सुबह-सुबह बुरी खबरें पढ़ने से पूरा दिन हो सकता है खराब
हम हर दिन कई बुरी खबरें पढ़ते हैं.
हम हर दिन कई बुरी खबरें पढ़ते हैं. कभी युद्ध की, तो कभी प्राकृतिक आपदाओं से लोगों के मरने की. क्या आपको पता है कि ये बुरी खबरें हमारे सेहत पर किस तरह असर डाल रही हैं?फोन पर किसी तरह की सूचना आते ही हम उसे तुरंत खबर पढ़ने लगते हैं. चाह कर भी ज्यादा देर तक अपने डिवाइस से दूरी नहीं रख पाते. हम अक्सर बुरी खबरों के चक्र में वापस लौट आते हैं. हिंसा, युद्ध और आपदा हमारे न्यूज फीड पर हावी हैं.
बुरी खबरें पढ़ने का दौर लगातार पिछले कई वर्षों से जारी है. 2019 के आखिर और 2020 की शुरुआत में कोरोना महामारी, उसके बाद यूक्रेन युद्ध, फिर कई देशों में भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं और अब मध्य-पूर्व में इस्राएल-हमास के बीच युद्ध. बुरी खबरों का दौर खत्म ही नहीं हो रहा है. ये सभी खबरें दिल दहलाने और हताश करने वाली कहानियों और तस्वीरों से भरी होती हैं. इन खबरों को लगातार पढ़ने की लत इंसानों को बीमार कर रही हैं.
डूमस्क्रोलिंग क्या है?
डूमस्क्रोलिंग का मतलब है, बुरी खबरों को स्क्रॉल करते रहना. तब भी जब यह हमें परेशान करती हैं. यह शब्द ‘डूम' और ‘स्क्रोलिंग' से मिलकर बना है. डूम का मतलब होता है आपदा, विनाश, अंत, भय. स्क्रोलिंग का मतलब है, इंटरनेट पर कुछ खोजना. डूमस्क्रोलिंग शब्द का इस्तेमाल यह बताने के लिए किया जा रहा है कि लोग किस तरह लगातार बुरी खबरें देख और पढ़ रहे हैं. यह शब्द वास्तव में महामारी के दौरान प्रचलन में आया.
पाषाण युग के निशान
डूमस्क्रोलिंग पूरी तरह से नकारात्मक पूर्वाग्रह के बारे में है. इंसानों का झुकाव नकारात्मकता की ओर ज्यादा होता है. उदाहरण के लिए, प्रशंसा की तुलना में आलोचना इंसानों के व्यवहार पर ज्यादा असर डालती है. यही बात अच्छी खबर की तुलना में बुरी खबर के लिए भी लागू होती है. न्यूरो साइंटिस्ट मारेन उर्नर ने कहा, "हमारा मस्तिष्क सकारात्मक शब्दों की तुलना में नकारात्मक शब्दों को तेजी से और बेहतर तरीके से प्रोसेस करता है. इसका मतलब है कि हम उन्हें ज्यादा याद रखते हैं.”
यह बात विकासवादी जीवविज्ञान के परिप्रेक्ष्य से समझ में आती है. उर्नर ने कहा, "नुकीले और बड़े दांत वाली बिल्लियों की प्रजातियां या मैमथ के समय में खतरे से अनजान रहना नुकसानदायक था.” हमारा दिमाग अभी भी व्यवस्थित रूप से जानकारी इकट्ठा करके अनिश्चितता को दूर करने में हमारी मदद करने की कोशिश कर रहा है. हम उन खतरों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहते हैं जो हमारा इंतजार कर रहे हैं. जितनी अधिक बुरी खबरें हम सुनते हैं, उतना ही बेहतर तैयार महसूस करते हैं. हालांकि, यह एक भ्रांति है. हो सकता है कि इस तरह की सोच मैमथ के समय काम करती हो, लेकिन एप्लिकेशन और न्यूज फीड के युग में यह बेकार है.
चिप्स के बैग जैसे एप्लिकेशन
हमारे समाचार एप्लीकेशन हमें जुड़े रहने के लिए डिजाइन किए गए हैं. ‘कभी न खत्म होने वाले स्क्रोल' का विचार कोई भूल नहीं थी. यह एक मनोवैज्ञानिक चाल है जिसे 2000 के दशक की शुरुआत में शोधकर्ता ब्रायन वैनसिंक के ‘बॉटमलेस सूप बाउल एक्सपेरिमेंट' की मदद से चित्रित किया गया था.
इस प्रयोग में, प्रतिभागियों के एक समूह को सूप के ऐसे बाउल मिले जिसका कोई निचला हिस्सा नहीं था. इन बाउल में सूप को लगातार इस तरह से भरा गया कि प्रतिभागियों को पता नहीं चला. प्रयोग के नतीजे से यह जानकारी मिली कि इस समूह के लोगों ने उस दूसरे समूह की तुलना में 73 फीसदी अधिक सूप का सेवन किया जिन्हें तय मात्रा में सूप दिया गया था. ज्यादा सूप का सेवन करने वाले समूह के लोग ना तो यह बता सके कि उन्होंने अधिक सूप का सेवन किया और ना ही यह कहा कि उन्हें पेट भरा हुआ महसूस हुआ.
