Holi 2024: कैसे मिटेंगे होली के ये दाग-धब्बे? जानें वो 9 कारण जो बदरंग कर रहे हैं सौहार्द और सद्भावना के इस पर्व को!

एक समय था, जब होली का पर्व आपसी भाईचारा, सौहार्द और सद्भावना का प्रतीक माना जाता था, लोग पुराने वैर-भाव भूलकर होली के रंग में डूब जाते थे, फगुवा गाते, नृत्य करते और गुझिया एवं मिठाइयों का स्वाद लेते थे, लेकिन बदलते वक्त के साथ होली के रंग निरंतर बदरंग हो रहे हैं.

हैप्पी होली (Photo Credits: File Image)

एक समय था, जब होली का पर्व आपसी भाईचारा, सौहार्द और सद्भावना का प्रतीक माना जाता था, लोग पुराने वैर-भाव भूलकर होली के रंग में डूब जाते थे, फगुवा गाते, नृत्य करते और गुझिया एवं मिठाइयों का स्वाद लेते थे, लेकिन बदलते वक्त के साथ होली के रंग निरंतर बदरंग हो रहे हैं. आज प्राकृतिक रंगों के बजाय पेंट, वार्निश, केमिकल रंग, कीचड़ आदि का इस्तेमाल किया जा रहा हैं, रंग-भरे गुब्बारे लोगों को चोटिल कर रहे हैं. शराबी खुले आम उत्पात मचाते हैं. होली पर आपराधिक घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, जिससे लोगों का इस पर्व के प्रति रुझान कम हो रहा है, होली के दिन लोग खुद को घरों में कैद करना पसंद कर रहे हैं. रंगों के दाग-धब्बे तो एक-दो दिन में उतर जाते है, लेकिन होली के बिगड़ते स्वरूप के ये बदनुमा दाग कब दूर होंगे. आइये बात करते हैं होली को बदरंग बनानेवाले दस कारणों की.

* पहले के दिनों में होली खेलने के बाद रंग छुड़ाने में भी आनंद आता था. लेकिन केमिकल पेंट, वार्निश आदि छुड़ाने में त्वचा की जो दुर्गति हो रही है, उसके बाद हर कोई उस रंग से दूर रहने की कोशिश करता है.

* जब होली के फगुवा के संगीत में डूब कर होली खेली जाती थी, तो होली की पुरानी परंपराएं याद आती थी, लेकिन आज होली की मस्ती के साथ मन की गंदगी, गालियां, वस्त्रहीन होकर गली-सड़कों पर शोर मचाना, लड़कियों से छेड़छाड़ करने से होली लगातार बदरंग होता जा रहा है.

* आज होली के नाम पर शोर मचाता डीजे, शराब पीकर अश्लील नृत्य करते लोग होली को लगातार बदरंग बना रहे हैं.

* दो-तीन दशक पूर्व तक होली खेलने के लिए पुराने कपड़े निकाले जाते थे, और रंग खेलने के बाद उसका पोछा लगाया जाता था, लेकिन आज होली के लिए डिजाइनर कपड़े बनवाये जाते हैं. यह परंपरा उच्च वर्ग से मध्यम वर्ग में आने से माता-पिता के लिए होली एक समस्या बनती जा रही है.

* पहले के समय में होली से दो दिन पहले से घरों में गुझिया, पापड़, चिप्स आदि बनाये जाते थे, तो लगता था कि होली आ गई है, लेकिन इन दिनों होली के दिन आज की पीढ़ी मैकडोनाल्ड से पिज्जा, बर्गर, मोमोज, पास्ता आदि मंगा कर होली सेलिब्रेट किया जाता है.

* पिछले कुछ सालों से होली में गुब्बारे फेंकने का प्रचलन बहुत ज्यादा बढ़ा है, जिसकी वजह से हर साल दुर्घटनाएं हो रही हैं, गुब्बारों में केमिकल रंग भरे होने से आँखों के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है.

* जब तक प्राकृतिक रंगों और पिचकारियों से होली खेली जाती थी, तब होली का उमंग देखते बनता था, लेकिन जब से केमिकल रंग, पेंट, वार्निश अथवा कीचड़ ने रंगों की जगह ले ली है, होली के प्रति वह उमंग और उत्साह निरंतर खत्म होता जा रहा है.

* रासायनिक रंग आंखों में जाने से आंखें लाल हो जाती हैं, जिससे खुजली या जलन होती है. इस वजह से आंखों में एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस, कॉर्निया एब्रेजन, ब्लंट आई इंजरी जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, कुछ मामलों में आंखों से रोशनी जाने की भी शिकायत सुनने को मिलती है.

* होली के पर्व को बदनाम करने में सबसे बड़ी भूमिका शराब की है. लोग शराब पीकर ‘बुरा न मानो होली है’ के बहाने राह चलते लोगों को परेशान करते हैं. महिलाओं से छेड़छाड़ करते हैं.

आखिर कैसे धुलेंगे होली पर लगे दाग?

सौहार्द एवं सद्भावना वाली होली पर लग रहे बदनुमा दाग को खत्म करके ही होली के पुराने स्वरूप को वापस लाया जा सकता है, ताकि लोग एक बार फिर रंगों में डूब कर फगुआ में डूब जाएं

‘होली खेले रघुवीरा बिरज में होली खेले रघुवीरा...’

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