Guru Purnima 2024: गुरू में त्याग और शिष्यों में समर्पण के भाव ही स्वस्थ, समृद्ध और संतुलित समाज का निर्माण करते हैं!

'गु' शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और 'रु' का आशय है प्रकाश ज्ञान. अर्थात अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म रूपी प्रकाश है, वही गुरु है. भारत में प्राचीनकाल से आश्रमों में गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता रहा है.

Guru Purnima (img: file photo)

'गु' शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और 'रु' का आशय है प्रकाश ज्ञान. अर्थात अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म रूपी प्रकाश है, वही गुरु है. भारत में प्राचीनकाल से आश्रमों में गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता रहा है. गुरु की भूमिका समाज को सुधार की ओर ले जाने वाले मार्गदर्शक के रूप में होने के साथ क्रान्ति को दिशा दिखाने वाली भी रही है. भारतीय संस्कृति में आदिकाल से गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है. गुरू पूर्णिमा (21 जुलाई 2024) के अवसर पर आइये बात करते हैं, भारत में प्राचीन गुरू-शिक्षा पद्धति एवं गुरु-शिष्य के परस्पर संबंधों पर, जो किसी भी देश और समाज की सही दशा-दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः॥

गुरूकुल शिक्षा पद्धति में गुरु-शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान का आदान प्रदान नहीं होता था, बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता था. शिष्य कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था कि गुरु कभी उसका अहित भी सोच सकते हैं. यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण रहा है यह भी पढ़ें : Gajanana Sankashti Chaturthi 2024: इन शुभ योगों में करें गजानन संकष्टी की पूजा! नष्ट होंगी नकारात्मक शक्तियां! जानें मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा-विधि!

गुरू-शिष्य शिक्षा की प्राचीन पद्धति

गीता में उल्लेखित है, कि ‘जीवन को आकर्षक, निष्काम और निर्दोष बना पाना सबसे बड़ी विद्या है, इस विद्या को सिखाने वाला ही ‘सद्गुरू’ कहलाता है.’ स्वामी विवेकानंद का भी मानना था कि ‘सद्गुरू वही है, जिसे गुरू पंरपरा से आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त हुई हो, वह शिष्य के पापों को स्वयं पर ले लेता है.’ परंपरानुसार गुरू अपना संपूर्ण ज्ञान अपने शिष्य को सौंपते हुए भूत, भविष्य और वर्तमान से परिचय करवाते थे. एक समय ऐसा भी था, जब गुरु-शिष्य परम्परा में महान वैभवशाली राजाओं के पुत्र भी अन्य छात्रों की भांति गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करते थे. राजा, मंत्री अथवा विशिष्ठ व्यक्ति की संतान होने के बावजूद उन्हें अतिरिक्त सुविधा नहीं दी जाती थी. सभी ब्रह्मचारी के रूप में कठिन नियमों का पालन करते हुए गुरुकुल में रहते थे.

गुरू-शिष्य संबंध ही बनाते हैं समृद्ध और संतुलित समाज!

गुरू-शिष्य के बीच बेहतर संबंध एक स्वस्थ, समृद्ध और संतुलित राष्ट्र एवं समाज का निर्माण करता है. इसके माध्यम से ही ज्ञान, संस्कार और सामाजिक मूल्यों का आदान-प्रदान होता है. राष्ट्र एवं समाज को संतुलन और समृद्धि प्रदान करने वाले कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं.

ज्ञान का प्रसार: गुरू-शिष्य के संसर्ग में ज्ञान का परंपरागत प्रसार होता है. शिक्षा और ज्ञान का आदान-प्रदान गुरू के मार्गदर्शन में विशेष रूप से होता है, जो छात्र के विकास में महत्वपूर्ण होता है.

सामाजिक समरसता: गुरू-शिष्य संबंध समाज की सामाजिक समरसता को बढ़ाते हैं. ये संबंध विभिन्न वर्गों, समुदायों को एक छत के नीचे लाते हैं और सामूहिक एकता एवं सौहार्द को स्थापित करते हैं.

चरित्र निर्माण: गुरू के दिशा-निर्देशन में शिष्य के चरित्र में सकारात्मक विकास होता है. गुरू के आदर्शों एवं उनकी शिक्षाओं से शिष्य नैतिकता, ईमानदारी और समाजसेवा के प्रति समर्पण क्रमशः विकसित होता है.

समृद्धि का संवर्धन: गुरू-शिष्य संबंध से युवाओं में आत्मविश्वास और स्वावलंबन की भावना विकसित होती है, जो उन्हें समृद्धि की ओर ले जाने में मदद करती है.

Share Now

\