100 साल बाद पितृ पक्ष पर महासंयोग, चंद्र ग्रहण से शुरू, सूर्य ग्रहण पर खत्म, जानें तर्पण विधि और श्राद्ध के नियम

पितृ पक्ष 2025 एक दुर्लभ खगोलीय घटना का साक्षी बनेगा, जिसमें इसकी शुरुआत चंद्र ग्रहण से और समापन सूर्य ग्रहण से होगा, ऐसा संयोग 100 साल बाद हो रहा है. यह अवधि पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और पंचबलि जैसे श्राद्ध कर्म करने का एक पवित्र अवसर है, जिससे पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है.

पितृ पक्ष 2025: 100 साल बाद ग्रहणों का महासंयोग (Photo : AI)

Lunar and Solar Eclipse on Pitru Paksha: वर्ष 2025 का पितृ पक्ष केवल एक वार्षिक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी दुर्लभ खगोलीय घटना का साक्षी बनने जा रहा है जो लगभग एक सदी के बाद घटित हो रही है. इस वर्ष श्राद्ध पक्ष की शुरुआत एक पूर्ण चंद्र ग्रहण से होगी और इसका समापन एक सूर्य ग्रहण के साथ होगा, जो इसे ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है. यह असाधारण संयोग इस 16-दिवसीय अवधि के महत्व को कई गुना बढ़ा देता है, जिससे यह पितरों की शांति के लिए किए जाने वाले कर्मकांडों के साथ-साथ आत्म-चिंतन और आध्यात्मिक उन्नति का एक अनूठा अवसर बन गया है. इस विशेष कालखंड का प्रभाव न केवल व्यक्तिगत जीवन पर, बल्कि देश और दुनिया पर भी पड़ने की संभावनाएं ज्योतिषियों द्वारा व्यक्त की जा रही हैं.

ग्रहणों का महासंयोग: ज्योतिषीय महत्व और प्रभाव

पूर्ण चंद्र ग्रहण (7-8 सितंबर 2025)

 

 

आंशिक सूर्य ग्रहण (21 सितंबर 2025)

 

 

इस दुर्लभ संयोग का देश-दुनिया पर संभावित प्रभाव

 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब पितृ पक्ष जैसी आध्यात्मिक रूप से संवेदनशील अवधि में सूर्य और चंद्रमा जैसे प्रमुख ग्रह राहु-केतु अक्ष पर पीड़ित होते हैं, तो इसका प्रभाव गहरा हो सकता है. ज्योतिषियों का मानना है कि चंद्र-राहु और सूर्य-केतु का समसप्तक योग (जब वे एक-दूसरे से सातवें घर में हों) एक अशुभ संयोग बनाता है. इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं, विशेषकर पहाड़ी और संवेदनशील क्षेत्रों में, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक उथल-पुथल की आशंका बढ़ सकती है. यह अवधि वैश्विक स्तर पर बड़े बदलावों का संकेत दे सकती है.

 

पितृ पक्ष को समझें - महत्व और मान्यताएं

 

क्या है पितृ पक्ष और श्राद्ध का वास्तविक अर्थ?

 

"श्राद्ध" शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द "श्रद्धा" से हुई है, जिसका अर्थ है पूर्ण विश्वास, सम्मान और निष्ठा. इस प्रकार, श्राद्ध केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करने का एक भावपूर्ण तरीका है. यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाली 16 दिनों की अवधि है.

 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय यमराज पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं ताकि वे पृथ्वी पर अपने वंशजों के पास आ सकें और उनके द्वारा दिए गए तर्पण, पिंडदान और भोजन को ग्रहण कर सकें. इन कर्मों से पितरों की आत्मा को तृप्ति, शांति और सद्गति प्राप्त होती है, और वे बदले में अपने परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं.

 

पितृ ऋण: एक आध्यात्मिक दायित्व जिसे चुकाना है जरूरी

 

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक मनुष्य पर जन्म के साथ तीन प्रमुख ऋण होते हैं: देव ऋण (देवताओं के प्रति), ऋषि ऋण (गुरुओं और ऋषियों के प्रति), और पितृ ऋण (माता-पिता और पूर्वजों के प्रति). पितृ ऋण हमारे पूर्वजों का वह उपकार है, जिन्होंने हमें यह जीवन दिया, हमारा पालन-पोषण किया और हमें एक वंश परंपरा से जोड़ा. श्राद्ध कर्म इसी पितृ ऋण को चुकाने का एक माध्यम है.

 

यदि कोई व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता है, तो उसे "पितृ दोष" का सामना करना पड़ सकता है. पितृ दोष के कारण जीवन में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे संतान प्राप्ति में कठिनाई, बार-बार गर्भपात होना, परिवार में निरंतर कलह, आर्थिक तंगी और कार्यों में असफलता. पितृ पक्ष में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने से इस दोष का निवारण होता है और पितरों के आशीर्वाद से परिवार में सुख-शांति आती है. यह वार्षिक अनुष्ठान केवल आध्यात्मिक शांति के लिए ही नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन में यह एक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आधार भी प्रदान करता है. यह हमें अपनी जड़ों से जुड़ने, अपने पूर्वजों के योगदान को याद करने और पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने का एक अवसर देता है.

