Shabari Jayanti 2021: भगवान राम की परम भक्त थीं माता शबरी, जानें शुभ मुहूर्त, महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा

हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है. शबरी जयंती इसलिए बेहद खास है, क्योंकि इसी दिन शबरी ने श्रीराम को अपने जूठे बेर खिलाए थे. कहा जाता है कि शबरी जन्म से ही भगवान राम की भक्त थीं और उनकी इसी भक्ति के लिए भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे. शबरी जयंती का यह पर्व भगवान राम की अनन्य भक्त माता शबरी को समर्पित है.

शबरी जयंती 2021 (Photo Credits: File Image)

Shabari Jayanti 2021: आज (5 मार्च 2021) देशभर में शबरी जयंती (Shabari Jayanti) मनाई जा रही है, जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है. शबरी जयंती इसलिए बेहद खास है, क्योंकि इसी दिन शबरी (Shabari) ने श्रीराम (Lord Rama) को अपने जूठे बेर खिलाए थे. कहा जाता है कि शबरी जन्म से ही भगवान राम की भक्त थीं और उनकी इसी भक्ति के लिए भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे. शबरी जयंती का यह पर्व भगवान राम की अनन्य भक्त माता शबरी को समर्पित है. इस दिन शबरीमाला में माता शबरी की पूजा करने का विधान है. कहा जाता है कि इस दिन माता शबरी की विधि-विधान से पूजा करने पर श्रीराम की भी कृपा प्राप्त होती है. इस दिन माता शबरी की स्मृति यात्रा निकाली जाती है और लोग रामायण का पाठ कराते हैं. चलिए जानते हैं शबरी जयंती का शुभ मुहूर्त, महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा.

शबरी जयंती 2021 शुभ मुहूर्त

शबरी जयंती तिथि- 05 मार्च 2021 दिन, शुक्रवार

सप्तमी तिथि प्रारंभ- 04 मार्च 2021 को रात 09.58 बजे से,

सप्तमी तिथि समाप्त- 05 मार्च 2021 को शाम 07.54 बजे तक.

कौन थीं माता शबरी?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शबरी भगवान राम की सबसे परम भक्त थीं. भील समुदाय की शबरी जाति से संबंध रखने वाली माता शबरी का असली नाम श्रमणा था और उनके पिता भीलों के राजा थे. कहा जाता है कि जब श्रमणा का विवाह तय हुआ तो विवाह से पहले सैकड़ों पशुओं को बलि के लिए लाया गया, जिससे श्रमणा को काफी दुख हुआ. सैकड़ों बेजुबान जानवरों की बलि रुक सके, इसलिए वो अपने विवाह से एक दिन पहले रात के समय उठकर जंगल में भाग गईं. यह भी पढ़ें: Yashoda Jayanti 2021: यशोदा जयंती आज, जानें मां यशोदा व भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और इसका महत्व

माता शबरी भागकर दंडकारण्य वन पहुंचीं, जहां मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे. श्रमणा उनकी सेवा करना तो चाहती थीं, लेकिन भील जाति की होने के कारण उन्हें ऐसा लगता था कि उन्हें सेवा का अवसर नहीं मिलेगा. हालांकि इसके बाद भी वो रोज सुबह जल्दी उठकर आश्रम से नदी तक के रास्ते से सारे कंकड़ और कांटों को चुनकर पूरे रास्ते को साफ करके वहां बालू बिछा देती थीं. एक दिन ऐसा करते हुए उन्हें ऋषिश्रेष्ठ ने देख लिया और माता शबरी के सेवा भाव से प्रसन्न होकर उन्होंने अपने आश्रम में उन्हें शरण दे दी.

भगवान राम की थीं परम भक्त

आश्रम में रहते-रहते एक ऐसा समय आया जब मातंग ऋषि को लगा कि उनका अंत समय निकट है, तब उन्होंने शबरी से कहा कि वो अपने आश्रम में प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा करें, क्योंकि वो उनसे मिलने के लिए एक दिन जरूर आएंगे. मातंग ऋषि के निधन के बाद शबरी का सारा समय भगवान राम की प्रतीक्षा में गुजरने लगा. वो रोज अपने आश्रम को साफ करती थीं और भगवान राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थीं. एक भी बेर खट्टा न हो इसके लिए एक-एक बेर चखकर तोड़ती थीं.

शबरी ने खिलाए थे श्रीराम को जूठे बेर

एक दिन शबरी को यह ज्ञात हुआ कि दो सुंदर युवक उन्हें खोज़ रहे हैं तो वो समझ गईं कि उनके प्रभु राम उनसे मिलने आ गए हैं, लेकिन तब तक उनका शरीर बहुत वृद्ध हो चुका था, लेकिन श्रीराम के आने की खबर सुनकर उनके शरीर में चुस्ती आ गई और वो दौड़ते हुए भगवान राम के पास पहुंची. माता शबरी श्रीराम और लक्ष्मण को अपनी कुटिया में ले आईं और उनके पांव धोकर उन्हें बिठाया. इसके बाद उन्होंने अपने तोड़े हुए मीठे बेर श्रीराम को खिलाए. श्रीराम जी ने लक्ष्मण को भी बेर खाने के लिए कहा, लेकिन जूठे बेर देखकर उन्होंने उसे नहीं खाए. कहा जाता है कि इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध के दौरान जब शक्ति बाण का उपयोग किया गया तो लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे. यह भी पढ़ें: March 2021 Festival Calendar: मार्च में मनाएं जाएंगे महाशिवरात्रि और होली जैसे बड़े पर्व, देखें इस महीने पड़ने वाले व्रत व त्योहारों की लिस्ट

कहा जाता है कि भगवान राम के प्रति समर्पण और उनकी भक्ति के कारण ही माता शबरी को मोक्ष की प्राप्ति हुई. इस खास अवसर पर शबरीमाला मंदिर में उत्सव और मेले का आयोजन किया जाता है. इस दिन उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. शबरी जयंती के दिन माता शबरी के देवी स्वरूप में पूजा की जाती है और यह श्रद्धा व भक्ति द्वारा मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक भी है.

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