Mokshada Ekadashi 2022: कब है मोक्षदा एकादशी? जानें इस एकादशी का महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त, मंत्र और व्रत कथा!
हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास शुक्लपक्ष के 11वीं तिथि को मोक्षदा एकादशी का व्रत एवं पूजन होता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत एवं पूजन से तमाम तरह के शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक कष्ट दूर होते हैं, और जैसा कि इसके नाम से आभास होता है कि इस व्रत को करने वाले जातक को जीवन के अंतिम चरण में मोक्ष की प्राप्ति होती है.
हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास शुक्लपक्ष के 11वीं तिथि को मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) का व्रत एवं पूजन होता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत एवं पूजन से तमाम तरह के शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक कष्ट दूर होते हैं, और जैसा कि इसके नाम से आभास होता है कि इस व्रत को करने वाले जातक को जीवन के अंतिम चरण में मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस वर्ष विभिन्न ग्रहों के काल चक्र के कारण दूसरी बार मोक्षदा एकादशी व्रत मनाई जायेगी. यह मोक्षदा एकादशी व्रत 3 दिसंबर 2022, शनिवार को रखा जायेगा. आइये जानें मोक्षदा एकादशी व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र एवं व्रत कथा के बारे में विस्तार से...
मोक्षदा एकादशी का महत्व
जैसा कि इस एकादशी व्रत के नाम से ही पता चल जाता है, इस व्रत को विधि-विधान के साथ करने और भगवान श्रीहरि की पूजा करनेवाले जातक मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही उसके जीवित रहते हुए उसे किसी भी प्रकार की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता, तथा उसके सारे पापों से उसे मुक्ति मिलती है, तथा पितरों की आत्मा को भी संतुष्टि मिलती है. पुराणों के अनुसार इसी दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, जिसे बाद में भागवत गीता का स्वरूप दिया गया. इसीलिए इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन गीता को सुनना अथवा सुनाना दोनों ही पुण्यदायक माना जाता है. यह भी पढ़ें : Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2022: गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस पर अपनों संग शेयर करें उनके ये 10 अनमोल विचार
मोक्षदा एकादशी 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त
मोक्षदा एकादशी प्रारंभः 05.39 PM (02 दिसंबर 2022) से
मोक्षदा एकादशी समाप्तः 05.34 PM (03 दिसंबर 2022) तक
पारण का समयः 13.14 PM से 15.19 PM (4 दिसंबर 2022) तक
मोक्षदा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि
मोक्षदा एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. इसके बाद विष्णुजी की प्रतिमा या तस्वीर को घर के मंदिर के पास स्थापित करें. उनका पंचामृत से अभिषेक करें. अब उन्हें चंदन, रोली, अक्षत अर्पित करें. अब पीला फूल, वस्त्र, अक्षत्, धूप, दीप, पान, तुलसी पत्र आदि अर्पित करें. इसके पश्चात विष्णुजी को खीर, केला, श्रीफल और केसर भात का भोग लगाएं. अब प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करते हुए निम्न मंत्र का 108 जाप करें.
ॐ ब्रह्म बृहस्पतये नमः
जाप के पश्चात विष्णु चालीसा, विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें. मोक्षदा एकादशी व्रत कथा का श्रवण करें. एकादशी व्रत कथा के समापन के बाद श्रीहरि की विधिपूर्वक आरती करें. उसके बाद अपनी मनोकामना व्यक्त करें. प्रसाद लोगों में वितरित कर दें. अगले दिन प्रात: स्नान आदि करके भगवान विष्णु की पूजा करें और पारण करके व्रत को पूरा करें.
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में वैखानक नामक राजा गोकुल नगर पर राज्य करता था. वह अपनी प्रजा को पुत्र के समान प्यार करता था. एक दिन राजा को स्वप्न आया कि उसके पूर्वज नरक में भयंकर कष्ट भोग रहे हैं, और राजा से नर्क से मुक्ति दिलाने की याचना कर रहे हैं. अपने पूर्वजों को दुखी देख कर राजा चिंतित हो गया. राजा ने अगले दिन राज्य के प्रमुख विद्वानों को अपने पास बुलाकर उनसे अपने पूर्वजों से मुक्ति दिलाने का उपाय पूछा. राजा ने कहा कि वह अपने पिता की शांति के लिए किस तरह का तप, दान और पूजा करें. तब ब्राह्मणों ने बताया कि राजा को पर्वत ऋषि के आश्रम में जाने का सुझाव दिया. उनके सुझाव पर राजा पर्वत ऋषि के आश्रम में गया. ऋषि के सुझाव पर राजा ने मोक्षदा एकादशी का व्रत रखा और विधि विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना किया. उनकी पूजा और व्रत करने से पूर्वजों को मुक्ति मिल गयी.