बिहार में चमकी बुखार का कहर: जानें इसके लक्षण और इससे बचने के तरीके
चमकी के प्रारंभिक लक्षणों को देखते ही मरीज को ज्यादा से ज्यादा शुद्ध जल पिलाएं. तेज धूप में न जाने दें. ताप की तीव्रता कम करने के लिए मरीज के पूरे शरीर को साफ एवं फ्रेश पानी से पोंछते रहें. बुखार कम करने का प्रयास करें, इसके लिए बेहतर है माथे पर पट्टी रखें
दुनिया भर में मीठी लीची के लिए विख्यात बिहार का मुजफ्फरपुर शहर आज एक अजीबोगरीब ‘चमकी’ बुखार की त्रासदी झेल रहा है. सूत्रों के अनुसार इस बुखार का शिकार ज्यादातर बच्चे हो रहे हैं. ताजा आंकड़ों के अनुसार बिहार के मुजफ्फरपुर में करीब 140 बच्चे इस बुखार से अपनी जान गंवा चुके हैं. जबकि हजारों बच्चे मुजफ्फरपुर के विभिन्न अस्पतालों में अभी भी मौत से संघर्ष कर रहे हैं. कुछ लोग इस बीमारी की वजह लीची को मान रहे हैं, जबकि अधिकांश चिकित्सक इसे महज भ्रांति बता रहे हैं. वस्तुतः यह रहस्यमय बीमारी 1995 से ही बच्चों को अपना शिकार बनाती आ रही है. प्रत्येक वर्ष मई और जून का माह में बिहार के विभिन्न कस्बे इस बीमारी की चपेट में आने लगते हैं.
अब तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पाया गया है कि इस खतरनाक बीमारी का शिकार 1 से 15 साल तक के बच्चे ज्यादा हो रहे हैं. चमकी बुखार के संदर्भ में नई दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल के नियमित चिकित्सक डॉ जीतेंद्र सिंह गुसाई से कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर बात हुई.
क्या है चमकी बुखार
डॉ जीतेंद्र के अऩुसार चमकी बुखार वास्तव में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम है. इसे दिमागी बुखार भी कहा जाता है. यह इतनी खतरनाक और रहस्यमयी बीमारी है कि अभी भी इस बीमारी पर गहन शोध चल रहा है, इसके कारणों को तलाशा जा रहा है. चमकी बुखार में बच्चों के रक्त में शक्कर और सोडियम की कमी हो जाती है. सही समय पर मरीज का उचित इलाज नहीं किया जाये तो उसकी मौत भी हो सकती है.
चमकी बुखार के लक्षण
गर्मी का मौसम चरम पर आते ही तेज धूप और पसीना बहने से शरीर में पानी की कमी होने लगती है. इससे डिहाइड्रेशन, लो ब्लड प्रेशर, सिरदर्द, थकान, लकवा, मिर्गी, भूख ना लगना जैसे लक्षण दिख सकते हैं. चमकी बुखार के लक्षण भी कुछ ऐसे ही हैं. यह बीमारी शरीर के मुख्य नर्वस सिस्टम या तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है. बहुत ज्यादा गर्मी एवं नमी के मौसम में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के फैलने की रफ्तार बढ़ जाती है. चमकी बुखार के शुरुआती लक्षणों में देखा गया है कि मरीज को तेज बुखार होता है. फिर शरीर में ऐंठन महसूस होती है. शरीर का नर्वस सिस्टम निष्क्रिय होने लगता है. रक्त शर्करा कम हो जाती है. तेज बुखार के कारण मरीज बेहोश होने लगते हैं. कुछ बच्चों को दौरे भी पड़ते हैं. जबड़े और दांत अकड़ने लगते हैं. तेज बुखार और घबराहट के कारण मरीज कोमा में भी जा सकता है. इसलिए प्रारंभिक लक्षण देखते ही मरीज का इलाज शुरू हो जाना चाहिए. जरा सी लापरवाही मरीज को मौत के मुंह में भी धकेल सकती है.
प्रारंभिक लक्षण दिखे तो क्या करें
चमकी के प्रारंभिक लक्षणों को देखते ही मरीज को ज्यादा से ज्यादा शुद्ध जल पिलाएं. तेज धूप में न जाने दें. ताप की तीव्रता कम करने के लिए मरीज के पूरे शरीर को साफ एवं फ्रेश पानी से पोंछते रहें. बुखार कम करने का प्रयास करें, इसके लिए बेहतर है माथे पर पट्टी रखें. मरीज के शरीर से कपड़े हटा दें, उन्हें खुली हवा में रखे. मरीज को अस्पताल ले जाते समय कोशिश करें कि वह पीठ के बल नहीं बल्कि बाएं या दाएं करवट लेटे.
चमकी बुखार से बचने के उपाय
चूंकि अभी तक इस बुखार से ग्रस्त मरीजों में बच्चों की संख्या ज्यादा है, इसलिए चमकी बुखार से बचने के लिए अपने बच्चों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. गर्मी की तपन बढ़ते ही बच्चों को दिन में दो या तीन बार स्नान कराएं. निश्चित समयांतराल पर उन्हें नींबू-पानी-शक्कर का घोल पिलाती रहें. इसके अलावा छाछ, शिकंजी, तरबूज, खरबूज, खीरे जैसी चीजें नियमित रूप से देती रहें. कोशिश करें कि बच्चा भरपेट खाना जरूर खाये. यह संक्रामक बीमारी है, इसलिए अपने बच्चों को ऐसी जगह न जाने दें, जहां चमकी के मरीजों का इलाज चल रहा है. किसी व्यक्ति के इस बीमारी के संक्रमित हो जाने के बाद उसके मल-मूत्र, थूक, छींक आदि (शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ) के संपर्क में आने से दूसरे व्यक्ति में भी इंसेफ्लाइटिस के वायरस पहुंच सकते हैं.
क्या मीठी लीची से जुड़ा है चमकी बुखार
चमकी बुखार की एक वजह मीठी लीची भी बताई जा रही है. क्योंकि प्रत्येक वर्ष मई जून में लीची के आगमन के साथ ही इस खतरनाक बुखार का तांडव शुरू होता है. इस संभावना से हैदराबाद के सर्जन एयर कमांडर डॉक्टर एच एस अरोरा भी इंकार नहीं करते उनका कहना है कि लीची के गूदे और बीज में मेथिलीन साइक्लोप्रोपाइल नामक रसायन पाया जाता है. विशेषकर लीची के बीजों में high concentrated fatty oil होती है. जिसमें यह रसायन बनता रहता है. माना जाता है कि गरीब परिवार में इन बीजों के तेल इस्तेमाल भी किया जाता है. इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि लीची भी इस बीमारी का एक बड़ा कारण हो सकता है.