हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की तृतीया को रंभा तीज का व्रत रखा जाता है. इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की अच्छी सेहत और दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छे जीवन साथी के लिए व्रत रखती हैं. हिंदू शास्त्रों के अनुसार रंभा तृतीया के भगवान शिव एवं मां पार्वती की पूजा-अर्चना का विधान है. लेकिन बहुत सी जगहों पर शिव-पार्वती के साथ माँ लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं. मान्यतानुसार इस व्रत को करने से सौभाग्य के साथ सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस वर्ष रंभा तीज व्रत 22 मई 2023 को रखा जायेगा. आइये जानते हैं इस व्रत, पूजा-विधि, मंत्र, मुहर्त, मंत्र एवं पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से...यह भी पढ़ें: Guru Arjun Dev Martyrdom Day 2023: स्वर्ण मंदिर का नींव रखने वाले गुरू अर्जुन देवकी शहादत की मर्मांतक गाथा!
रंभा तीज तिथि एवं शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष तृतीया प्रारंभः 10.09 PM (21 मई 2023, रविवार)
ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष तृतीया समाप्तः 11.19 PM (22 मई 2023, सोमवार)
उदया तिथि के अनुसार रंभा व्रत 22 मई 2023, सोमवार को रखा जायेगा.
रंभा तीज के दिन ये शुभ योग भी बन रहे हैं
द्विपुष्कर योगः 09.04 AM से 10.09 PM तक (22 मई 2023)
अमृत सिद्ध योगः 05.47 AM से 10.37 AM तक (22 मई 2023)
सर्वार्थ सिद्ध योगः 05.47 AM से 10,37 AM तक (22 मई 2023)
रंभा तीज का महत्व
इस वर्ष सोमवार के दिन रंभा तीज पड़ने से इसका महात्म्य बढ़ गया है, क्योंकि सोमवार भगवान शिव को समर्पित दिन माना जाता है. इसके अलावा तीन विशेष योगों का भी निर्माण हो रहा है. मान्यता है कि इन योगों में किसी संकल्प विशेष के साथ शुरू किया गया कार्य सिद्धी दिलाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय कई बेमिशाल वस्तुओं का प्रकाट्य हुआ था. इसी में एक थी अत्यधिक रूपवती अप्सरा रंभा. रंभा को सौंदर्य का प्रतीक माना जाता था. इस दिन शिव-पार्वती और माँ लक्ष्मी की पूजा-व्रत करने से पति को दीर्घायु एवं अच्छी सेहत, कुंवारी कन्याओं को मनपसंद वर, स्वस्थ संतान के साथ सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है.
रंभा तीज व्रत एवं पूजा विधि
ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की तृतीया को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें. अब स्वच्छ वस्त्र पहनकर शिव-पार्वती एवं माँ लक्ष्मी की पूजा-व्रत का संकल्प लें. अब मंदिर के सामने एक चौकी रखें और इस पर लाल वस्त्र बिछाएं. इस पर शिव-पार्वती एवं माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. इन्हें गंगाजल से प्रतीकात्मक स्नान (गंगाजल छिड़क कर) कराएं. धूप दीप प्रज्वलित कर निम्न मंत्र का जाप करें.
ॐ दिव्यायै नमः
ॐ वागीश्चरायै नमः
भगवान शिव को सफेद चंदन, माँ पार्वती एवं माँ लक्ष्मी को सिंदूर (महिलाएं) एवं रोली (पुरुष) लगाएं. अब पुष्प, अक्षत, हल्दी, मेहंदी आदि अर्पित करें. भोग के लिए फल एवं दूध से बनें मिष्ठान चढ़ाएं. अब हाथ में पुष्प एवं अक्षत लेकर निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान पर चढ़ा दें.
ॐ सौंदर्या प्रियायै नमः
ॐ योवन प्रियायै नमः
पूजा के अंत में शिव-पार्वती एवं लक्ष्मी जी की आरती उतारें, और लोगों में प्रसाद वितरित करें.