Ramanujacharya Jayanti 2023: भारत भूमि पर एक से बढ़कर एक महान संतों एवं महात्माओं ने जन्म लिया, जिसकी ख्याति दुनिया भर में बढ़ी. ऐसे ही एक महान एवं संत गुरु थे. दक्षिण भारत के श्री रामानुजाचार्य. श्री रामानुज भारतीय धर्म शास्त्री, दार्शनिक एवं हिंदू धर्म के वैष्णववाद परंपरा के मुख्य सचेतकों में से एक थे. आज श्री रामानुजन आचार्य जयंती की 1006 वीं जयंती (26 अप्रैल 1017) पर आइये जानें आचार्य के जीवन के कई महत्वपूर्ण एवं अनछुए पहलुओं के बारे में. यह भी पढ़ें: Ganga Saptami 2023: कब मनायें गंगा सप्तमी 26 या 27 अप्रैल को? जानें इसका महत्व, मुहूर्त, पूजा-अनुष्ठान आरती इत्यादि!
कौन हैं श्री रामानुजाचार्य?
श्री रामानुजाचार्य का जन्म 1017 में श्रीपेरंबुदूर (तमिलनाडु) में मां कांथीमती और पिता आसुरी केशव सोमयाजी के घर हुआ था. वह काफी छोटी आयु में थे, जब उनके पिता का निधन हो गया. बचपन में उन्होंने कांची में यादव प्रकाश गुरु से वेदों की शिक्षा प्राप्त की. वह दक्षिण भारतीय ब्राह्मण और हिंदू धर्म के महान भक्ति विचारक थे. पढ़ाई खत्म करने के बाद, वह वरदराजा पेरुमल मंदिर में पुजारी बन गए, जो भगवान विष्णु को समर्पित है. उन्होंने भगवान विष्णु एवं उनकी पत्नी महालक्ष्मी की भक्ति का प्रचार करने हेतु विभिन्न केंद्रों की स्थापना की. वैष्णववाद परंपरा और भक्ति आंदोलन के प्रति उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. श्री रामानुजाचार्य ने लोगों को शिक्षा के साथ-साथ भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें मोक्ष के सिद्धांतों के बारे में सिखाया. 1137 CE में 120 वर्ष की आयु में उन्होंने देह त्याग दिया था.
श्री रामानुजाचार्य जयंती का महत्व!
सुविख्यात दार्शनिक रामानुज आचार्य ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को परिभाषित किया था. वह वैष्णववाद का समर्थन, उसकी नैतिकता एवं शिक्षा आदि से लोगों को अवगत कराने के लिए देश भर में भ्रमण करते रहे. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार श्री रामानुज भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी के परम भक्त थे. उन्होंने लोगों को शिक्षा एवं भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित किया, उन्हें मोक्ष के सिद्धांतों के बारे में सिखाया. रामानुजाचार्य जाति के आधार पर भेदभाव के खिलाफ थे. आचार्य के कई प्रसिद्ध लेखन और उपदेश उपलब्ध हैं. उनकी 9 सर्वाधिक लोकप्रिय कृतियों को नवरत्नों के रूप में नवाजा गया है.
रामानुजाचार्य जयंती उत्सव!
श्री रामानुजाचार्य जयंती के अवसर पर देश भर में उनकी पूजा की जाती है. दक्षिण एवं उत्तरी भागों में इस जयंती को एक बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है. विशेष रूप से तमिलनाडु के तमाम शहरों में पूजा-अनुष्ठान किए जाते हैं. मंदिरों को सजाया-संवारा जाता है. श्री रामानुजाचार्य की प्रतिमा को पवित्र स्नान कराने के बाद उन पर पुष्पांजलि दी जाती है. विभिन्न मंचों पर उनकी शिक्षा एवं उपदेशों का प्रचार, एवं प्रार्थनाएं तथा तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. इस दिन उपनिषदों के अभिलेख को सुनना बहुत शुभ माना जाता है. मान्यता अनुसार उपनिषदों के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.
रामानुजाचार्य की जन्म कथा!
प्राचीन काल में केशव समयाजी और कांतिमती नामक एक दंपति थे, जो लंबे समय तक वे निसंतान थे. एक बार थिरुचैची नम्बि नामक महान ऋषि उनके घर पधारे और सारी बातें सुनकर निसंतान दंपति को संतान प्राप्ति के लिए भगवान पार्थसारथी को प्रार्थना एवं यज्ञ करने का सुझाव दिया. दोनों बहुत समर्पित भाव से यज्ञ एवं पूजा-अर्चना करने लगे. उनकी ईमानदारी और कर्मठता से प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया. बच्चे का जन्म हुआ तो उस पर कुछ ऐसे दिव्य निशान थे, जो दर्शाता था कि वह भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण का अवतार हैं.