Holi 2023: कब है होली? जानें इतिहास के पन्नों में दर्ज मुगल बादशाहों की होली के रोचक संस्मरण

सनातन धर्म में होली पर्व का विशेष महत्व है. होलिका-दहन जहां बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाई जाती है, वहीं रंगों की होली आपसी भाईचारे और सौहार्द का संदेश देता है. आमतौर पर संपूर्ण देश में होली दो दिन मनाई जाती है. फाल्गुन पूर्णिमा की रात होलिका-दहन होने के बाद अगले दिन यानी ढोल पूर्णिमा पर रंगों और अबीर-गुलाल गुलाल की होली खेलते हैं.

ब्रज की होली (Photo Credits: File Image)

सनातन धर्म में होली पर्व का विशेष महत्व है. होलिका-दहन जहां बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाई जाती है, वहीं रंगों की होली आपसी भाईचारे और सौहार्द का संदेश देता है. आमतौर पर संपूर्ण देश में होली दो दिन मनाई जाती है. फाल्गुन पूर्णिमा की रात होलिका-दहन होने के बाद अगले दिन यानी ढोल पूर्णिमा पर रंगों और अबीर-गुलाल गुलाल की होली खेलते हैं. भगवान श्री कृष्ण की नगरी ब्रज में 40 दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है. मुगलकाल में भी विभिन्न बादशाह अपने-अपने तरीके से होली का त्यौहार मनाते थे. इसे धूलिवंदन के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष होलिका-दहन 6 फरवरी और रंगों की होली का पर्व 7 फरवरी 2023, मंगलवार को मनाया जायेगा. फिलहाल बात करेंगे इतिहास के पन्नों मे दर्ज होली के रंगों से सजी झलकियां...

होली का इतिहास

होली भारत का प्राचीनतम त्यौहार है, जो किसी समय होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था. इतिहासकारों की मानें तो आयरें में होली त्यौहार का प्रचलन था, लेकिन आमतौर पर होली पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था. प्राचीन धार्मिक पुस्तकों जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र, कथा गार्ह्य-सूत्र,  नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण आदि की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में होली पर्व के संदर्भ में काफी कुछ उल्लेखित है. इसके अलावा विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी होली पर्व का उल्लेख है. यह भी पढ़ें : Death Anniversary of Madhubala: एक अदद ‘प्यार’ को तरसती रुखसत हुई थीं मल्लिका-ए-तरन्नुम! जानें मधुबाला के जीवन के प्रेम प्रसंग!

सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है. भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में होली के महत्व का उल्लेख किया है. इतिहास में अंकित होली की तस्वीरें बताती हैं कि इस पर्व को हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मनाते थे.

मुगल बादशाहों की होली

प्राचीन इतिहास के अनुसार होली के पर्व में मुगल बादशाहों ने भी अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया. अकबर, हुमायूँ, जहाँगीर, शाहजहाँ और बहादुर शाह ज़फर होली के आगमन से बहुत पहले ही रंगोत्सव की तैयारियां शुरू करवा देते थे. अकबर के महल में सोने चांदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसू का रंग घोला जाता था और बादशाह अपनी बेगमों और हरम की सुंदरियों के साथ होली खेलते थे. संध्याकाल के समय मुशायरे, कव्वालियों और नृत्य-गानों की महफ़िलें जमती थीं, इस दरम्यान सेवकों द्वारा महल में उपस्थित मेहमानों को ठंडाई, मिठाई और पान इलायची से स्वागत किया जाता था.

जहांगीर के शासन काल में महफि़ल-ए-होली का जश्न आयोजित किया जाता था. इस दिन बादशाह की तरफ से खुली छूट होती थी कि उनके राज्य का आम आदमी भी उनके साथ होली खेल सकता है. शाहजहां अगर होली के त्यौहार को गुलाबी ईद के रूप में मनाते थे, बहादुर शाह जफर को रंगों की होली खेलने का बहुत शौक था. मुगल काल में होली के अवसर पर लाल किले के पीछे बहती यमुना नदी के तट पर आम के बाग में होली के मेले लगते थे. मुगल भित्त चित्रों में इस तरह के दृश्य दिखते हैं. इन भित्त चित्रों में अकबर जोधाबाई और जहांगीर नूरजहां के बीच भी होली के दृश्य दिखते हैं. इतिहास में वर्णित है कि शाहजहां के शासन काल में होली को ईद-ए-गुलाब या आब-ए-पाशी अर्थात रंगों की बौछार कहा जाता था.

Share Now

\