भारत सरकार ने बीते वर्ष दो बड़े फैसले किए, पहला ब्रू-रियांग समझौता और सीएए. पहला समझौता पत्र है तो दूसरा कानून है, जिसके हम सभी संशोधित नागरिकता कानून के नाम से जानते हैं. ये दोनों फैसले उन विस्थापितों के दर्द को ध्यान में रखते हुए लिया गया, जो देश के विकास की मुख्यधारा से अलग-थलग थे। यूं कहिये कि एक रिफ्यूजी के रूप में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. एक रिफ्यूजी का जीवन कैसा होता है, उसे जीवन में किस-किस प्रकार के कष्ट सहने पड़ते हैं, इसका अंदाजा हम और आप महज खबरें पढ़कर नहीं लगा सकते.
खैर केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों में रिफ्यूजी हैं, कहीं संख्या ज्यादा है, तो कहीं कम. रिफ्यूजियों के प्रति दुर्व्यवहार न हो, उनके प्रति लोग संवेदनशील बनें, और उन्हें भी समाज का हिस्सा मानें, इसी उद्देश्य से हर साल 20 जून को विश्व रिफ्यूजी दिवस मनाया जाता है. स्थिति का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि दुनिया में हर मिनट 20 लोग अपना देश मजबूरी में छोड़ देते हैं. यह भी पढ़े: World Environment Day 2020: विश्व पर्यावरण दिवस- पृथ्वी की मुस्कुराहट लौटाने का समय
इतिहास के पन्नों से
संयुक्त राष्ट्र महासभा के नेतृत्व में पहली बार विश्व रिफयूजी दिवस 20 जून 2001 को मनाया गया. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य रिफ्यूजियों के प्रति संवेदनशीलता उनकी सहायता करना है.साथ ही वो कैसे अपनी एक नई दुनिया बसा सकते हैं, इस बात पर बल दिया जाता है। रिफ्यूजी कैसे अपने देश वापस लौट सकते हैं या जिस देश में हैं, वहां कैसे अपना पन प्राप्त कर सकते हैं, इन सब बातों को मानवता से जोड़ते हुए इस दिन को मनाया जाता है.
यह दिनांक 20 जून इसलिए रखी गई, क्योंकि इसी दिन अफ्रीकन रिफ्यूजी दिवस मनाया जाता था. रिफ्यूजियों का स्वागत करने के मामले में अफ्रीकी देशों के लोग काफी आगे माने जाते हैं. रिफ्यूजी तीन प्रकार के होते हैं, पहले जिन्हें जीवन की कठिन परिस्थतियों में अपना देश छोड़ना पड़ता है और दूसरे वो होते हैं, जिन्हें अपना प्रदेश या शहर छोड़ना पड़ता है। और तीसरे वो होते हैं, जिनके पास किसी भी देश की नागरिकता नहीं होती हैं.
कुछ तथ्य जो आपको जानने चाहिए
पूरे विश्व में देखें तो हर एक मिनट में 20 लोग मजबूरन अपना देश छोड़ देते हैं, जिसके पीछे की वजह या तो युद्ध होती है, या फिर बहुत प्रताड़ित होकर वो ये कदम उठाते हैं। बहुत से ऐसे होते हैं, जिन्हें जबरन देश से निकाल दिया जाता है.अधिकांश रिफ्यूजी रंगभेद, राष्ट्रीयता, धर्म और जाति की वजह से प्रताड़ित किए गए। वहीं कई ऐसे भी हैं, जिन्हें प्राकृतिक आपदा की वजह से अपना देश छोड़ना पड़ा. नागरिकता के प्रमाण नहीं होने की वजह से दुनिया भर में रिफ्यूजियों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, नौकरी, आदि से वंचित रखा जाता है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार रिफ्यूजियों के अधिकार
> आपको बता दें कि 1951 में संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में रिफ्यूजियों के अधिकारों को सुनिश्चित किया गया था। वो अधिकार निम्न हैं-
> बिना किसी सख्त कानून के किसी भी रिफ्यूजी को देश से बाहर नहीं निकाला जा सकता है.
> सरकार उन्हें अवैध रूप से देश में प्रवेश करने के जुर्म में सजा नहीं दे सकती है.
> उन्हें काम करने का अधिकार है
> रिफ्यूजियों को रहने का अधिकार है
> रिफ्यूजियों को पढ़ने का अधिकार है.
> कठिन परिस्थिति में सरकार द्वारा दी जाने वाली राहत एवं सहायता प्राप्त करने का अधिकार है
> उन्हें अपने मन मुताबिक धर्म चुनने का अधिकार है.
> अन्याय होने पर रिफ्यूजी कोर्ट में अपील कर सकते हैं.
> देश में कहीं भी जाने की स्वतंत्रता रिफ्यूजियों के पास होती है.
> उन्हें प्रमाण पत्र व यात्रा के दस्तावेज प्राप्त करने का अधिकार है.
अब बात भारत की बात करें तो रिफ्यूजियों के प्रति भारत हमेशा से उदार रहा है. लेकिन 2019 इस मामले में काफी हलचलों से भरा रहा. पिछले साल ब्रू-रियांग समझौते के तहत करीब 34,000 आन्तरिक विस्थापित लोगों को त्रिपुरा में ही स्थापित करने का निर्णय लिया गया। इस समझौते से करीब 23 वर्षों से चल रही एक बड़ी मानव समस्या का स्थायी समाधान किया गया और 34 हजार व्यक्तियों को बसाने की प्रक्रिया शुरू हुई। दरअसल वर्ष 1997 में जातीय तनाव के कारण करीब 5,000 ब्रू-रियांग परिवारों ने, जिसमें करीब 30,000 व्यक्ति थे, मिज़ोरम से त्रिपुरा में शरण ली जिनको वहां कंचनपुर, उत्तरी त्रिपुरा में अस्थायी शिविरों में रखा गया था.
वहीं भारत सरकार ने दूसरा फैसला सीएए के रूप में लिया। संशोधित नागरिकता कानून 2019 के पास होने से अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया। इस कानून का देश भर में विरोध भी किया गया था.