Vat Purnima 2019: पति की लंबी उम्र के लिए सुहागन महिलाएं रखती हैं व्रत, जानिए इसका महत्व और पूजा विधि
वट पूर्णिमा के दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और इस दिन वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की कथा सुनी जाती है. वट यानी बरगद के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है. यह वृक्ष अक्षय होता है, इसलिए इसे अक्षय वट भी कहा जाता है.
Vat Purnima 2019: सनातन धर्म में पति (Husbands) की दीर्घायु के लिए पत्नियां (Wives) साल भर में कई उपवास रखती हैं. इसी में एक है वट पूर्णिमा का व्रत (Vat Purnima Vrat). प्रत्येक वर्ष यह व्रत अमावस्या (Amavasya) अथवा पूर्णिमा (Purnima) के दिन मनाया जाता है. पूर्णिमा के अनुसार इस बार यह व्रत 14 जून को पड़ रहा है. कहा जाता है कि इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी. आइये जानें इस व्रत महात्म्य और पूजन विधि (Significance and Puja Vidhi) के बारे में...
अखण्ड सौभाग्य के लिए व्रत
वट पूर्णिमा के दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और इस दिन वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की कथा सुनी जाती है. वट यानी बरगद के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है. यह वृक्ष अक्षय होता है, इसलिए इसे अक्षय वट भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
विधि-विधान से करें पूजा
वट सावित्री और वट पूर्णिमा की पूजा वट वृक्ष के नीचे सम्पन्न होती है. पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाजों को कपड़े के दो टुकड़ों से ढंककर रखा जाता है. एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है. वट वृक्ष पर महिलाएं जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत चढ़ाती हैं. फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसकी सात परिक्रमा लगाती हैं. सभी व्रती स्त्रियां अर्घ्य देती हैं. मान्यता है कि यह व्रत तभी फलीभूत होता है जब व्रती स्त्री अपने सास-ससुर की सम्मानपूर्व सेवा करें. इसके पश्चात व्रती स्त्रियां वटवृक्ष के नीचे बैठकर वट-सावित्री की कथा सुनती हैं, पूजा सम्पन्न होने के पश्चात वहां उपस्थित सभी को चना-गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है.
अमावस्या और पूर्णिमा के दिन होता है वट सावित्री का व्रत
पत्नी द्वारा पति के जीवन को यमराज से वापस लेकर आने वाला वट सावित्री व्रत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है. यह व्रत वट वृक्ष की महिमा का भी गुणगान है. वैसे स्कन्द और भविष्योत्तर पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को और अमावस्या के दिन मनाने की प्रथा है. उत्तर भारत में यह व्रत अमावस्या को, तो दक्षिण भारत में ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है. यह भी पढ़ें: Happy Vat Purnima 2019 Wishes: सुहागन स्त्रियों के लिए बेहद खास है वट पूर्णिमा, भेजें ये WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, GIF Messages, Photo SMS और दें प्रियजनों को शुभकामनाएं
सेहत अच्छी हो तभी व्रत करें
आयुर्वेद के अनुसार वट वृक्ष को घर का वैद्य माना जाता है. पंचवटी (नासिक) में जिन पांच वृक्षों- वट, अशोक, पीपल, बेल और हरड़ को शामिल किया जाता है, वे महिलाओं से संबंधित बीमारियों को जल्दी से ठीक करते हैं. इसके औषधीय गुणों के कारण ही इसके नीचे संतगण आदिकाल से तपस्या करते रहे हैं. किसी महिला को पति की मृत्यु का दुख न झेलना पड़े, इसलिए यह व्रत किया जाता है. हालांकि विवाहित, कुमारी, वृद्धा आदि सभी स्त्रियां यह व्रत रखती हैं, लेकिन यह व्रत तभी करें, जब शरीर स्वस्थ हो. अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो त्रयोदशी की रात्रि को भोजन कर चतुर्दशी और पूर्णिमा को व्रत पूर्ण करें.