पूजा करते समय अगर नहीं रखा इन बातों का ध्यान तो हो सकती है बड़ी समस्या!

मानसिक एकाग्रता के लिए चन्दन की धूपबत्ती का प्रयोग करना चाहिए. आर्थिक लाभ और मान सम्मान के लिए गुलाब की धूपबत्ती का प्रयोग किया जाता है. तनाव कम करने के लिए गुग्गल की धूप का प्रयोग और लोहबान का प्रयोग ग्रहों के बुरे प्रभाव कम करने के लिए किया जाता है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo: PIXABAY )

अकसर आप जब पूजा घर में किसी पूजा विशेष के लिए बैठते हैं तो मन में तमाम तरह की शंका-कुशंकाएं घुमड़ती रहती है कि आप जाने अनजाने क्या सही कर रहे हैं और क्या गलत. पूजा के वक्त उपयोग में आने वाले बर्तनों से लेकर शंख, आसन, गंगा जल, पूजा, प्रतिमा, आरती के दीप इत्यादि बातों का ध्यान रखें तो संभावित नुकसान से बच सकते हैं.

पूजा-अनुष्ठान के वक्त दीपक को प्रज्जवलित करते समय उसे भूमि पर नहीं ऱखना चाहिए. इसके अलावा देवी-देवता की तस्वीरें अथवा प्रतिमा, शिवलिंग, मणि, जनेऊ, कलाईनारा, हवन सामग्री और प्रसाद इत्यादि पवित्र वस्तुएं सीधा जमीन पर रखने के बजाय वहां पहले साफ कपड़े बिछाकर इसक पश्चात ही ये चीजें उस कपड़े पर रखना चाहिए.

इन धातु के बर्तनों का उपयोग न करें

सर्वप्रथम हम बात करेंगे, पूजा घर में उपयोग आने वाले बर्तनों की. पूजा के वक्त एल्युमिनियम, स्टेनलेस स्टील अथवा लोहे के धातु का उपयोग नहीं करना चाहिए. अल्युमिनियम का प्रयोग इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि इनके रगड़े से जो कालिख निकलती है, उसे हिंदू धर्म में शुभ नहीं माना जाता. स्टेनलेस स्टील के बने पात्र चूंकि प्राकृतिक धातु नहीं कहलाते, इस वजह से वे अपवित्र माने जाते हैं. पूजा के लिए लोहे के बर्तन भी इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. क्योंकि इसमें भी बहुत जल्दी जंग लग जाती है. पूजा के लिए शंख, सीपी, पत्थर अथवा चांदी के बने बर्तनों का इस्तेमाल करना चाहिए. ये शुद्ध तो होते ही हैं, साथ ही इन्हें आसानी से पानी से भी धोया जा सकता है. लेकिन इन बर्तनों के इस्तेमाल से पूर्व यह जरूर जांच लें कि ये बर्तन कहीं से चिटखे हुए तो नहीं हैं अथवा इन पर किसी तरह का खरोच इत्यदि तो नहीं है. इसके अलावा तांबे और पीतल निर्मित पात्रों का उपयोग भी कर सकते हैं. ये धातुएं भी पूजा के लिए शुभ मानी जाती है.

दीप जलाने के लिए तिल का तेल या शुद्ध घी का इस्तेमाल करें

भगवान के सामने जो दीप प्रज्जवलित की जाती है, उसके लिए शुद्ध देशी घी अथवा तिल के तेल का ही प्रयोग करना चाहिए. अलबत्ता शनिवार के दिन शनि भगवान को सरसों का तेल चढाने की परंपरा है. इसके अलावा एक बात और भी ध्यान देना चाहिए कि, शुद्ध देशी घी का इस्तेमाल करने वालों को जा के लिए ब्रांडेड शुद्ध देशी घी का ही इस्तेमाल करना चाहिए. क्योंकि आजकल पूजा के घी के नाम पर जानवरों की चर्बी से बनी देशी घी भारी तादात में मिल रहे हैं, इसलिए पूजा के नाम पर बिकने वाले घी का इस्तेमाल हरगिज नहीं करना चाहिए.

मूर्तियों पर भी ध्यान रखें

घर के मंदिर में बहुत बड़े आकार की मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए. वास्तु शास्त्र में इसे दोष माना जाता है. इन मूर्तियों की ऊंचाई छह इंच से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. हां, भगवान की तस्वीरें किसी भी आकार की ली जा सकती हैं. दूसरी ध्यान देने की बात यह कि मूर्तियां किसी भी तरह से खंडित नहीं होनी चाहिए. खंडित मूर्तियों की पूजा नुकसानदेह साबित हो सकती हैं. देवी पुराण में मां काली की पूजा का विधिवत वर्णन है. यह भी बताया गया है कि काली की पूजा में किंचित चूक भारी विपत्ति को बुलावा दे सकती है. इसलिए बेहतर होगा कि आप मंदिर में स्थापित काली माता की पूजा करें. वहां पुरोहित जी आपको सही मार्गदर्शन देंगे.

अगरबत्ती या धूप बत्ती?

मन की शांति एवं एकाग्रता पाने एवं तमाम तनावों को दूर करने के लिए ईश्वर के सामने सुगंधित वस्तुओं अथवा फूलों का प्रयोग किया जाता है. सुगंध के लिए ही अगरबत्ती अथवा धूपबत्ती जलाया जाता है. हां, अगरबत्ती की बजाय धूपबत्ती का प्रयोग ज्यादा पवित्र माना जाता है. धूपबत्ती या तो पूजा के पूर्व जलाएं या पूजा के पश्चात.

कौन-सा सुगंध किस समस्या का समाधान करता है

मानसिक एकाग्रता के लिए चन्दन की धूपबत्ती का प्रयोग करना चाहिए. आर्थिक लाभ और मान सम्मान के लिए गुलाब की धूपबत्ती का प्रयोग किया जाता है. तनाव कम करने के लिए गुग्गल की धूप का प्रयोग और लोहबान का प्रयोग ग्रहों के बुरे प्रभाव कम करने के लिए किया जाता है.

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