कैसे ताकतवर बन गए कुछ पासपोर्ट

अंतरराष्ट्रीय यात्रा कितनी आसान या चुनौती भरी होगी, ये आपके पासपोर्ट के रंग पर भी निर्भर करता है.

कैसे ताकतवर बन गए कुछ पासपोर्ट
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अंतरराष्ट्रीय यात्रा कितनी आसान या चुनौती भरी होगी, ये आपके पासपोर्ट के रंग पर भी निर्भर करता है. ऐसा क्यों है?इस अनुभव का आगाज वीजा एप्लिकेशन से ही शुरू हो जाता है. उदाहरण के लिए जर्मन पासपोर्टधारकों को ही लें, वे बहुत आसानी से कंबोडिया जा सकते हैं. अगर उनका पासपोर्ट अगले छह महीने के लिए मान्य हो तो वे बर्लिन में कंबोडिया के दूतावास में 40 यूरो की वीजा फीस जमाकर आराम से 30 दिन का टूरिस्ट वीजा हासिल कर सकते हैं. इसके ऑनलाइन सेवा भी मौजूद है, जहां 36 यूरो की फीस देकर तीन दिन के भीतर यही टूरिस्ट वीजा लिया जा सकता है. तीसरा रास्ता भी है और वो ये है कि जर्मन नागरिक सीधे कंबोडिया पहुंच जाएं और वहां एयरपोर्ट पर वीजा ऑन अराइवल ले लें.

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लेकिन अगर कोई कंबोडियाई पासपोर्ट धारक जर्मनी आना चाहे तो ये तस्वीर अस्त व्यस्त हो जाती है. कंबोडियाई नागरिक को एक आमंत्रण पत्र की जरूरत पड़ती है, उसे पर्याप्त बैंक बैलेंस दिखाने के लिए छह महीने के बैंक स्टेटमेंट देने पड़ते हैं. साथ ही अन्य निजी दस्तावेजों के साथ साथ अपनी आय और संपत्ति का सबूत भी देना पड़ता है. वीजा एप्लिकेशन की फीस 80 यूरो है, वो भी कैश. ये रकम नॉन रिफंडेबल है यानि आवेदन रद्द हुआ तो पैसा भी गया. अपनी पहचान छुपाने की शर्त पर अरुण नाम के एक कंबोडियाई व्यक्ति ने कहा, "वे आपसे कुछ सवाल भी पूछते हैं और अगर उन्हें लगा कि आप भरोसेमंद है तो वे आपको वीजा दे देंगे." अरुण वीजा एप्लिकेशन प्रोसेस से गुजर चुके हैं.

ऐसे में ये सवाल जरूर उठता है कि अलग अलग पासपोर्टों की ताकत इतनी जुदा क्यों है? इसका एक जवाब है आर्थिक स्थिति.

पैसा बोलता है

हेनली एंड पार्टनर्स नाम की एक रेजीडेंस और सिटीजनशिप एडवाइजरी फर्म और इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आईएटीए) नियमित रूप से दुनिया के ताकतवर और कमजोर पासपोर्टों की रैंकिंग करते हैं. रैंकिंग के दौरान यह देखा जाता है कि किस पासपोर्ट के साथ कितने देशों में वीजा फ्री या वीजा ऑन अराइवल के तहत दाखिल हुआ जा सकता है.

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इसकी ताजा रिपोर्ट में जी7 के देशों, जापान, जर्मनी, स्पेन, इटली, फ्रांस, ब्राजील, अमेरिका और कनाडा को दुनिया के सबसे ताकतवर पासपोर्टों की लिस्ट में रखा गया है. सबसे ऊपर जापान का पासपोर्ट है, जिसके साथ कम से कम 193 देशों में आसानी से जाया जा सकता है. दुनिया की पूरी जीडीपी में जी7 की हिस्सेदारी 40 फीसदी से ज्यादा है. इन्हीं देशों में से कुछ में जीडीपी प्रति व्यक्ति भी सबसे ज्यादा है. ये अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आंकड़े हैं.