 

श्राद्ध कर्म की संपूर्ण विधि

घर पर तर्पण करने की सरल विधि

 

तर्पण का अर्थ है पितरों को जल अर्पित करके उन्हें तृप्त करना. यह एक सरल प्रक्रिया है जिसे कोई भी घर पर कर सकता है.

 

पिंडदान कैसे करें?

 

पिंडदान में पिंड को पितरों के शरीर का प्रतीक माना जाता है, जिसे अर्पित करके उनकी आत्मा को शांति प्रदान की जाती है.

 

पंचबलि: इन 5 जीवों को भोजन कराए बिना श्राद्ध है अधूरा

 

ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले श्राद्ध के भोजन में से पांच अंश अलग-अलग निकालकर पांच विशेष जीवों को अर्पित करने की परंपरा को 'पंचबलि' कहते हैं. इसके बिना श्राद्ध कर्म अधूरा माना जाता है.

 

यह अनुष्ठान केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि प्रकृति के सभी जीवों के प्रति कृतज्ञता और सह-अस्तित्व की भावना का प्रतीक है. यह दर्शाता है कि मनुष्य का जीवन केवल अपने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह देवताओं, पशु-पक्षियों और सूक्ष्म जीवों के साथ एक पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा है.

 

श्राद्ध कौन और कब कर सकता है?

 

यह एक आम धारणा है कि श्राद्ध कर्म केवल पुत्र ही कर सकता है, लेकिन शास्त्र इससे कहीं अधिक समावेशी हैं. शास्त्रों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पितरों तक तर्पण पहुंचे, चाहे माध्यम कोई भी हो.

 

पितृ पक्ष 2025 की महत्वपूर्ण तिथियां और नियम

 

पितृ पक्ष 2025 का संपूर्ण कैलेंडर

 

नीचे दी गई तालिका में 2025 के श्राद्ध पक्ष की सभी तिथियां दी गई हैं, जिससे आप अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि के अनुसार श्राद्ध कर सकते हैं.

 

तिथि (Date) दिन (Day) श्राद्ध तिथि (Shraddha Tithi) विशेष (Notes)
7 सितंबर 2025 रविवार पूर्णिमा श्राद्ध इसी रात पूर्ण चंद्र ग्रहण लगेगा 3
8 सितंबर 2025 सोमवार प्रतिपदा श्राद्ध
9 सितंबर 2025 मंगलवार द्वितीया श्राद्ध
10 सितंबर 2025 बुधवार तृतीया श्राद्ध
11 सितंबर 2025 गुरुवार चतुर्थी और पंचमी श्राद्ध तिथि क्षय के कारण दोनों श्राद्ध एक ही दिन हैं 38
12 सितंबर 2025 शुक्रवार षष्ठी श्राद्ध
13 सितंबर 2025 शनिवार सप्तमी श्राद्ध
14 सितंबर 2025 रविवार अष्टमी श्राद्ध
15 सितंबर 2025 सोमवार नवमी श्राद्ध (अविधवा नवमी)
16 सितंबर 2025 मंगलवार दशमी श्राद्ध
17 सितंबर 2025 बुधवार एकादशी श्राद्ध
18 सितंबर 2025 गुरुवार द्वादशी श्राद्ध
19 सितंबर 2025 शुक्रवार त्रयोदशी श्राद्ध
20 सितंबर 2025 शनिवार चतुर्दशी श्राद्ध (अकाल मृत्यु वालों के लिए)
21 सितंबर 2025 रविवार सर्वपितृ अमावस्या (महालया) इसी दिन सूर्य ग्रहण है (भारत में अदृश्य) 2

 

श्राद्ध के 15 दिन: क्या करें और क्या न करें

 

पितृ पक्ष की अवधि आध्यात्मिक अनुशासन का समय है. इस दौरान कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक माना गया है.

 

क्या करें (Do's)

 

 

क्या न करें (Don'ts)

 

 

भाग 5: पिंडदान और तर्पण के लिए भारत के प्रमुख तीर्थ स्थान

 

जो लोग विशेष तीर्थ स्थलों पर जाकर श्राद्ध कर्म करना चाहते हैं, उनके लिए भारत में कुछ स्थान सिद्ध माने गए हैं.

श्रद्धा और कृतज्ञता का पर्व

 

पितृ पक्ष भय या शोक का समय नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति अपनी जड़ों से जुड़ने, उनके प्रति श्रद्धा, प्रेम और कृतज्ञता प्रकट करने का एक पवित्र अवसर है. यह हमें याद दिलाता है कि हमारा अस्तित्व हमारे पूर्वजों के त्याग और आशीर्वाद का परिणाम है.

वर्ष 2025 में ग्रहणों का दुर्लभ संयोग इस अवधि को और भी विशेष बना रहा है. यह न केवल पितरों की शांति के लिए, बल्कि स्वयं के आध्यात्मिक विकास और आत्म-चिंतन के लिए भी एक अनमोल अवसर है. सच्ची श्रद्धा और साफ मन से किया गया एक सरल तर्पण भी पितरों को परम शांति प्रदान कर सकता है और उनके आशीर्वाद से आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.

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