Mokshada Ekadashi 2023: मोक्षदा एकादशी क्यों मानी जाती है खास? जानें क्या है इसका महात्म्य, मंत्र, मुहूर्त, पूजा-विधि एवं पौराणिक कथा!

सनातन धर्म में एकादशी व्रत एवं पूजन का विशेष महत्व बताया गया है. साल की सभी चौबीस एकादशियों का भिन्न-भिन्न महत्व बताया गया है. अधिकमास या मलमास में एकादशियों की संख्या 26 हो जाती है. मार्गशीर्ष मास शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं.

Mokshada Ekadashi 2023: मोक्षदा एकादशी क्यों मानी जाती है खास? जानें क्या है इसका महात्म्य, मंत्र, मुहूर्त, पूजा-विधि एवं पौराणिक कथा!
Mokshada Ekadashi 2023 ( (Photo Credits: Facebook)

सनातन धर्म में एकादशी व्रत एवं पूजन का विशेष महत्व बताया गया है. साल की सभी चौबीस एकादशियों का भिन्न-भिन्न महत्व बताया गया है. अधिकमास या मलमास में एकादशियों की संख्या 26 हो जाती है. मार्गशीर्ष मास शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) कहते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मोक्षदा एकादशी करने से साधक के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, तथा घर-परिवार में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली आती है. इस माह 22 दिसंबर 2023 को मोक्षदा एकादशी पड़ रही है. आइये जानें क्या है

मोक्षदा एकादशी का आशय, महात्म्य, पूजा विधि एवं इसकी पौराणिक कथा

मोक्षदा एकादशी का महात्म्य

हिंदू धर्म शास्त्रों में साल की सभी एकादशियां भगवान विष्णु को समर्पित बतायी गयी है. प्रत्येक एकादशी का अलग-अलग महत्व होता है. जहां तक मोक्षदा एकादशी की बात है, तो इसके नाम से ही परिलक्षित हो जाता है, इस एकादशी के दिन लोग अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए व्रत एवं पूजा-अनुष्ठान आदि का आयोजन करते हैं. इसे गुरुवयूर एकादशी, भागवत एकादशी या वैष्णव मोक्ष नाम से भी जाना जाता है. इस दिन केवल भगवान विष्णु जी की ही पूजा की जाती है. मोक्षदा एकादशी का केरल के गुरुवायुर मंदिर में बड़े भव्य तरीके से मनाया जाता है, जब यहां मंदिर के कपाट 24 घंटे खुले रहते हैं. पूरी रात विष्णु जी की पूजा की जाती है.

मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष एकादशी प्रारंभः 08.16 AM (22 दिसंबर 2023, शुक्रवार)

मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष एकादशी समाप्तः 07.00 AM (23 दिसंबर 2023, शनिवार)

उदया तिथि के अनुसार 22 दिसंबर 2023 को एकादशी का व्रत एवं पूजन सम्पन्न किया जाएगा.

पूजा विधि

मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को सूर्योदय से पूर्व उठकर घर की साफ-सफाई करें. गंगा नदी अथवा गंगाजल मिले पानी से घर में स्नान करें. पीले रंग का स्वच्छ वस्त्र पहनें, और हाथ की अंजुरी में जल और काला तिल रखकर सूर्य को अर्घ्य देते हुए अंजुरी के जल और तिल को प्रवाहित जल में डाल दें. इसके बाद घर के मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से प्रतीकात्मक स्नान कराएं. अब मंदिर में धूप-दीप प्रज्वलित करें, निम्न मंत्र का उच्चारण करें.

श्री विष्णु भगवते वासुदेवाय मंत्र

ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥

विष्णुजी एवं देवी लक्ष्मी को पीले रंग का फूल, रोली, सुपारी, पान, इत्र, पीला चंदन, तिल, जौ, अक्षत, दूर्वा अर्पित करें. इस समय भागवद् गीता के एक अध्याय का श्रवण अथवा पाठन करें. भोग के रूप में दूध की मिठाई एवं फल चढ़ाएं. अब विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. अब भगवान विष्णु की आरती उतारें.

मोक्षदा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

पद्म पुराण के अनुसार मोक्षदा एकादशी के दिन तुलसी की मंजरी, धूप दीप आदि से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए. यह एकादशी बड़े से बड़े पापों को नाश करती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार पूर्वकाल में वैखानस नामक राजा ने पर्वत मुनि द्वारा बताये जाने पर अपने पितरों की मुक्ति के उद्देश्य से इस एकादशी का विधि-विधान से व्रत एवं पूजन किया था, जिसके प्रभाव से राजा वैखानस के पूर्वजों को नर्क से मुक्ति मिल गई थी. मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा पढ़ने अथवा श्रवण करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है.


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