Magh Mela 2020: उत्तरा पूर्णिमा से शुरू होकर महाशिवरात्रि (Mahashivratri) तक चलने वाले माघ मेले (Magh Mela) और माघ स्नान (Magh Snan) की शुरुआत इस बार 10 जनवरी 2020 से हो रही है. इसी दिन चंद्र ग्रहण भी है. प्रयागराज (Prayagraj) में प्रत्येक वर्ष माघ मास में चलने वाला यह मेला कल्पवासियों के कारण और भी विशेष बन जाता है. मान्यता है कि पूरे माघ मास तक संगम में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है. इस स्नान से सुख, शांति और समृद्धि के साथ संतान-सुख एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसा भी कहते हैं कल्पवासी के रूप में शुद्ध भाव से स्नान करने से अमोघ सिद्धी प्राप्त होती है. आइए जानें क्या और क्यों है माघ मास में स्नान एवं दान का महत्व!
माघ स्नान का महात्म्य
पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि महाभारत काल से ही माघ मास में स्नान, दान एवं उपवास का विशेष महात्म्य रहा है. वस्तुतः माघ मास में प्रयागराज में अनेक तीर्थों का समागम होता है, इसलिए इस मास में जो भी त्रिवेणी में श्रद्धा एवं भक्ति भाव से स्नान एवं दान-धर्म करता है, उसके सारे पाप एवं कष्ट दूर हो जाते हैं और अंततः उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है. इस मास के महत्व का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री रामचरित्रमानस के बालखण्ड में भी उल्लेखित है,
'माघ मकर गति रवि जब होई,
तीरथपतिहिं आव सब कोई !!
धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए अपने रिश्तेदारों को सद्गति दिलाने हेतु मार्कण्डेय ऋषि के कहने पर इसी त्रिवेणी तट पर कल्पवास किया था. गौतमऋषि द्वारा शापित इंद्रदेव को भी माघ स्नान के बाद ही श्राप से मुक्ति मिली थी. विद्वानों का मानना है कि माघ मास में पवित्र नदियों में स्नान करने से विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है, तन निरोगी और मन आध्यात्मिक शक्तियों से युक्त हो जाता है. इस मास में गंगा स्नान के बाद पूजा-अर्चना एवं दान-धर्म करके श्रीहरि को प्राप्त किया जा सकता है.
स्नान का पावन समय
कुछ स्थानों पर माघ मास का स्नान सूर्य देव के दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रयाण करने यानी मकर संक्रांति के दिन से शुरू होता है, लेकिन अधिकांश स्थानों स्थानों पर पौष पूर्णिमा के दिन से ही स्नान-दान शुरू हो जाता है. स्नान का सर्वोत्तम समय सूर्योदय से पूर्व माना जाता है. मान्यता है कि इस पवित्र बेला पर ब्रह्मा, विष्णु, एवं महेश के साथ-साथ और भी देवी-देवतागण संगम स्नान करते हैं. ऐसी आस्था भी है कि प्रयागराज में माघ मास में तीन बार स्नान करने का फल दस हज़ार अश्वमेघ यज्ञ से भी ज्यादा होता है.
सूर्य अर्घ्य एवं दान बिना अधूरा है स्नान
पद्म पुराण में वर्णित है कि पूजा, तपस्या, यज्ञ आदि से श्री हरि उतने प्रसंनता नहीं होते, जितनी माघ मास में स्नान एवं भगवान भास्कर को अर्घ्य देने से होती है. इसलिए पापों कर्मों से मुक्ति एवं श्रीहरि का प्यार पाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को माघ स्नान कर सूर्य-मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य देना चाहिए. स्नान के बाद तिल, गुड़ एवं और कंबल दान विशेष फलदायी माना जाता है. यह भी पढ़ें: Paush Purnima 2020: पौष पूर्णिमा पर गंगा स्नान व दान करने से होती है मोक्ष की प्राप्ति, जानें शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और महत्व
मेले का विशेष स्नान
पौष पूर्णिमा- 10 जनवरी (शुक्रवार)
मकर संक्रांति- 15 जनवरी (बुधवार)
मौनी अमावस्या- 24 जनवरी (शुक्रवार)
वसंत पंचमी- 30 जनवरी (मंगलवार)
माघी पूर्णिमा- 9 फरवरी (रविवार)
महाशिवरात्रि- 21 फरवरी (शुक्रवार)
सर्वाधिक पवित्र है मौनी अमावस्या का स्नान
स्नान-दान के लिए अमावस्या को सर्वाधिक पवित्र एवं शुभ तिथि को माना गया है. इसे ‘मौनी अमावस्या’ भी कहते हैं. मौनी अमावस्या को दर्श अमावस्या भी कहते हैं. इस दिन व्रत एवं स्नान करने वाले को पूरे दिन मौन-व्रत रखने से अभीष्ठ फलों की प्राप्ति होती है.
उज्जैन, नासिक एवं हरिद्वार में भी है स्नान-दान का महत्व
यूं तो माघ मास में देश की प्रत्येक पवित्र नदियों के तट पर श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं लेकिन प्रयागराज के अलावा उज्जैन, नासिक एवं हरिद्वार में भी श्रद्धालु भारी तादाद में स्नान-दान करने पहुंचते हैं.