Independence Day 2019: वो ऐतिहासिक मस्जिद और मकबरे, जहां से क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ फूंका आजादी का बिगुल
अगर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई का इतिहास खंगाला जाये तो गणेशोत्सव ही नहीं बल्कि कई मंदिर, मस्जिदो एवं मकबरा भी क्रांतिकारियों की शरण स्थली बनें, जहां अंग्रेजी सेना एवं अफसरों पर हमलों के लेकर गुप्त योजनाएं गढ़ी जाती थीं.
Happy Independence Day 2019: आजादी की लड़ाई (Freedom Fight) में भारत के विभिन्न धर्मों एवं धार्मिक स्थलों की अहम भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता. आज महाराष्ट्र का सबसे बड़ा धार्मिक पर्व कहे जानेवाले गणेशोत्सव (Ganesh Utsav) की नींव क्रांतिकारियों (Freedom Fighters) की गतिविधियों के लिए रखी गयी. अगर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई का इतिहास खंगाला जाये तो गणेशोत्सव ही नहीं बल्कि कई मंदिर (Temples), मस्जिदो (Masjid) एवं मकबरा (Mausoleums) भी क्रांतिकारियों की शरण स्थली बनें, जहां अंग्रेजी सेना एवं अफसरों पर हमलों के लेकर गुप्त योजनाएं गढ़ी जाती थीं. आज हम कुछ ऐसे ही मस्जिदों एवं मकबरों की बात करेंगे, जो क्रांतिकारियों की स्मृतियों के मूक गवाह रहे हैं.
रुहेलखंड का नौमहला मस्जिद जहां आज भी क्रांतिकारियों की कुर्बानी के तराने सुने जाते हैं.
साल 1749 में रुहेलखंड में नौमहला मस्जिद की नींव सैयद शाजी बाबा ने रखी गयी थी. तब यह कच्चे मिट्टी के दीवारों की बनी थी. मुस्लिम समाज यहां नमाज अदा करता था. वर्ष 1906 में इस मस्जिद को पक्का बना दिया गया. इसी समय यहां नौ महले बने. तभी से इसका नाम नौमहला मस्जिद पड़ गया. ऊंचे बुर्ज वाली इस मस्जिद परिसर में एक बड़ा कुंआ भी था.
1857 में जब पहली बार क्रांति की आग भड़की तो रुहेलखंड के युवा सिपाही भी अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति पाने के लिए कूद पड़े थे. उन्होंने नौमहला मस्जिद को अपना मुख्यालय बनाया था, उस समय क्रांतिकारियों का नेतृत्व नवाब खान बहादुर खान कर रहे थे. क्रांतिकारी सिपाही यहीं गुप्त बैठकें करके अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नयी-नयी रणनीति बनाते थे. कहा जाता है कि यहां क्रांतिकारियों को पनाह मिलती थी. खान बहादुर के साथ दीवान पंडित शोभाराम ओझा, तेगबहादुर, बरेली कॉलेज के शिक्षक मौलवी महमूद हसन, शिक्षक कुतुबशाह, प्रोफेसर मुबारक सहित तमाम क्रांतिकारी इस मस्जिद में छिपकर मीटिंग करते थे. इसी मस्जिद से पूरे रुहेलखंड में क्रांति की ज्वाला फैली थी, जिसने अंग्रेज हुकूमत का जीना हराम कर दिया था. एक पल ऐसा भी आया कि रुहेलखंड के क्रांतिकारियों ने बरेली शहर को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करवा लिया था. यह भी पढें: Independence Day 2019: भारत के इन वीर क्रांतिकारियों की बदौलत मिली थी देश को आजादी, आइए 73वें स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें करें नमन
कहा जाता है कि नौमहला मस्जिद से ही आजादी की अजान हुई थी, जिसने पूरे रुहेलखंड को आजादी हासिल करने के लिए एकसूत्र में पिरोया था. सूत्र बताते हैं कि 22 मई 1857 को यहीं से इमाम महमूद हसन ने आजादी की खातिर अजान दी थी, इसके पश्चात पूरा रुहेलखंड धधक उठा था. धर्म-मजहब से दूर हिंदू-मुस्लिमों ने एक छत के नीचे एकत्र होकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका.
