विश्वकर्मा जयंती 2019: कल राजस्थान में मनाई जाएगी विश्वकर्मा जयंती, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कहानी, महत्त्व और पूजा विधि

भारत पर्वों का देश है. जीवन को उत्सव के रूप में मनाने की धारणा के साथ यहां पूरे वर्ष पर्वों का मेला लगा रहता है. इन्हीं में एक पर्व है विश्वकर्मा पूजा. ऐसी मान्यता है कि माघ माह की त्रयोदशी के दिन विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था...

भगवान विश्वकर्मा (Wikimedia Commons)

भारत पर्वों का देश है. जीवन को उत्सव के रूप में मनाने की धारणा के साथ यहां पूरे वर्ष पर्वों का मेला लगा रहता है. इन्हीं में एक पर्व है विश्वकर्मा पूजा. ऐसी मान्यता है कि माघ माह की त्रयोदशी के दिन विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था. यद्यपि इनके जन्म दिन को लेकर कुछ भ्रांतियां भी हैं. मसलन राजस्थान के कुछ इलाकों में 17 फरवरी को विश्वकर्मा जयंती मनाई जाएगी. हालांकि बाकी जगहों पर इसे 17 सितंबर को मनाया जाता है. चूंकि हिंदुओं के पर्व एवं उत्सव आदि पंचांग के अनुसार निर्धारित होते हैं, इसलिए अंग्रेजी तिथि विश्वसनीय नहीं लगती. श्री विश्वकर्मा जी के जन्म का वर्णन मदरहने वृध्द वशीष्ट पुराण में भी किया गया है.

माघे शुक्ले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ।

अष्टा र्विशति में जातो विश्वकर्मा भवनि च॥

भगवान विश्‍वकर्मा को देवताओं के इंजीनियर के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि उन्होंने देवताओं के लिए महलों, हथियारों और मंदिरों का निर्माण किया था. कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना करने से मकान आदि की इच्छा पूरी होती है. विश्वकर्मा जी के जन्म के संदर्भ में कहा जाता है कि आदिकाल में केवल तीन प्रमुख देवता थे, ब्रह्मा, विष्णु और महेश. ब्रह्मा जी के पुत्र का नाम धर्म था, जिनका विवाह वास्तु नामक कन्या से हुआ था. इनसे धर्म को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम विश्वकर्मा था. ब्रह्म पुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण में ब्रह्मा जी को विश्वकर्मा जी का सहयोग प्राप्त हुआ था. इसलिए विश्वकर्मा जी को निर्माण एवं सृजन का देवता भी कहा जाता है. तकनीकी भाषा में इन्हें दुनिया का पहला इंजीनियर भी कहा जा सकता है. विश्वकर्मा जी ने सृष्टि में अनेकों ऐसी रचनाएं की हैं, जिसके बारे में सुनकर आज का विकासशील मानव समाज भी दांतों तले उंगलियां दबा लेगा.

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चमत्कारी भवनों एवं शस्त्रों का निर्माण-

विभिन्न धार्मिक पुराणों में देवी देवताओं के लिए जिन भव्य भवनों, अस्त्र-शस्त्र अथवा मंदिरों की चर्चा हुई है, उन सभी का निर्माण विश्वकर्मा जी ने ही किया था. उदाहरण के लिए देवताओं का स्वर्ग लोक, समुद्र के भीतर भगवान श्री कृष्ण के लिए द्वारिकापुरी, लंका के राजा रावण की सोने की लंका, पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर, यमराज के लिए यमपुरी, श्रीकृष्ण के सखा सुदामा के लिए सुदामापुरी, शिवमंडलपुरी, वरुणपुरी इत्यादि सभी भवनों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने बहुत कम समय में कर दिया था. ये सभी वास्तुकला की बेजोड़ मिसालें कही जा सकती हैं. इसके अलावा सभी देवी-देवताओं के सिंहासन और उनके हथियार का निर्माण विश्वकर्मा जी ने किया था. इंद्र का वज्र, यमराज का कालदण्ड, विष्णु जी का सुदर्शन चक्र, भगवान शिव का त्रिशूल, कर्ण का कुण्डल सब भगवान विश्वकर्मा द्वारा रचे गए हैं. यहां तक कि आज के वायुयान के समकक्ष पुष्पक विमान का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था. इसीलिए विश्वकर्मा जी को औजारों का देवता भी माना जाता है. इन सभी महलों-भवनों, अस्त्र-शस्त्र, मंदिरों, पुष्पक विमान आदि के निर्माण की अलग-अलग कहानी, उद्देश्य एवं महत्व हैं.

स्पष्ट है कि विश्वकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है. अतः प्रत्येक प्राणी को सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना स्वयं एवं राष्ट्र की उन्नति के लिए अवश्य करनी चाहिए.

विधि-विधान से करें पूजन-

शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाएं. उस पर जल छिड़कें. अब पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में रखकर अक्षत चढ़ाएं. चावल से भरा पात्र कलश पर रखकर विश्वकर्मा जी की मूर्ति स्थापित करें और मन ही मन में कहें ‘हे विश्वकर्मा जी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए’. इसके पश्चात हाथ में पुष्प व अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें. अक्षत को पूजा स्थल पर छिड़कने के पश्चात स्वयं एवं पत्नी की कलाई में रक्षा सूत्र बांधें. दीप जलाकर पुष्प-सुपारी और जल लेकर संकल्प करें. पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन करें.

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