Shrawan Shivling Worship 2021: क्या है शिवलिंग? शिवजी की मूर्ति से ज्यादा क्यों की जाती है इनकी पूजा?
भगवान शिव

हिंदू धर्म में श्रावण (Shrawan) मास भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित माना गया है, इसलिए इस पूरे माह भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग (Shivling) की पूजा एवं अभिषेक किया जाता है. देवों के देव महादेव (Mahadev) भगवान शिव से संबंधित जो सबसे जिज्ञासापूर्ण बात है, शिवजी जी ही हैं, जिन्हें मूर्ति और निराकार लिंग दोनों रूपों में पूजा जाता है. आखिर क्यों? आज हम शिवलिंग की अवधारणा एवं इससे जुड़े रोचक एवं तथ्यपरक बातें करेंगे. लेकिन यहां पहले यह बताना जरूरी है कि संपूर्ण भारत में भगवान शिव के 12 ज्‍योर्तिंलिंग (Jyotirlinga) स्‍थापित हैं और श्रावण मास में इनकी पूजा-अभिषेक बड़ी आस्था के साथ किया जाता है.  श्रावण 2019: श्रावण मास के मंगलवार को हनुमान जी की विशेष साधना से दूर होंगे कष्ट! बढ़ेगी समृद्धि! जानें कैसे करें विशेष साधना

शिवलिंग की अवधारणा (Concept)

शिवलिंग ब्रह्मांड का प्रतीक है, यानी शिवलिंग की पूजा संपूर्ण ब्रह्मांड की पूजा मानी जाती है. मान्यता है कि शिव ही समस्त ब्रह्माण्ड के मूल हैं. शिवलिंग में शिव का शाब्दिक अर्थ है परम कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है सृजन, यानी भगवान शिव अनंत एवं सृजन के प्रतीक हैं. संस्कृत में इसे चिह्न अथवा प्रतीक कहा जाता है. इस तरह इसे शिव का प्रतीक कहा जा सकता है. शिव पुराण में भगवान शिव को निराकार भी बताया गया है, यानि जिनका कोई रूप नहीं होता. भगवान शिव इस बात के भी प्रतीक हैं कि आत्मा के विलय के पश्चात व्यक्ति परम-ब्रह्म को हासिल कर लेता है.

शिवलिंग का महात्म्य!

देव पूजा के तहत सभी मूर्तियों की उनके मानव, पशु अथवा पक्षी स्वरूप में पूजा का अति प्राचीन विधान है, लेकिन देवों के देव भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है, जो दिव्य ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है. शिव के मायने हैं, जो मंगलम् (अनंत ईच्छा) प्रदान करता है, जो दिव्य ज्ञान के माध्यम से प्राप्त होता है. इसी ज्ञान को प्राप्त करने के लिए, ध्यानलिंग के रूप में शिवलिंग की पूजा का विशेष महात्म्य है. शिव यानी जो ऊर्जा का मूल स्रोत हैं, जो पूजा करने वालों को अपने अंडाकार स्वरूप में उपस्थित होते हैं. योग विद्या में, शिवलिंग को सृष्टि प्रारंभ का पहला और सृष्टि के विघटन का अंतिम स्वरूप माना जाता है. इसीलिए शिव को अनंत भी कहा जाता है.

कैसे आया शिवलिंग का स्वरूप

लिंग महापुराण के अनुसार, सृष्टि निर्माण के समय भगवान ब्रह्मा एवं भगवान विष्णु में बहस छिड़ गई कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है. इसी दरम्यान भगवान शिव एक अग्नि पुंज (लिंग) के रूप में प्रकट हुए और सर्वत्र फैल गये. एक दिव्य आवाज आई, आप में जो सर्वश्रेष्ठ होगा, वह इस अग्नि पुंज का आदि और अंत को देख सकेगा. ब्रह्मा एवं विष्णु दोनों ने उसके अंत और आरंभ को तलाशने का प्रयास किया. भगवान विष्णु अग्नि पुंज का ना अंत को देख सके ना आरंभ. उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली. यद्पि ब्रह्मा को भी इसका आदि या अंत नहीं दिखा था, लेकिन उन्होंने असत्य का सहारा लेते हुए बताया कि उन्होंने इस दिव्य लौ के आदि एवं अंत दोनों को देख लिया है. लेकिन वे अपनी बात को प्रमाणित नहीं कर पाये. अंततः उन्हें दंड प्राप्त हुआ कि दुनिया में कोई भी प्राणी उनकी पूजा-अर्चना नहीं करेगा.

शिवलिंग पूजा अभिषेक का पुण्य फल

* सर्वविदित है कि शिव निर्वाण के देवता है. मानसिक एवं आध्यात्मिक कल्याण पाने के लिए इनकी सच्चे मन एवं आस्था के साथ पूजा करने से मानसिक शांति मिलती है

* भगवान शिव त्रिदेव में से एक हैं, जो पूरे ब्रह्माण्ड पर शासन करते हैं. उन्हें विनाश के देवता के रूप में जाना जाता है, लेकिन उनके पास ब्रह्माण्ड के सारे ज्ञान हैं. इसलिए शिवलिंग की पूजा करने से अपार ज्ञान की प्राप्ति होती है.

* यदि आप शिवलिंग की नियमित पूजा करते तो अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता. इनकी पूजा असमय विनाश से आपको बचाती है.

* भगवान शिव अत्यंत क्रोधी हैं, पलभर में सृष्टि का संहार कर सकते हैं, लेकिन साथ ही बहुत आसानी से प्रसन्न भी हो जाने वाले अकेले देव हैं. महज ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जाप करने से आप तमाम विपत्तियों से मुक्ति पा जाते हैं,

* भगवान शिव आदर्श परिवार के प्रतीक हैं. अगर कोई कुंवारी कन्या उनसे उन्हीं के समान पुरुष के वरण की कामना करती है तो भगवान शिव उसकी इस मनोकामना को अवश्य पूरी करते हैं.