Jyoti Rao Phule Jayanti 2023: स्त्री-शिक्षा के सचेतक ज्योतिबा फुले के जीवन के रोचक एवं प्रेरक प्रसंग!

महान सामाजिक कार्यकर्ता, व्यवसायी, विचारक, समाज सुधारक, लेखक एवं जाति-विरोधी समाज सुधारक ज्योतिराव गोविंदराव (ज्योतिबा) फुले आज भी पूरे देश में लोकप्रिय हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन अस्पृश्यता एवं जाति-व्यवस्था के उन्मूलन, महिलाओं एवं निचली जाति के लोगों को शिक्षित करने में अर्पित कर दिया था...

Jyoti Rao Phule Jayanti 2023: स्त्री-शिक्षा के सचेतक ज्योतिबा फुले के जीवन के रोचक एवं प्रेरक प्रसंग!
महात्मा ज्योतिबा फुले जयंती 2023 (Photo Credits: File Image)

Jyoti Rao Phule Jayanti 2023: महान सामाजिक कार्यकर्ता, व्यवसायी, विचारक, समाज सुधारक, लेखक एवं जाति-विरोधी समाज सुधारक ज्योतिराव गोविंदराव (ज्योतिबा) फुले आज भी पूरे देश में लोकप्रिय हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन अस्पृश्यता एवं जाति-व्यवस्था के उन्मूलन, महिलाओं एवं निचली जाति के लोगों को शिक्षित करने में अर्पित कर दिया था. उनके इन कार्यों में पत्नी सावित्रीबाई फुले का भी पूरा सहयोग था. ज्योतिबा फुले स्त्री शिक्षा हेतु देश में पहला स्कूल 1848 में तात्यासाहेब भिड़े के निवास पर शुरू किया था. यह भी पढ़ें: Mahatma Jyotiba Phule Death Anniversary: जानें गरीब और दबे-कुचले परिवार का बालक कैसे बना महात्मा ज्योतिबा फुले?

निचली जाति के लोगों को समान अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने अपने अनुयायियों के सहयोग से सत्यशोधक समाज (Society of Truth Seekers) का गठन किया, जो सभी धर्म एवं जाति के उत्पीड़ितों के उत्थान के लिए कार्य करता था. फुले को साल 1888 में मुंबई में ‘महात्मा’ शब्द से सम्मानित किया गया. महात्मा फुले की 11 अप्रैल 2023 को 196वीं जयंती मनाई जायेगी. आइये जानें महात्मा फुले के तपस्वी जीवन के कुछ दिलचस्प एवं प्रेरक प्रसंग..

ऐसे मिला ‘फुले’ सरनेम

ज्योतिराव का जन्म 11 अप्रैल 1827 को सतारा (महाराष्ट्र) में हुआ था. गोरहे एवं माली समाज से संबद्ध पिता गोविंदराव फुले सब्जी बेचते थे, माँ चिमनाबाई गृहिणी थीं. ज्योतिराव जब मात्र 9 माह के थे, माँ का निधन हो गया. इनका पालन-पोषण सगुणाबाई (दाई) ने किया. गोविंदराव का पैतृक व्यवसाय फूलों का था, तभी से वे ‘फुले’ नाम से लोकप्रिय हुए. जाति-वर्ण एवं गरीबी के कारण इनकी पढ़ाई छूट गई. 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी भाषा में 7वीं कक्षा तक की पढ़ाई कर सके. 1840 में उनका विवाह सावित्रीबाई से हुआ. इनके कोई संतान नहीं थी, उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद लिया, जो बड़ा होकर डॉक्टर बना माता-पिता के साथ सामाजिक सेवा से जुड़ा.

