मुंबई: अचानक बढ़ी बॉम्बे ब्लड ग्रुप की मांग, महाराष्ट्र के कई हिस्सों से मंगाया जा रहा है यह अतिदुर्लभ रक्त, जानें इसके बारे में सब कुछ

मायानगरी मुंबई के अलग-अलग अस्पतालों में अचानक से बॉम्बे ब्लड ग्रुप की मांग बढ़ गई है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई में विभिन्न अस्पतालों में अपना इलाज करा रहे कई मरीजों को इस ब्लड ग्रुप की जरूरत पड़ी, जिसकी पूर्ति करने के लिए बॉम्बे ब्लड ग्रुप को महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से मुंबई लाया गया.

रक्तदान (photo Credits: Getty)

मुंबई: आमतौर पर ब्लड ग्रुप के 8 प्रकार बताए जाते हैं जिनमें A, B, AB, O पॉजिटीव और A, B, AB, O निगेटीव शामिल हैं. जब भी कोई व्यक्ति अपना ब्लड टेस्ट कराता है तो इन्हीं ब्लड ग्रुप में से कोई न कोई ब्लड ग्रुप उसका भी होता है, लेकिन पिछले एक हफ्ते से अचानक एक अलग और अतिदुर्लभ ब्लड ग्रुप (Rare Blood Group) की मांग बढ़ गई है. जी हां, मायानगरी मुंबई के अलग-अलग अस्पतालों में अचानक से बॉम्बे ब्लड ग्रुप (Bombay blood group) की मांग बढ़ गई है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई में विभिन्न अस्पतालों (Mumbai Hospitals) में अपना इलाज करा रहे कई मरीजों को इस ब्लड ग्रुप की जरूरत पड़ी, जिसकी पूर्ति करने के लिए बॉम्बे ब्लड ग्रुप को महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से मुंबई लाया गया.

जानकारी के मुताबिक, यह अतिदुर्लभ ब्लड ग्रुप 7,600 से ज्यादा लोगों में पाया जाता है. बताया जाता है कि मरीजों को बॉम्बे ब्लड ग्रुप देने के लिए हाल ही में सांगली और पुणे से ब्लड डोनर्स (Blood Donors) को बुलाया गया था, लेकिन अब भी मुंबई के नायर, हिंदुजा, जेजे, टाटा और अन्य अस्पतालों में इस ब्लड ग्रुप की जरूरत है. यह भी पढ़ें: रक्तदान करने से हिचकिचाएं नहीं, क्योंकि इससे ब्लड डोनेट करने वालों को होते हैं ये फायदे

बॉम्बे ब्लड ग्रुप कैसे पड़ा नाम?

बताया जाता है कि साल 1952 में मुंबई (उस समय के बॉम्बे) के एक डॉक्टर ने इस ब्लड ग्रुप की खोज की थी, इसलिए इस खास किस्म के खून को बॉम्बे ब्लड ग्रुप नाम दिया गया. तभी से इस दुर्लभ ब्लड ग्रुप को बॉम्बे ब्लड ग्रुप के नाम से जाना जाता है.

पूरे भारत में सिर्फ 350 डोनर

बॉम्बे ब्लड ग्रुप को अतिदुर्लभ ब्लड ग्रुप माना जाता है और इसके डोनर भी आसानी से नहीं मिलते हैं. आकंडों के मुताबिक, पूरे भारत में इस ब्लड ग्रुप के सिर्फ 350 डोनर ही हैं, जिनमें से 35 डोनर मुंबई के हैं. ऐसे में जब इस ब्लड ग्रुप की डिमांड होती है तो सीधे डोनर के जरिए मरीजों तक इस रक्त को पहुंचाया जाता है.

क्या है इस ब्लड ग्रुप की खासियत?

आमतौर पर दूसरे ब्लड ग्रुप की तरह ही बॉम्बे ब्लड ग्रुप में लाल रक्त कणों में एंटीजन की कमी होती है. इस अतिदुर्लभ ब्लड ग्रुप में ए और बी दोनों में से कोई भी एंटीजन मौजूद नहीं होता है, इसलिए साधारण तौर पर इसे ओ ग्रुप ही माना जाता है. ओ ब्लड ग्रुप और बॉम्बे ब्लड ग्रुप के बीच के अंतर को जानने के लिए एच एंटीजन टेस्ट किया जाता है. हालांकि यह टेस्ट भी मुश्किल होता है, क्योंकि टेस्ट के दौरान ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव ही नजर आता है. इस ब्लड में एच एंटीजन पाया जाता है, इसलिए सिर्फ ऑटोमेटेड मशीन द्वारा टेस्ट कराए जाने पर ही बॉम्बे ब्लड ग्रुप की पहचान की जा सकती है. यह भी पढ़ें: ब्लड ग्रुप में छुपा है आपकी पर्सनैलिटी का राज, जानिए कैसा है आपका व्यक्तित्व

इस ब्लड ग्रुप को नहीं किया जाता स्टोर

बॉम्बे ब्लड ग्रुप निगेटिव को और भी ज्यादा रेयर माना जाता है और इस ब्लड ग्रुप का मिलना बेहद मुश्किल होता है. दरअसल, ब्लड बैंक सभी ब्लड ग्रुप के ब्लड को स्टोर करके रखते हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर फौरन मरीज तक खून पहुंचाया जा सके, लेकिन बॉम्बे ब्लड ग्रुप को स्टोर करके नहीं रखा जा सकता. ऐसे में जब किसी मरीज को इस ब्लड ग्रुप की जरूरत पड़ जाती है तो उसकी जिंदगी पर बन आती है. हालांकि कई ब्लड बैंक अपने पास डोनर का डेटा रिकॉर्ड करके रखते हैं. ताकि इस ब्लड ग्रुप की जरूरत पड़ने पर डोनर से संपर्क करके उसे मरीज के पास पहुंचाया जा सके.

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