बाद में जब अंग्रेजी हुकूमत को पता चला कि नौमहला मस्जिद क्रांतिकारियों का गुप्त अड्डा है तो अंग्रेज सेना ने अचानक मस्जिद पर हमला बोल दिया. इस हमले में अजान देने वाले इमाम सैयद इस्माइल पुलिस की गोली खाकर शहीद हो गये. कहा जाता है कि उस समय अंग्रेज सैनिकों से अपनी इज्जत बचाने के लिए लड़कियों और महिलाओ ने पास के कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी थी, जिससे कुएं का पानी लाल हो गया था. आज भी इस मस्जिद की दीवारों पर अमर सपूतों की कब्र मौजूद है. भले ही यहां कोई ऐतिहासिक अभिलेख नहीं है, पर क्रांतिकारियों की कुर्बानी के गीत आज भी यहां सुनाई देते हैं.
इलाहाबाद का खुसरोबागः जहां ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बनती थी रणनीति
इलाहाबाद स्थित खुसरोबाग में मुगल बादशाह जहांगीर के बड़े बेटे खुसरो मिर्जा, जहांगीर की पहली पत्नी शाह बेगम और बेटी राजकुमारी सुल्तान निथार बेगम का मकबरा है. यहां स्थापित शिलालेख बताते हैं कि जहांगीर के परिवार के इन अहम लोगों को 17 वीं शताब्दी में दफनाया गया था. इस बाग़ में स्थित कब्रों पर की गयी नक्काशी मुगल कला का जीवंत उदाहरण है. खुसरोबाग स्थित यह मकबरा शहर आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनते हैं.
खुसरोबाग का इतिहास जहांगीर के परिवार वालों का मकबरा ही नहीं बल्कि 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का मूक गवाह भी माना जाता है. 10 मई 1857 में जब मेरठ शहर से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत की जंग शुरू हुई तो अंग्रेजों ने उसे दबाने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन यह बगावत शीघ्र ही जंगल के आग की तरह पूरे उत्तर प्रदेश में फैल गयी, जिससे शहर इलाहाबाद भी अछूता नहीं रहा. क्रांति की चिंगारी इलाहाबाद के करीबी गांवों में भी फूटी. इस चिंगारी को हवा देने का काम क्षेत्र के जागीरदारों एवं आम जनता ने किया था. क्रांति की शुरूआत होने की जानकारी इलाहाबाद में 12 मई 1857 को आ गई थी. यह भी पढ़ें: Independence Day 2019 Wishes: स्वतंत्रता दिवस पर ये शानदार WhatsApp Stickers, Facebook Messages, SMS, GIF, Wallpapers और Quotes भेजकर सभी के साथ मनाएं आजादी का जश्न
यहां इस लड़ाई का नेतृत्व मौलाना लियाकत अली ने किया था. लियाकत अली ने ऐतिहासिक खुसरोबाग को स्वतंत्र इलाहाबाद का मुख्यालय बनाया साथ ही अंग्रेजी हुकूमत से खुली जंग का केंद्र भी. इलाहाबाद में बादशाह बहादुर शाह जफर तथा बिरजिस कद्र ने की थी. सम्राट बिरजिस कद्र की मुहर वाली घोषणा को शहर में जारी किया गया था. इस मुहर में अंग्रेजों को भगाने की अपील की गई थी.
मौलाना लियाकत अली अपने भरोसेमंद लोगों की मदद से क्रांति की सूचनाएं इलाहाबाद से दिल्ली दरबार तक पहुंचाते थे. उस समय इलाहाबाद किले में दो सौ सैनिक किले की रक्षा में लगे थे. इलाहाबाद किला अंग्रेजों की शक्ति का मुख्य केंद्र बिंदु भी था. जहां अंग्रेज भारी मात्रा में गोला बारूद रखते थे. 6 जून 1857 को अंग्रेज सैनिकों ने बागी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. उस समय इलाहाबाद में छठीं रेजीमेंट, देशी पलटन और फिरोजपुर रेजीमेंट तथा सिख दस्तों का पड़ाव था. बागियों ने अंग्रेजों के कब्ज़े से 30 लाख रुपये का खजाना लूटते हुए 7 जून 1857 को कोतवाली में हरा झंडा फहराया था.