Jara Jivantika Puja 2022: जरा जीवंतिका पूजा से महाराष्ट्र में श्रावण की शुरुआत, जानिए पूजा के अनुष्ठान और महत्व

: श्रावण का महीना हिंदू कैलेंडर के अनुसार साल का पांचवा महीना है. आज से श्रावण मास शुरू हो गया है. श्रावण का महीना कई त्योहारों, रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों के साथ आता है. कुल मिलाकर हर्ष और उल्लास का श्रावण मास शुरू हो गया है और इस साल के श्रावण की शुरुआत जरा जीवनिका पूजा (Jara jivantika Puja 2022) से हो गई है...

Jara jivantika Puja 2022 (Photo: File Image)

Jara Jivantika Puja 2022: श्रावण का महीना हिंदू कैलेंडर के अनुसार साल का पांचवा महीना है. आज से श्रावण मास शुरू हो गया है. श्रावण का महीना कई त्योहारों, रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों के साथ आता है. कुल मिलाकर हर्ष और उल्लास का श्रावण मास शुरू हो गया है और इस साल के श्रावण की शुरुआत जरा जीवनिका पूजा (Jara jivantika Puja 2022) से हो गई है. प्रत्येक शुक्रवार को जरा जीविका पूजा करने की प्रथा है. इस बार जरा जीविका पूजन 29 जुलाई, 5, 12, 19, 26 अगस्त को किया जाएगा. इस मौके पर आइए जानते हैं जीविका पूजा का महत्व. यह भी पढ़ें: सावन माह में करें भगवान शिव का महारुद्राभिषेक! जानें किन-किन लोगों को महारुद्राभिषेक करवाना चाहिए और इससे क्या लाभ प्राप्त होता है?

जरा जीविका पूजा विधि:

महाराष्ट्र में श्रावण के प्रत्येक शुक्रवार को ऐसी ही जीवती पूजा की जाती है. उसके लिए, कई छोटे बच्चों के साथ एक जीवंत तस्वीर है दीवार पर लगाई जाती है या गंध से रंगा जाता है. ऐसी तस्वीर लो और फिर उसकी पूजा करो. इस पूजा के लिए दूर्वा, फूल, आग के पत्तों का होना जरूरी माना जाता है. हमें तीनों की माला बनाकर जीवंत तस्वीर को पहनाई जाती है. पूरण पोली और वरण का भोग लगाना चाहिए. फिर जिन महिलाओं को पूजा में आमंत्रित किया जाता है उन्हें हल्दी कुमकुम लगाकर भोजन कराना चाहिए.

जरा जीविका पूजा की कहानी:

जरा मूल रूप से एक राक्षस था. वह मगध देश में रहता था. मगध के एक वृद्ध राजा के शरीर के दो अलग-अलग अंगों वाला एक पुत्र था. जैसे ही वह पैदा हुआ, उसे शहर से बाहर निकाल दिया गया. उस समय इस छोटे से राक्षस ने दोनों शरीर के भागों को एक साथ मिला दिया और शिशु को जीवनदान दिया. जिसके बाद उस बालक को 'ज़रासंध' हम्मा के नाम से जाना जाने लगा. बाद में मगध देश में दानव का पर्व मनाया जाने लगा. लोग उन्हें कई बच्चों की मां समझने लगे. घर-घर जाकर उनकी पूजा की जाती थी.

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