हेनली एंड पार्टनर्स के मुताबिक, "अमीर देशों के नागरिकों के लिए दूसरे देश अपनी सीमाएं खोलने के ज्यादा इच्छुक दिखते हैं क्योंकि ऐसा करने से कारोबार, पर्यटन और निवेश के रूप में बड़े आर्थिक लाभ मिलने की संभावना रहती है."

हेनली एंड पार्टनर्स का कहना है कि इसके उलट, "ऊंची गरीबी दर और आर्थिक अस्थिरता वाले देशों के पासपोर्ट होल्डरों को, वीजा अवधि से ज्यादा समय तक रहने का जोखिम पैदा करने वालों की तरह देखा जाता है." इसी कारण उनके आगमन पर कई तरह की शर्तें और बंदिशें लगाई जाती हैं.

कंबोडियाई पासपोर्ट धारक अरुण कहते हैं, "कंबोडिया एक गरीब देश है, इसीलिए इसका यात्रा दस्तावेज भी कम शक्तिशाली है." हेनली एंड पार्टनर्स ने कंबोडिया के पासपोर्ट को दुनिया के सबसे कमजोर यात्रा दस्तावेजों में रखा है. इसके जरिए 50 से ज्यादा देशों में वीजा फ्री एक्सेस मिलती है.

रंग बदला, नजरिया बदला

मोहम्मद बर्लिन में रहने वाले एक पत्रकार हैं. वह डीडब्ल्यू से अपनी पूरी पहचान न जाहिर करने की दरख्वास्त करते हैं. मोहम्मद को कमजोर से ताकतवर पासपोर्ट तक का बदलाव महसूस करने का अनुभव है. पहले उनके पास दुनिया के सबसे कमजोर पासपोर्टों में शामिल पाकिस्तान का पासपोर्ट था. उससे वे करीब 32 देशों में वीजा फ्री एंट्री कर सकते थे. अब मोहम्मद जर्मन नागरिक बन चुके हैं.

मोहम्मद कहते हैं, "पाकिस्तानी पासपोर्ट के साथ मुझे हमेशा एक लंबी, जटिल वीजा प्रोसेस से गुजरना पड़ता था और वीजा एप्लिकेशन रद्द होने की संभावना हमेशा बनी रहती थी. इसके साथ ही, अगर आप कुछ देशों में जाते हैं, खासतौर पर मध्य पूर्व में तो, आपको अतरिक्त सवाल जवाब के लिए अलग लाइन में खड़ा होना पड़ता है."

लेकिन अब मोहम्मद के पास जर्मन पासपोर्ट है, "मैं जर्मन पासपोर्ट का अंतर साफ तौर पर देख पाता हूं. मुझे सिर्फ कुछ ही देशों के लिए वीजा आवेदन करना पड़ता है. मैं वीजा ऑन अरावल एंट्री से कई देशों में घूम सकता हूं."

पासपोर्ट की नीलामी

कुछ समय पहले तक यूरोपीय संघ के देश किसी तीसरे देश के नागरिक को ईयू पासपोर्ट खरीदने की छूट देते थे. लेकिन इसकी शर्त ये थी कि ऐसे लोगों को उस देश में अच्छा खासा निवेश करना होगा. राजनीतिक दबाव के कारण अब ऐसी स्कीमों को बंद कर दिया गया है. लेकिन यह ट्रेंड अब मध्य पूर्व के देशों शुरू हो चुका है और ऐसे करने वाले वे अकेले नहीं हैं.

मध्य पूर्व में क्यों बढ़ रहा गोल्डन वीजा और पासपोर्ट का चलन

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के रोलांड पाप के मुताबिक यूरोपीय संघ के सदस्यों में शामिल माल्टा आज भी निवेश के बदले पासपोर्ट दे रहा है. अमीरों को यूरोपीय संघ का पासपोर्ट बेचने की यह रियायत हमेशा विवादों में रही है.

पाप कहते हैं कि जो लोग सामान्य तरीके से अपना पासपोर्ट बदलते हैं, उन्हें लंबी प्रशासनिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ, "आपको ये सोचना होगा कि ये हमारे लोकतंत्र के बारे में क्या बताता है कि यहां कुछ अधिकार हैं, जैसे अगर आप पर्याप्त अमीर है तो आपको ये मिल जाएगा और अगर आप गरीब हैं तो आपको संघर्ष करना पड़ेगा."

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