Pradosh Vrat in Year 2022: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) का बहुत महत्व है. प्रत्येक माह में दो प्रदोष पड़ते हैं. पहला प्रदोष शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में पड़ता है. सभी प्रदोष व्रत दिन के अनुसार वर्णित किये गये हैं. उदाहरण स्वरूप शनिवार के दिन के प्रदोष को शनि प्रदोष, सोमवार को सोम प्रदोष, मंगलवार को भौम प्रदोष के नाम से उल्लेखित किया जाता है. इसी के अनुसार इसके फलों की भी प्राप्ति होती है. नववर्ष 2021 में शनि प्रदोष से प्रदोष की शुरुआत होगी. चूंकि प्रदोष का दिन भगवान शिव को समर्पित माना गया है, इसलिए इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा-अर्चना का विधान है.
मान्यता है कि सच्ची आस्था और विधि-विधान के साथ व्रत एवं शिवजी के साथ माता पार्वती की पूजा करने से सारे पापों से मुक्ति मिलती है, जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है तथा देह त्यागने के बाद जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है. प्रदोष व्रत संतान, सुख-समृद्धि, पाप से मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार आइये जानें इस नववर्ष 2022 में कब-कब प्रदोष-व्रत (Pradosh Vrat in Year 2021) पड़ रहे हैं.
साल 2022 में पड़ने वाले प्रदोष व्रत
15 जनवरी (शनिवार)- शनि प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
13 फरवरी (रविवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष )
28 फरवरी (सोमवार)- सोम प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष )
15 मार्च (मंगलवार)- भौम प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
29 मार्च (मंगलवार)- भौम प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
14 अप्रैल (गुरुवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
28 अप्रैल (गुरुवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
13 मई (शुक्रवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
27 मई (शुक्रवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
12 जून (रविवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
26 जून (रविवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
11 जुलाई (सोमवार)- सोम प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
25 जुलाई (सोमवार)- सोम प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
09 अगस्त (मंगलवार)- भौम प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
24 अगस्त (बुधवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
08 सितंबर (गुरुवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
23 सितंबर (शुक्रवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
07 अक्तूबर (शुक्रवार)- प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
22 अक्तूबर (शनिवार)- शनि प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
05 नवंबर (शनिवार)- शनि प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
21 नवंबर (सोमवार)- सोम प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
05 दिसंबर (सोमवार)- सोम प्रदोष व्रत (शुक्लपक्ष)
21 दिसंबर (बुधवार)- प्रदोष व्रत (कृष्णपक्ष)
मान्यता है कि यह व्रत एवं पूजा नियम एवं विधि-विधान से न की जाए तो व्रत का पुण्य-फल नहीं मिलता. इसलिए प्रदोष व्रत करने से पहले इसके नियमों और पूजा-विधि का ज्ञान होना जरूरी है. स्कंद पुराण में प्रदोष व्रत की दो विधियों का उल्लेख है. एक में 24 घंटे बिना खाएं व्रत करना होता है, दूसरे में फलहार की छूट होती है लेकिन सूर्यास्त के बाद. श्रद्धालु अपनी शक्ति एवं सामर्थ्यनुसार व्रत कर सकते हैं, लेकिन एक ही नियम हर व्रत में रखना होता है. शाम को शिवजी की पूजा के बाद उपवास तोड़ते हैं. यह भी पढ़ें: Ekadashi Vrat In Year 2022: एकादशी के व्रत से प्रसन्न होते हैं भगवान विष्णु, जानें नए साल में पड़ने वाली इस पावन तिथियों की पूरी लिस्ट
चूंकि 'प्रदोष' शब्द का अर्थ है 'शाम इसलिए ये पूजा शाम के समय करनी चाहिए. प्रदोष व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करें. तत्पश्चात शिवजी का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें और अपनी मनोकामना बताएं. प्रदोष व्रत बिना फलहार अथवा फलहार के साथ किया जा सकता है. व्रत सकंल्प के समय यह बात शिवजी के समक्ष रखें. इस व्रत में भोजन नहीं करते हैं. व्रती को अपने मुंह से अपशब्द नहीं निकालना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
सूर्यास्त से पूर्व दुबारा स्नान कर शाम की पूजा करनी चाहिए. पूजा शुरु करने से पूर्व उस स्थल पर गंगाजल छिड़कने एवं गाय के गोबर से लीप कर पवित्र करनी चाहिए. मंडप बनाकर कंबल या कुश के आसन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए. पूजा सम्पन्न होने के बाद प्रदोष व्रत की कथा पढ़कर शिव स्तुति कर शिवजी के समक्ष हाथ जोड़कर क्षमा याचना करने के बाद अपनी मनोकामना दोहराना चाहिए.