Shabari Jayanti 2020: शबरी ने प्रभु श्रीराम को खिलाए थे जूठे बेर, जानिए एक भक्त और भगवान की यह दिलचस्प पौराणिक कथा
आज देशभर में शबरी जयंती मनाई जा रही है. हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है. शबरी जयंती इसलिए बेहद खास है क्योंकि इसी दिन शबरी ने श्रीराम को अपने जूठे बेर खिलाए थे. कहा जाता है कि शबरी जन्म से ही भगवान राम की भक्त थीं और उनकी इसी भक्ति के लिए भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे.
Shabari Jayanti 2020: रामायण (Ramayan) में भगवान राम (Lord Ram) के चौदह वर्षों के वनवास, सीता हरण और रावण वध के अलावा एक और प्रासंगिक घटना का जिक्र मिलता है. यह घटना भगवान राम (Bhagwan Ram) और उनकी परमभक्त शबरी (Shabari) से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि शबरी ने भगवान राम को जूठे बेर खिलाए थे, जिसके कारण ही शबरी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी. आज देशभर में शबरी जयंती (Shabari Jayanti) मनाई जा रही है. हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है. शबरी जयंती इसलिए बेहद खास है, क्योंकि इसी दिन शबरी ने श्रीराम को अपने जूठे बेर खिलाए थे. कहा जाता है कि शबरी जन्म से ही भगवान राम की भक्त थीं और उनकी इसी भक्ति के लिए भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे. शबरीमाला जयंती के इस खास मौके पर चलिए जानते हैं एक भक्त और भगवान की यह दिलचस्प पौराणिक कथा.
कौन थीं शबरी?
भील समुदाय की 'शबरी' जाति से संबंध रखने वाली शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था और उनके पिता भीलों के राजा थे. श्रमणा जब विवाह योग्य हुईं तो उनका विवाह एक भील से तय हो गया. विवाह से पहले सैकड़ों पशुओं को बलि के लिए लाया गया था, जिन्हें देख श्रमणा बहुत आहत हुईं. उन्होंने सोचा कि यह किस प्रकार का विवाह है, जिसमें इतने प्राणियों का वध किया जाएगा. जानवरों की बलि न दी जाए इसके लिए वो अपने विवाह के एक दिन पहले रात्रि के समय उठकर जंगल में भाग गईं. शबरी को रामभक्तों में प्रमुख स्थान प्राप्त है, इसलिए उनका वर्णन रामायण, भागवत, रामचरितमानस, सूरसागर और साकेत जैसे कई पौराणिक ग्रंथों में मिलता है.
श्रीराम की परमभक्त थीं शबरी
शबरी बचपन से ही भगवान श्रीराम की परमभक्त थीं, अपने विवाह से एक दिन पहले भागकर वे दंडकारण्य वन में पहुंच गईं, जहां मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे. श्रमणा मातंग ऋषि की सेवा करना चाहती थीं, लेकिन भील जाति की होने के कारण उन्हें अवसर न मिलने का अंदेशा था. बावजूद इसके वे सुबह-सुबह ऋषियों के उठने से पहले उनके आश्रम से नदी तक के रास्ते को साफ कर देती थीं और इसका पता किसी को नहीं चल पाता था.
एक दिन ऋषि श्रेष्ठ को शबरी दिख गई और उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी. जब मातंग ऋषि का अंत समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वो इसी आश्रम में भगवान राम की प्रतीक्षा करें. मातंग ऋषि के निधन के बाद शबरी का पूरा समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा. वह रोज श्रीराम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थीं. बेर में कीड़े न हों और वह खट्टा न हो इसके लिए एक-एक बेर को चखकर तोड़ती थीं. यह भी पढ़ें: Ram Navami 2019: भगवान राम हैं एक ऐतिहासिक पुरुष, त्रेतायुग के ये घटनाक्रम देतें हैं उनकी वास्तविकता का प्रमाण
एक दिन शबरी को खबर मिली कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं और वे समझ गईं कि उनकी प्रतीक्षा अब खत्म होनेवाली है. हालांकि उस समय वो वृद्धावस्था में आ गई थीं, लेकिन श्रीराम के आने की खबर सुनते ही वो भागती हुई अपने राम के पास पहुंचीं और उन्हें घर ले आईं, फिर उनके पैर धोकर उन्हें बिठाया. उन्होंने अपने तोड़े हुए मीठे जूठे बेर राम को दिए और श्रीराम ने बड़े प्यार से वे बेर खा लिए, कहा जाता है कि श्रीराम के प्रति उनकी भक्ति के कारण ही उन्हें मोश्र की प्राप्ति हुई.
शबरीमाला मंदिर में लगता है मेला
शबरी जयंती के खास अवसर पर शबरीमाला मंदिर में खास मेले का आयोजन किया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. शबरी को देवी का स्थान प्राप्त है, इसलिए शबरी जयंती के दिन उन्हें देवी के स्वरूप में पूजा जाता है. यह जयंती श्रद्धा और भक्ति द्वारा मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक भी है. माना जाता है कि शबरी देवी की पूजा करने से उसी प्रकार के भक्ति भाव की कृपा प्राप्त होती है जैसे शबरी को भगवान राम से प्राप्त हुई थी.