इसके अलावा, एप्लिकेशन डिजाइनर एक और ट्रिक इस्तेमाल करते हैं. वह है ‘पुल-टू-रिफ्रेश' फंक्शन. इस विचार को कैसिनों से लिया गया है. जैसे ही आप स्क्रीन को नीचे की ओर खींचते हैं, पेज फिर से लोड हो जाता है और आप इस उत्साह के साथ इंतजार करते हैं कि कोई नई खबर मिलने वाली है.
यह ठीक उसी तरह है जैसे पहले के जमाने में जुए की मशीनों को घुमाने के लिए लीवर को नीचे की ओर खींचना होता था. उस समय लोग यह उम्मीद करते थे कि इस बार उन्हें कुछ न कुछ इनाम मिलेगा. इस जीत की उम्मीद के इंतजार के दौरान हमारा दिमाग खुशी वाला हार्मोन डोपामाइन रिलीज करता है और हम जीत की उम्मीद में बार-बार ऐसा करना चाहते हैं. यही कारण है कि लोग हारने पर भी जुआ खेलते रहते हैं.
दिमाग में लगातार तनाव
परेशान करने वाली खबरें देखने और पढ़ने से हमारे सेरोटोनिन लेवल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. हम थका हुआ, तनावग्रस्त, चिड़चिड़ा, मूडी महसूस करते हैं और सही से नींद नहीं आती है. ऐसी स्थिति में तनाव वाला हार्मोन कोर्टिसोल सक्रिय होता है. जब हम तनाव महसूस करते हैं, तो कोर्टिसोल हमें अस्थायी रूप से प्रोडक्टिव और सक्रिय महसूस करने में मदद कर सकता है. हालांकि, कोर्टिसोल का बढ़ा हुआ स्तर हानिकारक हो सकता है, क्योंकि इससे हम लगातार तनाव वाली स्थिति में आ सकते हैं.
डूमस्क्रॉलिंग अलग-अलग लोगों को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है. अध्ययनों के मुताबिक, बुरी खबरेंज्यादा पढ़ने से लोग अवसाद और तनाव का शिकार हो सकते हैं. ये लक्षण पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर वाले लोगों में दिखते हैं. मनोवैज्ञानिकों और मीडिया संस्थान हफिंगटन पोस्ट के संयुक्त अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों ने सुबह-सुबह बुरी खबरें पढ़ने में तीन मिनट बिताए थे, उनके छह से आठ घंटे बाद यह कहने की संभावना 27 फीसदी अधिक थी कि उनका दिन खराब रहा. उसी अध्ययन में शामिल एक अन्य समूह ने तथाकथित ‘समाधान-आधारित' समाचार पढ़ा और उनमें से 88 फीसदी ने कहा कि उनका दिन अच्छा गुजरा.
बुरी खबरें और मीडिया
मीडिया कंपनियों को पता है कि बुरी खबरों से उन्हें ज्यादा क्लिक मिल सकता है. ज्यादा क्लिक का मतलब है ज्यादा प्रसार और ज्यादा कमाई. हालांकि, सवाल यह है कि जब डूमस्क्रॉलिंग इतनी ज्यादा खतरनाक है, तो मीडिया घरानों को स्थिति में सुधार के लिए क्या करना चाहिए?
शोधकर्ता मारेन उर्नर ने कहा कि पत्रकारों को खुद से पूछना चाहिए कि ‘आगे क्या करना है'. कहानियां बताते समय किसी समस्या की जानकारी देना जरूरी है, लेकिन समाधान खोजना भी शोध का हिस्सा होना चाहिए.
खबर पढ़ने की आदत करें विचार
दुनिया में क्या चल रहा है, इस बारे में अपडेट रहना जरूरी है. हालांकि, आप हर समय अपडेट रहें, यह जरूरी नहीं है. इसलिए, दिन की शुरुआत करने का एक अच्छा तरीका यह है कि बिस्तर से उठते ही घर के सभी डिवाइसों को चालू करने से बचें. इस बात पर विचार करें कि आप कितनी खबरें पढ़ते हैं और ये खबरें कब पढ़नी चाहिए.
साथ ही, भरोसेमंद स्रोत, पूरी जानकारी वाली खबरें और कम क्लिकबेट वाली हेडलाइनें चुनकर डूमस्क्रॉल की इच्छा से लड़ें. समाचार पढ़ने के लिए एक समय तय करें, जैसे कि दोपहर में 20 से 30 मिनट. पूरे दिन लगातार स्क्रॉल करने से बचें. नोटिफिकेशन और ब्रेकिंग न्यूज अलर्ट बंद कर दें.