मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में मचेगी गणपति बाप्पा की धूम, इस वजह से मनाया जाता है यह त्योहार
हर साल की तरह इस साल भी मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में लोगों के दुखों को हरने वाले गणपति बप्पा का धूम जल्द ही मचने वाली है. यह त्योहार इस साल 13 सितम्बर को मनाया जाने वाला है
मुंबई: हर साल की तरह इस साल भी मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की धूम मचने वाली है. इस साल 13 सितम्बर, गुरुवार को गणेश चतुर्थी है और इसी दिनबाप्पा का आगमन होगा. इस पावन त्योहार को लेकर जहां गणपति बाप्पा की प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकार दिन रात काम में लगें है वहीं,बाप्पा के स्वागत के लिए छोटे-बडें सभी पंडाल लगभग सज चुके है.
इस त्योहार को लेकर हिंदू धर्म में मान्यता है कि दस दिनों तक लोगों के बीच रहने वाले गणेश भगवान से जो भी भक्त कुछ मांगता है वह पूरा करतें है. इस त्योहार को पूरे महाराष्ट्र में बडे़ ही धुम-धाम से मनाया जाता है. लेकिन इसकी धूम सबसे ज्यादा कहीं देखी जाती है तो वह मुंबई शहर है. जहां पर पूरे 10 दिन तक आप जिस भी गली-मुहल्ले में जाएंगे श्रद्धा के साथ हर जगह गणपति बाप्पा मोरया की गूंज सुनाई देगी.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार गणेश के जन्म की कहानी कुछ यूं है देवी पार्वती ने अपने शरीर से उतारी गई मैल से उन्हें बनाया है. जब वो नहाने गई तो गणेश को अपनी रक्षा के लिए बाहर बिठा दिया. शिव भगवान जो पार्वती के पति हैं जब घर लौटे तो अपने पिता से अनजान गणेश ने उन्हें रोकने की कोशिश की. इस बात को लेकर वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने गणेश का सिर काट दिया. बाद में उन्होंने पर्वती के नाराज होने पर गणेश का सर हाथी से जोड़कर उन्हें एक बार फिर से जिंदा कर दिया. वही कुछ लोगों का कहना है कि देवताओं के अनुरोध करने पर शिव और पार्वती ने गणेश को बनाया था जिससे वो राक्षसों का वध कर सकें और यही कारण है कि उन्हें विघनकर्ता भी कहा जाता है. जो भक्तों की मुसीबतो को क्षण भर में दूर कर देतें है.
इस त्योहार को मनाने की परम्परा काफी वर्षो से चली आ रही है. लेकिन पहली बार इस त्योहार को मनाने को लेकर जो जानकारी लोगों को मालूम पड़ा है. उसके मुताबिक पहली बार गणेश चतुर्थी के इस त्योहार की शुरुआत पुणे से मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी के ज़माने में सन् 1630 से शुरु हुई. इसके बाद इस त्योहार को मनाने को लेकर पूरे महाराष्ट्र में प्रचलन शुरु हो गया. हालांकि इस त्योहार को लेकर कहा गया है कि इस त्योहार को बाल गंगाधर तिलक पुणे में सन् 1893 से सार्जननिक रुप से गणपति मनाने का प्रचलन इनके जमाने से कुछ ज्यादा ही प्रचलित हुआ.
इस त्योंहार के दौरान अधिकतर सार्वजननिक पंडालों में 10 दिन की गणपति बैठाई जाती है. इसके अलावा सात दिन, पांच दिन, डेढ़ दिन की गणपति भी बैठाई जाती है. इस दौरान लोग सार्वजनिक पंडालों और घरों में जाकर गणेश भगवान को फूल माला, नारियल और फल चढ़ाकर पूजा करते है. लोगों के बीच विराजमान रहने के बाद ढ़ोल नागाडों के साथ बप्पा का विदाई की जाती है. गणेश भगवान को पूजा पाठ करने के बाद समुद्र या किसी बडे़ तालाब में विसर्जित किया जाता हैं.