पत्नी शिक्षा से शुरु किया स्त्री-शिक्षा आंदोलन

ज्योतिराव फुले की पत्नी सावित्रीबाई अशिक्षित थीं, मगर शिक्षा की लालसा खूब थी. उन दिनों स्त्री-शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी. ज्योतिराव के आंदोलनों में स्त्री-शिक्षा प्रमुखता से जुड़ा था. उन्होंने पत्नी सावित्रीबाई को खेतों में काम करने के बहाने बुलवाकर पढ़ाते थे, क्योंकि घर-परिवार के लोग भी स्त्री-शिक्षा को गैरव्यवहारिक मानते हुए विरोध करते थे. सावित्रीबाई को शिक्षित करने के पश्चात 1848 में उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल खोला, जिसकी अध्यापक और प्रिंसिपल सावित्रीबाई फुले थीं. हालांकि इसके लिए सावित्रीबाई को सामाजिक विरोध का कई बार सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और स्त्री-शिक्षा को प्रमुखता देते हुए स्कूल शुरू करते रहे.

ब्राह्मण पुरोहित के बिना विवाह संस्कार की परंपरा?

उन दिनों चरम पर फल-फूल रहे अस्पृश्यता भावना को जड़ से समाप्त करने के उद्देश्य से ज्योतिराव ने 1888 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की. इस समाज के नेतृत्व में ज्योतिराव ने ब्राह्मण पुरोहितों के बिना ही विवाह-संस्कार की परंपरा शुरू की, जो खूब लोकप्रिय रही. बाद में इस व्वयस्था को बंबई हाईकोर्ट ने भी मान्यता दे दी. इसी समाज के जरिए ज्योतिराव ने बाल-विवाह का विरोध एवं विधवा-विवाह का समर्थन भी किया. इसी सोच के तहत फुले दंपत्ति ने भी विधवा-पुत्र को ही गोद लिया था.

जब उन्हीं के हत्यारे बन गये उनके अनुयायी!

स्त्री-शिक्षा हेतु स्कूल शुरू करने पर लोगों ने जब विरोध शुरू किया तो पिता ने ज्योतिराव एवं सावित्रीबाई को घर से निकाल दिया था. लेकिन इससे ज्योतिराव का संकल्प कमजोर नहीं पड़ा. एक रात वे घर लौट रहे थे. रास्ते में उन्हें दो व्यक्ति हाथ में तलवार लिये आते दिखे. ज्योतिबा ने दोनों से पूछा ये तलवार लेकर क्यों घूम रहे हो? उन्होंने बताया, -वे ज्योतिबा को मारने जा रहे हैं, क्योंकि इससे हमें पैसे मिलेंगे. हमें पैसों की जरूरत है. ज्योतिबा ने कहा, मैं ही ज्योतिबा हूं, तुम मुझे मारकर अपनी जरूरत पूरी कर सकते हो. ज्योतिबा के इतना कहते ही दोनों ने तलवार जमीन पर फेंक दिया. ज्योतिबा ने उन्हें अपने संरक्षण में ले लिया.

ज्योतिराव फुले की साहित्य सेवा

ज्योतिराव फुले की अंग्रेजी में लिखी पुस्तक गुलामगिरी वस्तुतः शूद्र-अति शूद्रों को ब्राह्मणों ने गुलाम बना दिया था. वे अनादि काल से इनका शोषण कर रहे थे. इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी और शिक्षित भारतीयों को यह बताना था कि आम समाज का ही एक हिस्सा शूद्र समाज भी है. इसके अलावा भी विभिन्न विषयों पर उन्होंने पुस्तकें लिखीं, जो उनके समाज सुधारक प्रवृत्ति का भी हिस्सा रहीं. ये पुस्तकें हैं तृतीया रत्न, ब्रह्मनांचे कसाब, पोवाड़ा (छत्रपति शिवाजीराजे भोसले का जीवन), मानव महामंद (मुहम्मद) (अभंग), सत्यशोधक समाजोक्त मंगलाष्टकासः सर्व पूजा-विधि, सर्वजन सत्य धर्मपुस्तक, शेतकार्याचा आसुद.

28 नवंबर 1890 को समाज सुधारक और शिक्षाविद् ज्योतिराव गोविंदराव फुले का 63 वर्ष की आयु में पुणे में निधन हो गया.


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