National Mathematics Day 2022: कब और कैसे मनाया जाता है राष्ट्रीय गणित दिवस? जानें क्या है इससे श्रीनिवास रामानुजन का संबंध?

शून्य का आविष्कार और उसके सिद्धांतों को भारत (ब्रह्मगुप्त 628 ई) ने परिभाषित किया था, इसके बाद दुनिया में शेष नंबरों का मूल्यांकन बढ़ा और गणित को एक नई दशा-दिशा मिली. गणित के संदर्भ में इस भारतीय दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन ने, जिनके जन्म दिन (22 दिसंबर) पर श्रद्धांजलि स्वरूप भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है

श्रीनिवास रामानुजन (Photo Credits File)

National Mathematics Day 2022: शून्य का आविष्कार और उसके सिद्धांतों को भारत (ब्रह्मगुप्त 628 ई) ने परिभाषित किया था, इसके बाद दुनिया में शेष नंबरों का मूल्यांकन बढ़ा और गणित को एक नई दशा-दिशा मिली. गणित के संदर्भ में इस भारतीय दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन ने, जिनके जन्म दिन (22 दिसंबर) पर श्रद्धांजलि स्वरूप भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है. ऐसे में यह उत्कंठा होना स्वाभाविक है कि रामानुजन ने गणित के क्षेत्र में क्या विशेष किया कि उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में समर्पित किया गया है. आइये जानें, राष्ट्रीय गणित दिवस के साथ-साथ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन की गणित के दिशा में किये गये विशेष योगदान के बारे में विस्तार से.. यह भी पढ़े: National Mathematics Day 2020: जानिए कौन हैं श्रीनिवास रामानुजन, उन्होंने कैसे निभाई सूत्रों और प्रमेयों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका

राष्ट्रीय गणित दिवस का महत्व

राष्ट्रीय गणित दिवस का पूरे भारत के लिए विशेष महत्व है. इस दिवस विशेष को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को मानवता के विकास के लिये गणित के महत्व के बारे में लोगों को जन जागृत करना है. इस दिन गणित के शिक्षकों एवं छात्रों को शिविरों एवं अन्य मंचों के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है. साथ ही अमुक क्षेत्रों में गणित और अनुसंधान आदि पर चर्चा एवं डिबेट किया जाता है.

राष्ट्रीय गणित दिवस का इतिहास

22 दिसंबर 2012 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चेन्नई में आयोजित एक कार्यक्रम में महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे थे. इसी अवसर पर मनमोहन सिंह ने श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिन (22 दिसंबर) को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. इसके बाद से प्रत्येक वर्ष 22 दिसंबर को पूरे देश में राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जा रहा है. श्री रामानुजन का गणित के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए दुनिया उनकी आभारी रहेगी.

कैसे मनाते हैं राष्ट्रीय गणित दिवस?

इस अवसर पर देश के विभिन्न स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों एवं अन्य शैक्षणिक संस्थानों में राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है. गणित को सीखने और समझने के लिए युनेस्को और भारत ने संयुक्त रूप से काम किया, साथ ही छात्रों को गणित में शिक्षित करने और सारी दुनिया में छात्रों एवं शिक्षार्थियों के लिए ज्ञान को बढ़ाने के लिए विभिन्न कदम उठाए गये हैं. द नेशनल अकादमी ऑफ साइंस इंडिया इलाहाबाद (प्रयागराज) स्थित सबसे पुरानी विज्ञान अकादमी है. यहां हर साल इस अवसर पर राष्ट्रीय गणित दिवस मनाने के लिए कार्यशाला आयोजित की जाती है. इस अवसर पर देश विदेश के गणित के विद्वान यहां आते हैं, तथा गणित एवं श्रीनिवास रामानुजन के गणित में योगदान पर चर्चा करते हैं, कार्यशाला का विषय वैदिक काल से लेकर मध्यकाल तक भारतीय गणितज्ञों के योगदान पर चर्चा और प्रस्तुतियां होती हैं.

कौन हैं श्रीनिवास रामानुजन

श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को मद्रास (चेन्नई) से 400 किमी दूर ईरोड में ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता श्रीनिवास अय्यंगर और मां कोमल तम्मल थीं. उन्हें बचपन से गणित प्रिय था. 12 साल की उम्र में वे ट्रिग्नोमेट्री में दक्ष हो गये थे, मात्र 15 साल की उम्र में एप्लाइड मैथ में जॉर्ज शोब्रिज करके सिनोप्सिस ऑफ एलीमेंट्री रिजल्ट की प्रति प्राप्त की. उन्होंने प्राइमरी परीक्षा में जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया. 1904 में गणित में विशेष योगदान पर उन्हें रंगनाथ राव पुरस्कार मिला. 1908 में उनका विवाह जानकी से हुआ था.

इनका बचपन काफी गरीबी में गुजरा था. वह मित्रों से उधार पुस्तक लेकर पढ़ते थे. आर्थिक जरूरतों के लिए मद्रास ट्रस्ट पोर्ट के दफ्तर में क्लर्क की नौकरी की. नौकरी के दरम्यान खाली वक्त में वह गणित के प्रश्न हल करते थे. एक बार एक अंग्रेज ने उनके पत्रों को पढ़ा तो काफी प्रभावित हुए. उन्होंने रामानुजन को पढ़ने के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय भेजा. रामानुजन से प्रभावित होकर रॉयल सोसायटी ने साल 1918 में उन्हें फैलोशिप से सम्मानित किया. यह सम्मान पाने वाले रामानुजन एशिया के पहले व्यक्ति थे. उनके संख्या सिद्धांत पर अद्भुत कार्य के कारण उन्हें ‘संख्याओं का जादूगर’ कहा जाता था. 26 अप्रैल 1920 को मात्र 33 वर्ष की आयु में कुंभनम में उनका निधन हो गया.

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