Maharana Pratap Jayanti 2023: शौर्य के प्रतीक महाराणा प्रताप को क्यों कहा जाता है 'बैटल ऑफ दिवेर' और 'थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़'?

महाराणा प्रताप की दो जयंतियां मनाई जाती हैं. इसमें एक तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई 1540 मानी जाती है, इसके अलावा बहुत से लोग उनका जन्म हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की तृतीया को गुरु पुष्य नक्षत्र में हुई माना जाता है.

Maharana Pratap Jayanti (File Image)

Maharana Pratap Jayanti 2023: भारत के महान शूरवीर सपूतों में एक थेमहाराणा प्रताप सिंहजिनकी शौर्यत्याग और बलिदान की गाथाएं आज भी गूंजती है. महाराणा प्रताप का जन्म मई 1540 को राजपूत परिवार में हुआ था. पिता उदय सिंह मेवाड़ वंश के 12वें शासक थे. महाराणा प्रताप उनके ज्येष्ठ पुत्र थे. उनसे छोटे तीन भाई और दो सौतेली बहने थीं. महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थी. अकबर को तो उन्होंने तीन बड़ी लड़ाइयां (1577, 1578 और 1579 में) बुरी तरह हराया था.

महाराणा प्रताप का साल में दो बार जन्मदिन मनाया जाता है. कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटियां खाई और जमीन पर सोकर रात जरूर गुजारीलेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी. मई 2023 को उनकी 483 वीं वर्षगांठ के अवसर पर हम बात करेंगेमहाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी कुछ प्रेरक और रोचक पहलुओं पर.

महाराणा प्रताप जयंती दो तिथियों में क्यों मनाई जाती है?

गौरतलब है कि कुछ विशेष कारणों से महाराणा प्रताप की दो जयंतियां मनाई जाती हैं. इसमें एक तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मई 1540 मानी जाती हैइसके अलावा बहुत से लोग उनका जन्म हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की तृतीया को गुरु पुष्य नक्षत्र में हुई माना जाता हैइसलिए इस तिथि पर भी महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जाती है.  महाराणा प्रताप जयंती पर ये मैसेजेस और कोट्स 

महाराणा प्रताप विशाल व्यक्तित्व!

महाराणा प्रताप की लंबाई फीट इंच थीजो अकबर की लंबाई से बहुत ज्यादा थी. उनका वजन 110 किग्रा था. युद्ध के मैदान में वह 104 किग्रा के दो तलवार रखते थे ताकि जब कोई निहत्था दुश्मन मिले तो एक तलवार महाराणा उसे दे सकेंक्योंकि वह निहत्थे पर वार नहीं करते थे. उनके भाले का वजन 80 किलो और कवच का 72 किलो वजन बताया जाता है.

'बैटल ऑफ दिवेरऔर 'थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़'

यह महाराणा प्रताप के शौर्य का ही परिणाम था कि अकबर की भारी भरकम सेना होकर भी ना उन्हें कभी गिरफ्तार कर सका और ना ही मेवाड़ पर पूर्ण अधिकार जमा सका. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1576 में हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात मुगलों ने कुंभलगढ़. गोगुंदाउदयपुर और आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया थालेकिन अकबर महाराणा प्रताप का बाल भी बांका नहीं कर सका. लेकिन अकबर ने हार नहीं मानी उसने 1577 से 1582 के बीच लाखों सैनिक भेजालेकिन महाराणा प्रताप ने हर बार उसके छक्के छुड़ाये. अंग्रेजी इतिहासकार कर्नल टॉड ने हल्दीघाटी के युद्ध को थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़ की संज्ञा से नवाजा तो दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप को बैटल ऑफ दिवेर कहाजिसमें भी महाराणा प्रताप ने अकबर को बुरी तरह हराया था.

क्या था दिवेर का युद्ध?

महाराणा प्रताप ने दिवेर युद्ध की योजना अरावली के जंगलों में बनाई थीभामाशाह से मिली धनराशि से उन्होंने बड़ी फौज तैयार कीबीहड़ जंगलभटकावभरे पहाड़ी रास्तोंभीलोंराजपूतों एवं स्थानीय निवासियों की गुरिल्ला युद्ध के हमलों और रसद 

हथियार आदि लूटकर मुगल सेना की हालत खराब कर दी थीदिवेर का युद्ध 1582 में हुआइस युद्ध में मुगल सेना की अगुवाई अकबर का चाचा सुल्तान खां ने किया थाजबकि महाराणा ने अपनी सेना को दो हिस्सों एक का नेतृत्व स्वयं महाराणा एवं दूसरे का कमान उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थेदिवेर के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप का पलड़ा मुगलों पर भारी पड़ा. उन्होंने उदयपुर समेत 36 अहम जगहों पर अपना अधिकार कर लिया.

महाराणा प्रताप की मृत्यु की प्रमाणित तिथि नहीं हैलेकिन कहा जाता है कि घायल होने के बाद वे पुनः स्वस्थ नहीं हुए और 19 जनवरी 1597 को उनकी मृत्यु हो गई.

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