Ganga Saptami 2020: 30 अप्रैल को क्यों मनाया जाता है गंगा सप्तमी, जानें महत्व और पौराणिक कथा

भारत देश में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है और हिंदू सनातम धर्म में गंगा का विशेष महत्व है. पौराणिक कथाओं के अनुसार वैसाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Pixabay)

Ganga Saptami 2020: भारत देश में गंगा नदी (River Ganga) को मां का दर्जा दिया गया है और हिंदू सनातम धर्म में गंगा का विशेष महत्व है. मां गंगा को पाप का नाश, मोक्ष प्रदान करने में इनका योगदान और सभी धार्मिक कामों में जल स्वरुप इनका उपयोग किया जाता है. गंगा को 'त्रिपथगा' भी कहा जाता है. त्रिपथगा का अर्थ होता है, तीन रास्तों की ओर जाने वाली. धार्मिक गाथाओं के अनुसार यह शिव (Lord Shiva) की जटाओं से धरती (Earth), आकाश और पाताल की तरफ जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार वैसाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है.

कथाओं के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई थी और उस दिन को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है. आपको बता दें कि 30 अप्रैल को गंगा सप्तमी है. सनातम धर्म के अनुसार गंगा सप्तमी के दिन गंगा नदी में स्नान करने और डुबकी लगानें से सभी तरह के पापों का नशा हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. आपको बता दें कि कोरोना महामारी संकट के के समय देश लॉकडाउन में है और ऐसे में घर पर स्नान करते समय पानी की बाल्टी या किसी भी पात्र में गंगा जल की कुछ बूंदों का डालकर स्नान करना चाहिए.

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गंगा सप्तमी कथा और महत्व

गंगा सप्तमी के दिन गंगाजी में डुबकी लगाने से जीवन के सभी दुखों और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. इस सप्तमी के दिन दान-पुण्य को भी विशेष महत्व दिया जाता है. गाथाओं के अनुसार भगीरथी के अथक प्रयास से ही गंगाजी भगवान शिव की जटाओं से होती हुई पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं. एक बार गंगाजी तीव्र गति से बह रही थी और उस समय ऋषि जह्नु भगवान के ध्यान में लीन थे. उस समय उनका कमंडल और अन्य सामान भी वहीं पर रखा था.

उस समय गंगा जी जह्नु ऋषि के पास से गुजरी तो उनके प्रवाह से ऋषि जह्नु भगवान का कमंडल और अन्य सामान भी अपने साथ बहा कर ले गई. जब ऋृषि की आंख खुली तो उनको अपना सामान नहीं दिखा और वे क्रोधित हो गए. उनका क्रोध इतना ज्यादा था कि अपने गुस्से में वे पूरी गंगा को पी गए. जिसके बाद भागीरथ ऋृषि ने जह्नु ऋृषि से आग्रह किया कि वह गंगा को मुक्त कर दें.

जह्नु ऋृषि ने भागीरथ ऋृषि का आग्रह स्वीकार किया और गंगा को अपने कान से बाहर निकाला. जिस समय घटना घटी थी, उस समय वैशाख पक्ष की सप्तमी थी इसलिए इस दिन से गंगा सप्तमी मनाई जाती है और इसे गंगा का दूसरा जन्म भी कहा जाता है. जह्नु ऋषि के अन्तः करण से उनका दूसरा जन्म हुआ और जिसकी वजह से गंगाजी को 'जाह्नवी' के नाम से भी जाना जानें लगा.

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