नागा साधुओं का जीवन बहुत कठिन होता है. 12 साल की कठोर तपस्या के बाद वो नागा साधु बनते हैं. उनकी जिंदगी आम लोगों से बहुत अलग और रहस्यमयी होती है. कुंभ के दौरान नागा साधु स्नान के लिए आते हैं और फिर कहां चलाए जाते है. इस रहस्य का पता आज तक किसी को भी पता नहीं चल पाया है. ऐसा कहा जाता है कि कुंभ खत्म होने के बाद नागा रात के अंधेरे में जंगल के रास्ते अपनी स्थली पर चले जाते हैं. वो आधी रात को अपनी यात्रा तय करते हैं ताकि उन्हें कोई भी देख न पाए. नागा साधु बहुत अलग होते हैं. उनकी जिंदगी आम आदमी की कल्पना से परे है. 12 साल के कठोर तप के बाद उनमें अदृश्य शक्तियां आ जाती हैं जिसके बाद वो आम इंसान नहीं रह जाते. नागा साधु बनने के बाद उनका अंतिम संस्कार भी आम इंसान की तरह नहीं किया जाता है. उनका शव जलाया नहीं जाता बल्कि उन्हें भू समाधि दी जाती है. पहले नागा साधु के शव को जल समाधि दी जाती थी लेकिन नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण की वजह से अब उन्हें सिद्ध योग मुद्रा में बैठाकर भू-समाधि दी जाती है.
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आम तौर पर हिन्दू धर्म में शव को जला दिया जाता है. आप सोच रहे होंगे की नागा साधु भी हिंदू धर्म को मानते हैं तो उन्हें जलाया क्यों नहीं जाता. सालों के लंबे तप के बाद नागा साधु आम आदमी नहीं रह जाते. इसलिए उनके शव को सिद्ध योग मुद्रा में बैठाकर भू-समाधि दी जाती है. जिसके बाद उनके समाधी स्थल को पूजा जाता है.