Shardiya Navratri Day 2: आज होगी माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा! जानें कौन हैं माँ ब्रह्मचारिणी एवं क्या है उनका महात्म्य और पूजा विधि?

शांत, सौम्य तथा श्वेत वस्त्र धारण करने वाली माँ ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे में कमण्डल है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माँ ब्रह्मचारिणी ने हिमालय राज के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था, और भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए वन में कठोर तप किया था.

शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी को समर्पित है

का दूसरा दिन (27 सितंबर 2022) माँ ब्रह्मचारिणी को समर्पित है. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली, अर्थात ब्रह्मचारिणी का आशय तपस्वी के समान आचरण करने वाली देवी. मान्यता है कि माँ ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी. इन्हें पत्नी स्वरूप में स्वीकारने वाले भगवान शिव ने उन्हें यह नाम दिया था. माँ ब्रह्मचारिणी का यह स्वरूप बेहद शांत, सौम्य एवं मोहक है. मान्यता है कि शारदीय नवरात्रि की द्वितीया के दिन ब्रह्मचारिणी देवी की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा करने से मन की सारी इच्छाएं पूरी होती है. आइये जानें कौन हैं माँ ब्रह्मचारिणी एवं क्या है इनका स्वरूप, महात्म्य एवं कैसे करेंगे इनकी पूजा.

कौन हैं माँ ब्रह्मचारिणी?

शांत, सौम्य तथा श्वेत वस्त्र धारण करने वाली माँ ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे में कमण्डल है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माँ ब्रह्मचारिणी ने हिमालय राज के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था, और भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए वन में कठोर तप किया था. कहते हैं कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था.

देवी ब्रह्मचारिमी का महात्म्य!

देवी पुराण के अनुसार माँ दुर्गा के इस सौम्य एवं सुशील स्वरूप की पूजा करने से अतुल ज्ञान प्राप्त होता है, जीवन में नकारात्मकता नहीं आती, सेहत अच्छी रहती है. माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अनुष्ठान करने से मार्ग में आ रही सारी बाधाओं को स्वयं दूर करने में समर्थ होते हैं.

देवी पुराण के अनुसार माँ ब्रह्मचारिणी ने नारद जी के सुझाव पर शिवजी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस वजह से उन्हें तपश्चारिणी भी कहा जाता है. मान्यता है कि उन्होंने एक हजार वर्ष केवल फल-फूल खाए. सौ वर्षों तक पथरीली जमीन पर वर्षा एवं कड़ी धूप सहकर कठिन उपवास के साथ तपस्या की. इसके बाद सैकड़ों साल तक बेलपत्र खाकर गुजारे, इसके बाद निर्जल एवं निराहार रहकर तपस्या की. उनकी कठिन तपस्या को सभी देवता, ऋषि-मुनि ने अभूतपूर्व माना था. अंततः भगवान शिव को प्रसन्न करने में वे सफल रहीं.

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

नवरात्र के दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. माँ दुर्गा का ध्यान करते हुए कलश की पूजा करें. अब मां ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा स्वरूप पहले दीप प्रज्वलित करें एवं जल अर्पित करें. अब फूल, कुमकुम, माला, रोली, सिंदूर चढ़ाएं. एक पान पर सुपारी, लौंग, इलायची, बताशा और कुछ सिक्के रखकर चढ़ाएं. भोग में खोये की मिठाई चढ़ाएं. दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. निम्न मंत्र का जाप करते हुए लाल फूल माँ ब्रह्मचारिणी को अर्पित करें. अंत में दुर्गा जी की आरती उतारें. अब माँ से पूजा-पाठ में हुई त्रुटियों एवं अशुद्धियों के लिए क्षमा याचना करते हुए मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करें.

* 'ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:'

* ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी,

सच्चिदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते.

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