Nirjala Ekadashi 2019: जानें ‘निर्जला एकादशी’ की महिमा, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
भगवान विष्णु (Photo Credits: Youtube)

Nirjala Ekadashi 2019 Puja Vidhi: ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को ‘निर्जला एकादशी’ (Nirjala Ekadashi) कहते हैं. साल भर की सभी 24 एकादशियों में सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण ‘निर्जला एकादशी’ होती है. स्कंद पुराण के अनुसार अगर किसी कारणवश कोई एक भी एकादशी (Ekadashi) व्रत नहीं कर सका है, अगर वह एकमात्र निर्जला एकादशी का व्रत कर ले तो उसे समस्त एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो जाता है. किंवदंती है कि महाबलशाली भीम ने निर्जला एकादशी का व्रत करके सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त कर लिया था. इसीलिए इसे ‘भीमसेनी एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है.

जब भीम ने भी रखा निर्जला एकादशी का व्रत

एक बार महर्षि व्यास पांडवों के यहां पधारे. भीम ने उनसे कहा, भगवन! युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते हैं और मुझसे भी व्रत रखने के लिए कहते हैं, लेकिन मैं बिना खाए रह नही सकता. इसलिए चौबीस एकादशियों पर निराहार रहने के कष्ट से बचाकर कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसे मैं आसानी से कर सकूं और सबका पुण्य भी मिल जाये. महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के पेट में बृक नामक अग्नि है, इसलिए अधिक भोजन करके भी उसकी भूख शांत नहीं होती. महर्षि ने कहा, तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखो. इस व्रत में स्नान आचमन में पानी पीने से दोष नहीं लगता. साथ ही शेष 23 एकादशियों का पुण्य भी प्राप्त हो जाता है. तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो. भीम ने बड़े साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत रखा. परिणाम स्वरूप प्रातःकाल होते-होते वह संज्ञाशून्य हो गये. पांडवों ने गंगाजल, तुलसी और चरणामृत का प्रसाद, देकर उनकी मूर्छा दूर की. इसके बाद से ही इस व्रत को ‘भीमसेनी एकादशी’ के नाम से भी जाना जाने लगा.

निर्जला एकादशी का महात्म्य

इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस व्रत में एकादशी की सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक निर्जल (बिना पानी) व्रत रखने का विधान है. इस तरह यह व्रत ‘जल संरक्षण’ का भी संदेश देता है. मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी पर व्रत रखने से चंद्रमा द्वारा उत्पन्न नकारात्मक प्रभाव समाप्त होता है, साथ ही ध्यान करने की क्षमता भी बढ़ती है. एकादशी की रात श्रद्धालु रात्रि जागरण कर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. इस तरह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. निर्जला एकादशी में रात को सोना वर्जित माना जाता है, क्योंकि इससे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. व्रती इस पूरे दिन 'ओम नमोः भगवते वासुदेवाय' के मंत्र का जाप करते हैं. इस दिन गंगा स्नान का भी विधान है. एकादशी के दिन पूजा पाठ करने के पश्चात ब्राह्मणों को कपड़ा, छाता, दूध, फल, तुलसी की पत्तियां आदि दान करना शुभ माना जाता है. इस दिन जल तो नहीं पीया जाता, लेकिन व्रती अगर प्यासों को शरबत पिलाए तो काफी पुण्य प्राप्त करता है.

विधि-विधान से करें पूजा-अर्चना

स्नान के बाद भगवान विष्णु के सामने व्रत करने का संकल्प करें. भगवान के सामने कहें कि आप ये व्रत करना चाहते हैं और इसे पूरा करने की शक्ति प्रदान करें. भगवान विष्णु को पीले फल, पीले फूल, पीले पकवान का भोग लगाएं. दीपक जलाकर आरती करें. ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें. विधिवत पूजा करें. इस एकादशी पर पानी का दान करें. किसी प्याऊ में मटकी का दान करें. अगर संभव हो सके तो किसी गौशाला में धन का दान करें. इस एकादशी की शाम तुलसी की भी विशेष पूजा जरूर करनी चाहिए. शाम को तुलसी के पास दीपक जलाएं और परिक्रमा करें.

अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर ब्राह्मण और जरूरतमंदों को खाना खिलाएं. पूजा-पाठ करें. इसके बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए. यह भी पढ़ें: Gayatri Jayanti 2019: भगवान ब्रह्मा के मुख से हुआ था गायत्री मंत्र का प्राकट्य, इसके नियमित जप से मिलती है हर कार्य में सफलता

निर्जला एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ: 12 जून को शाम 6.27 बजे

एकादशी तिथि समाप्त: 13 जून को शाम 4.49 बजे

एकादशी व्रत: 13 जून 2019 को

व्रत पारण मुहूर्त: 14 जून को सुबह 6.04 बजे से 8.42 के बीच

यह कार्य न करें

यह व्रत अन्य व्रतों से थोडा कठिन और चुनौतीपूर्ण होता है. व्रती को इस दिन विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है. अगर आपने व्रत रखा है तो आपको एकादशी की रात सोएं नहीं. पूरी रात जागकर विष्णु जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए. इस दिन पान नहीं खाना चाहिए. क्योंकि पान खाने से रजोगुण की प्रवृत्ति बढ़ती है.

इस दिन चावल भी नहीं खाना चाहिए. कहा जाता है कि चावल का संबंध सीधा पानी से होता है और पानी चंद्रमा से प्रेरित होता है. एकादशी के दिन चावल खाने से पांचों ज्ञानेंद्रियां और पांचों कर्म इंद्रियों का मन पर नियंत्रण नहीं रहता. व्रती को किसी का अपमान, शिकायत, घृणा आदि करने से बचना चाहिए. खासकर बड़े-बुजुर्गों का अपमान हरगिज नहीं करना चाहिए, क्योंकि बृहस्पति देव को वरिष्ठ माना जाता है. बुजुर्गों का अपमान करने से आपको भारी संकट आ सकता है.