऋषि पंचमी कथा
सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा थे. उनका रहन-सहन ऋषियों के समान होता था. उन्हीं के राज्य में सुमित्र नामक एक कृषक था, उसकी पत्नी जयश्री बहुत पतिव्रता थी.
एक दिन वर्षा ऋतु में जयश्री खेत में कार्य करते हुए रजस्वला हो गई. जयश्री ने सुमित्र को यह बात नहीं बताई. सुमित्र ने जयश्री से शारीरिक संबंध बना लिए. कुछ समय बाद दोनों की मृत्यु हो गई. अगले जन्म में जयश्री ने कुतिया का जन्म लिया तो रजस्वला स्त्री से संबंध बनाने के कारण सुमित्र ने बैल योनि में जन्म लिया. इन्होंने ऋतु-दोष के अलावा कोई अपराध नहीं किया था. इस वजह से इन दोनों को अपने पूर्व जन्म की सारी बातें याद थी. दोनों कुतिया और बैल के रूप में अपने बेटे सुचित्र के यहां रह रहे थे. सुचित्र घर आए हर अतिथियों का भरपूर स्वागत-सम्मान करता था. पिता की मृत्यु के पश्चात सुचित्र ने पिता के श्राद्ध के दिन घर पर ब्राह्मणों के लिए विविध प्रकार के भोजन बनवाए.
एक दिन जब सुचिव की पत्नी रसोई के काम से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने खीर में विष की उल्टी कर दी. कुतिया के रूप में सुचित्र की मां सब कुछ देख रही थी. उसने पुत्र को ब्रह्म-हत्या के पाप से बचाने के लिए स्वयं बर्तन में मुंह डाल दिया. सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती ने कुतिया को ऐसा करते देख आगबबूला होकर जलती लकड़ी से कुतिया की पिटाई कर दी. चंद्रवती पहले कुतिया को जूठे भोजन खाने के लिए दे देती थी. लेकिन क्रोधित हो उसने खाना बाहर फिंकवा दिया.
चंद्रवती ने नए सिरे से खाना बनवा कर ब्राह्मण को खिलाया.
देर रात भूख से बेहाल कुतिया बैल बने अपने पूर्व पति के पास जाकर सारी बताते हुए बोली, -हे स्वामी! आज भूख से मेरी जान जा रही है. इस पर बैल बोला, हे भद्रे तेरे पापों के कारण मैं बैल की योनी में हूं, और बोझा ढोते-ढोते मेरी कमर टूट गई है. आज मैं भी पूरे दिन खेत के हल में जुता रहा. मेरे पुत्र ने भी मुझे खाना नहीं दिया, उल्टे मेरी खूब पिटाई की. मुझे इस तरह से कष्ट देकर उसने अपने पिता के लिए किये गये श्राद्ध को स्वयं निष्फल कर दिया.
सुचित्र माता-पिता की बातें ध्यान से सुन रहा था. उसने दोनों को भरपेट भोजन कराया और दुःखी होकर वन की ओर चला गया. वन में उसने ऋषियों से पूछा, -मेरे माता-पिता किन कर्मों से ऐसी योनियों को प्राप्त हुए हैं और इऩ्हें कैसे मुक्ति मिल सकती है. इस पर सर्वतमा ऋषि बोले, तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नी सहित ऋषि पंचमी का व्रत करो, और उसका फल अपने माता-पिता को दो. उन्होंने सुचित्र से कहा कि भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को नदी में स्नान करना और नए कपड़े पहनकर अरूधन्ती समेत सप्तऋषियों का पूजन करना. घर आकर उसने अपनी पत्नी के साथ मह्रर्षि द्वारा बताये विधि-विधान से पूजन-व्रत किया. इसके बाद उसके माता-पिता पशु योनियों से मुक्त हो गये.