Sant Ravidas Jayanti 2023: आज है संत रविदास जयंती? जानें मोची से संत-कवि तक का सफर!

गुरु रविदास जयंती (Sant Ravidas Jayanti 2023) हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. रविदास उप्र, मप्र और राजस्थान में रैदास, गुजरात एवं महाराष्ट्र में रोहिदास, बंगाल में रूइदास के नाम से जाना जाता है. रविदास रैदास के नाम से भी जाने जाते हैं. इस दिन संत रविदास के अनुयायियों द्वारा भव्य कार्यक्रम एवं भजन-उपदेश का आयोजन किया जाता है...

गुरु रविदास जयंती 2023 (Photo Credits: File Image)

Sant Ravidas Jayanti 2023: गुरु रविदास जयंती (Sant Ravidas Jayanti 2023) हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. रविदास उप्र, मप्र और राजस्थान में रैदास, गुजरात एवं महाराष्ट्र में रोहिदास, बंगाल में रूइदास के नाम से जाना जाता है. रविदास रैदास के नाम से भी जाने जाते हैं. इस दिन संत रविदास के अनुयायियों द्वारा भव्य कार्यक्रम एवं भजन-उपदेश का आयोजन किया जाता है. इस वर्ष 5 फरवरी 2023 को संत रविदास जयंती मनाई जायेगी. हालांकि संत रविदास से जन्म तिथि को लेकर इतिहासकारों में आज भी अंतर्विरोध है. कुछ इतिहासकारों के अनुसार संत रविदास का जन्म 1398 में तो कुछ के अनुसार 1482 में रविदास जी का जन्म हुआ था. आइये जानें संत रविदास की 647वीं जयंती के अवसर पर संत के संदर्भ में विस्तार से... यह भी पढ़ें: Guru Ravidas Jayanti 2023 Quotes: गुरु रविदास जयंती पर दोस्तों-रिश्तेदारों संग शेयर करें इस परोपकारी संत के ये अनमोल विचार

मोची से संत तक का सफर!

रविदास का मूल पेशा मोची का था, स्वभाव से दयालु होने के नाते अकसर वे गरीबों से चप्पल बनाने की कीमत नहीं लेते थे, जिससे उनके पिता उनसे नाराज रहते थे. आगे चलकर अपने गुरु से ज्ञान अर्जित करते हुए उन्होंने अपने दोहो व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया. रविदास ने स्पष्ट लिखा कि 'रैदास जन्म के कारनै होत न कोउ नीच, नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की नीच' यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है. वे स्पष्ट कहते थे कि कोई भी व्यक्ति जन्म से नीच नहीं होता. रविदास ने अपने काव्यों में ब्रजभाषा का इस्तेमाल किया, इसमें इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण होता है. रविदास जी के लगभग 40-41 पद सिख धर्म के पवित्र धर्म ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में भी शामिल हैं.

संत रविदास का परिचय

रविदास का जन्म संवत 1433 में वाराणसी के पास सीर गोवर्धनपुर गांव में हुआ था. मान्यता है कि माघ पूर्णिमा को जब रविदास का जन्म हुआ, वह रविवार का दिन था, जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया, वे पेशे से चर्मकार थे. पिता का नाम संतोख दास (रघु) और मां का नाम कालसा देवी था. उनकी पत्नी का नाम लोना बताया जाता है. ज्ञान प्राप्त करने के लिए रविदास ने संत रामानंद को अपना गुरु बनाया. संत रविदास के निधन का पुख्ता प्रमाण नहीं हैं, माना जाता है कि इनका निधन वाराणसी में हुआ था.

गुरु नानक देव का प्रभाव

ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर रविदास सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी से काफी प्रभावित थे. कहा जाता है कि रविदास की 41 कविताएं सिख धर्मग्रंथ में शामिल हैं. संत की ये कविताएं उनके उपदेशों एवं विचारों के सबसे पुराने स्रोतों में सम्मिलित हैं. संत रविदास का भक्ति आंदोलन पर बहुत असर था, जो सनातन धर्म के अनुसार आध्यात्मिक भक्ति आंदोलन था. इसके बाद ही सिख धर्म की स्थापना हुई. रविदास के भक्ति छंदों को गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया था. यद्यपि संत रविदास के अनुयायी ने 21वीं सदी में रविदासिया धर्म की स्थापना की.

संत रविदास जयंती तिथि एवं समय

संत रविदास जयंती पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. इस आधार पर आइये जानें किस दिन मनाई जाएगी संत रविदास जयंती.

रविदास जयंती सेलिब्रेशन

संत रविदास जयंती अमूमन सिख समुदाय द्वारा मनाया जाता है, लेकिन अन्य धर्म एवं समुदाय के लोग भी रविदास की जयंती पर उसी श्रद्धा एवं आस्था के साथ शामिल होते हैं. सभी गुरुद्वारों को सजाया जाता है. इस दिन श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं, एवं संत के सम्मान में प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है. रविदास की पवित्र पुस्तक अमृतवाणी का पाठ किया जाता है. कुछ जगहों पर रविदास की तस्वीरों के साथ नगर-कीर्तन का आयोजन होता है, जहां लोग रविदास के वेष में उनके उपदेशों को लोगों तक पहुंचाते हैं. उनकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नाट्य-मंचन किया जाता है. कुछ लोग रविदास मंदिर की तीर्थयात्रा पर भी जाते हैं और उनकी पूजा करते हैं

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