World Spine Day 2019: रीढ़ की हड्डी से जुड़े विकारों के प्रति जागरूकता का दिन है वर्ल्ड स्पाइन डे, जानिए इस बीमारी के कारण, लक्षण और बचाव के तरीके
वर्ल्ड स्पाइन डे 2019 (Photo Credits: Wiki)

World Spine Day 2019: मानव शरीर (Human Body) का हर एक अंग (Organs) बेहद महत्वपूर्ण होता है, इसलिए उन अंगों में से अगर किसी एक में भी खराबी आ जाए तो उससे पूरा शरीर प्रभावित होता है. शरीर के इन महत्वपूर्ण अंगों में से एक है स्पाइनल कॉर्ड यानी रीढ़ की हड्डी (Spine). जी हां, अगर रीढ़ की हड्डी में किसी तरह का विकार आ जाए तो इससे व्यक्ति विकलांगता का शिकार भी हो सकता है. रीढ़ की हड्डी संबंधी विकारों (Spinal Disorder) के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से ही हर साल 16 अक्टूबर को विश्व स्पाइन दिवस मनाया जाता है. विश्व स्पाइन दिवस को आधिकारिक तौर पर साल 2012 में वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ चिरोप्रैक्टिक (World Federation of Chiropractic) द्वारा शुरू किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य रीढ़ की हड्डी के स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जागरूक करना था.

हालांकि हर साल इस दिवस को एक अलग थीम के साथ मनाया जाता है और लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक किया जाता है. साल 2019 का थीम #GetSpineActive रखा गया है. यह विषय गर्दन और पीठ के दर्द से राहत दिलाने वाले एक्सरसाइज करने के लिए प्रेरित करता है. साल 2012 में इसका विषय #StraightenUpAandMove था. चलिए विश्व स्पाइन दिवस पर जानते हैं इस बीमारी के कारण, लक्षण और बचाव के तरीके.

कारण-

इस बीमारी के कई कारण हो सकते हैं जैसे- रुमैटिक गठिया, स्पाइनल टीबी, स्पाइनल ट्यूमर, स्पाइनल संक्रमण की वजह से रीढ़ की हड्डी से जुड़े विकार हो सकते हैं. कई बार सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रीढ़ से जुड़ी समस्या के कारण स्पाइनल कैनाल सिकुड़ जाता है और स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव ज्यादा बढ़ जाता है. इसके अलावा कई बार स्पोर्ट्स, डाइविंग या किसी एक्सीडेंट की वजह से रीढ़ की हड्डी के बीच स्थित डिस्क अपने स्थान से हटकर स्पाइनल कैनाल की ओर बढ़ जाती है, जिससे रीढ़ की समस्या बढ़ जाती है. यह भी पढ़ें: World Arthritis Day 2019: गठिया रोग के प्रति जागरूकता लाने का दिन है वर्ल्ड आर्थराइटिस डे, जानें इस बीमारी के कारण, लक्षण और समाधान

लक्षण-

  • सुन्नपन या झुनझुनी का एहसास होना.
  • पीठ, कमर और गर्दन में दर्द व जकड़न.
  • मल-मूत्र संबंधी समस्याएं पैदा हो जाना,
  • लिखने, बटन लगाने और खाना खाने में परेशानी.
  • शरीर को संतुलित रखने में दिक्कत महसूस होना.
  • चलने-फिरने, उठने-बैठने में परेशानी होना.
  • किसी चीज को उठाने या रखने में दिक्कत होना.

टेस्ट-

रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारी का पता लगाने के लिए मरीज का एमआरआई टेस्ट किया जाता है. इस टेस्ट के जरिए रीढ़ की हड्डी में संकुचन और इसके कारण स्पाइनल कॉर्ड पर पड़नेवाले दबाव की गंभीरता की जांच की जाती है. कई बार रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर होने का पता लगाने के लिए कंप्यूटर टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन, एक्स-रे इत्यादि की मदद ली जाती है.

इलाज-

रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारी का अगर शुरूआती दौर में पता चल जाए तो बगैर किसी ऑपरेशन के भी इसका इलाज किया जा सकता है. इस बीमारी के शुरूआती दौर में दर्द और सूजन कम करने वाली दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा रीढ़ की हड्डी को मजबूती और स्थिरता देने के लिए फिजियोथेरेपी की भी मदद ली जाती है. हालांकि कई बार जब यह बीमारी गंभीर हो जाती है तो इसका सर्जिकल इलाज किया जाता है. यह भी पढ़ें: World Arthritis Day 2019: आर्थराइटिस के दर्द को बढ़ा सकते हैं ये आहार, जानें गठिया से पीड़ित लोग क्या खाएं और क्या नहीं

बचाव-

हमारे उठने-बैठने के तौर तरीकों का हमारी रीढ़ की हड्डी पर प्रभाव पड़ता है. आपको रीढ़ की हड्डी से जुड़ी कोई बीमारी न हो इसके लिए कंप्यूटर पर अधिक देर तक काम करने से बचना चाहिए और काम करते समय कंप्यूटर का मॉनीटर सीधा रखना चाहिए. कुर्सी पर बैठते समय हमेशा उसके बैक पर अपनी पीठ सटाकर बैठना चाहिए. गर्दन या पीठ दर्द से राहत पाने के लिए फिजियोथेरेपी की मदद ली जा सकती है. अगर आपको देर तक गाड़ी चलानी पड़ती है तो ऐसी स्थिति में पीठ को सहारा देने के लिए तकिए का इस्तेमाल करें और सबसे अहम बात तो यह है कि इस रोग से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना बेहद जरूरी है.