Muharram 2023: यौमे आशूरा क्या है? जानें इसका महत्व एवं शिया और सुन्नी मुसलमान कैसे मनाते हैं इस दिन को?
इस्लामिक कैलेंडर में आशूरा का विशेष महत्व बताया गया है, यह दिन शिया और सुन्नी दोनों मुस्लिम सम्प्रदायों के लिए आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है. सुन्नी मुसलमान इस दिन ‘सुन्नी बहुमत’ के लिए रोजा रखते हैं और विशेष प्रार्थना के लिए मस्जिद जाते हैं
Muharram 2023: इस्लामिक कैलेंडर में आशूरा का विशेष महत्व बताया गया है, यह दिन शिया और सुन्नी दोनों मुस्लिम सम्प्रदायों के लिए आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है. सुन्नी मुसलमान इस दिन ‘सुन्नी बहुमत’ के लिए रोजा रखते हैं और विशेष प्रार्थना के लिए मस्जिद जाते हैं, जो इसकी पवित्र प्रवृत्ति को दर्शाता है, इसके ठीक विपरीत शिया मुसलमानों के लिए यह गम से भरा दिन होता है, जो कर्बला की लड़ाई के दौरान पैगंबर मुहम्मद के पोते इमाम हुसैन की हत्या की गमगीन सालगिरह के रूप में याद किया जाता है. यहां हम बात करेंगे मुहर्रम जुड़े यौमे-आशूरा के बारे में. शिया और सुन्नी मुसलमानों के लिए इस दिन का क्या महत्व एवं परंपराएं हैं. यह भी पढ़े: Muharram Wishes 2023: मुहर्रम की शुरुआत पर ये मैसेजेस HD Wallpapers और GIF Images भेजकर इमाम हुसैन की शहादत को करें याद
कब है यौम-ए-आशूरा और क्या है इसका महत्व
यौम-ए-आशूरा मुहर्रम के दसवें दिन में मनाया जाता है. इस साल यौमे आशूरा 29 जुलाई 2023 को आयोजित किया जाएक होगी. यह मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए मातम का दिन होता है. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, करीब 1400 साल पहले मुहर्रम के 10वें दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. शिया समुदाय के लोग मुहर्रम की पहली तारीख से नौंवी तारीख तक रोजा रखते हैं. वहीं सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम की नौवीं और दसवीं तारीख को रोजा रखते हैं. यौम-ए-आशूरा के दिन लोग काले कपड़े पहनते हैं और मातम मनाते हैं. विभिन्न शहरों के इमामबाड़े से कर्बला तक ताजिए निकाले जाते हैं. बांस और रंगीन पन्नियों एवं विभिन्न रंग के पेपर्स से गुंबदनुमा ताजिया तैयार किये जाते हैं. इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इसे हजरत इमाम हुसैन की कब्र का प्रतीक माना जाता है.
क्या है आशूरा?
आम मुसलमानों के लिए यौमे आशूरा उस दिन की याद दिलाता है, जब अल्लाह ने लाल सागर को विभाजित करे पैगंबर मूसा के नेतृत्व में इस्राएलियों को मिस्र के फिरौन के अत्याचार से बचाया था, और उन्हें सुरक्षित रूप से लाल सागर पार करने की अनुमति दी गई थी. इस दिन मुस्लिम समाज द्वारा उपवास रखकर धार्मिक क्रियाकलापों में शामिल होकर मनाया जाता है, जिसमें सुन्नी समुदाय मुख्य रूप से उपदेशों एवं साम्प्रदायिक भोज आदि शामिल हैं. जबकि शिया मुसलमान हुसैन की मृत्यु की सालगिरह के अवसर पर उपवास रखते हैं. जिन्हें इमाम या मुस्लिम समुदाय के नेता के रूप में सम्मानित किया जाता है.
कैसे मनाते हैं शिया और सुन्नी मुसलमान?
शिया मुसलमानों में ट्वेल्वर शिया लोकप्रिय शब्द है. इसके अनुसार माना जाता है कि इनमें पहले बारह इमाम दिव्य रूप से चुने हुए थे, उनकी मान्यता अनुसार बारहवें यानी अंतिम इमाम जो वर्ष 873-874 के दरमियान गायब हो गये थे, भविष्य में लौटकर आयेंगे. इन इमाम को महदी कहा जाता है, पूरे शिया समुदाय में से लगभग 85 प्रतिशत बारहवें शिया ही होते हैं. शियाओं के लिए हुसैन की शहादत न्याय और आध्यात्म की खोज में अंतिम कीमत चुकाने को दर्शाती है, इसीलिए आज भी कर्बला में उनके मस्जिदों में शोक समारोहों में उनका शोक मनाया जाता है.