युक्रेन और रूस के बीच युद्ध अभी थमा नहीं है, कि युक्रेन को मदद करने वाले पौलेंड को भी रूस ने आंख दिखाना शुरू कर दिया है. उधर चीन और ताइवान के बीच नोक-झोंक युद्ध की तरफ धकेलता दिख रहा है. इधर चीन और पाकिस्तान का भी भारत के बीच नजरिया अच्छा नहीं दिख रहा है. इस तरह एक दूसरे पर अपना प्रभुत्व जमाने की मंशा ने तृतीय विश्व युद्ध की चर्चा को हवा देना शुरू कर दिया है. ऐसे में दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी को परमाणु बम से बर्बाद करने वाले मंजर याद आना लाजमी है, दुनिया के इस पहले परमाणु युद्ध में ऑफिसियली आंकड़ों के अनुसार एक लाख बीस हजार लोग मारे गए थे, जबकि सूत्रों की मानें तो सवा दो लाख लोग पलक झपकते ही झुलस कर मर गये. उस बर्बादी के 78 वर्ष बाद आज भी उसके बुरे रिएक्शन से मुक्त नहीं हो सकता है जापान. हिरोशिमा दिवस के अवसर पर आइये जानें हिरोशिमा और नागासाकी की बर्बादी की कहानी..
क्या था ‘मैनहट्टन’ प्रोजेक्ट?
साल 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने से पहले ही, अमेरिकी वैज्ञानिकों का एक ग्रुप जिनमें से कई यूरोपीय फासीवादी शासन के शरणार्थी थे, नाज़ी जर्मनी में किए जा रहे परमाणु हथियार अनुसंधान से चिंतित थे. अगले ही वर्ष 1940 में, अमेरिकी सरकार ने परमाणु हथियार विकास कार्यक्रम शुरू किया. अमेरिकी सेना के कोर ऑफ इंजीनियर्स को शीर्ष-गुप्त कार्यक्रम के लिए आवश्यक सुविधाओं के निर्माण का नेतृत्व सौंपा गया, जिसे कोडनेम दिया गया ‘द मैनहट्टन प्रोजेक्ट’. World Breastfeeding Week 2023: कब शुरू हो रहा है विश्व स्तनपान सप्ताह? जानें इसका इतिहास, अहमियत एवं कुछ रोचक तथ्य?
इसके बाद वैज्ञानिकों ने परमाणु विखंडन (Nuclear Fission) के लिए मूल सामग्री यूरेनियम-235 और प्लूटोनियम (PU-239) का निर्माण किया, और इसे लॉस एलामोस, न्यू मैक्सिको भेजा गया, जहां जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर के नेतृत्व में एक कुशल टीम ने इन सामग्रियों से परमाणु बम का निर्माण किया. 16 जुलाई 1945 की सुबह-सवेरे ‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ को न्यू मैक्सिको के अलामोगोर्डो में ट्रिनिटी परीक्षण स्थल पर प्लूटोनियम बम का पहला सफल परीक्षण किया.
जापान की हठ और ‘ऑपरेशन डाउनफॉल’!
ट्रिनिटी परीक्षण तक, मित्र देशों ने जर्मनी को पराजित कर दिया था, जापान को स्पष्ट जीत की संभावना कम होने के बावजूद, अंतिम सांस तक लड़ने की कसम खाई. अप्रैल 1945 से जुलाई तक जापानी सेना ने मित्र राष्ट्रों को भारी नुकसान पहुंचाया, जो जापान के लगातार घातक होने का संकेत था. जुलाई 1945 में, जापान सरकार ने पॉट्सडैम घोषणा में मित्र देशों की आत्मसमर्पण की मांग खारिज कर दिया. जापानियों को ‘शीघ्र और संपूर्ण विनाश’ की धमकी दी. जनरल डगलस मैकआर्थर और अन्य शीर्ष कमांडरों ने जापान पर बमबारी जारी रखते हुए बड़े पैमाने पर आक्रमण का समर्थन किया, जिसे ‘ऑपरेशन डाउनफॉल’ नाम दिया गया. उन्होंने ट्रूमैन को बताया कि इससे अमेरिका को भी नुकसान होगा. ट्रूमैन ने हेनरी स्टिमसन, जनरल ड्वाइट आइजनहावर और मैनहट्टन प्रोजेक्ट के वैज्ञानिकों की आपत्तियों के बावजूद शहंशाह बनने की जिद में हिरोशिमा पर परमाणु हमले का निर्णय लिया.
क्या था 'लिटिल बॉय' और 'फैट मैन'?
परमाणु हमले के लिए अमेरिका ने टोक्यो से करीब 800 किमी दूर एक विकसित शहर हिरोशिमा को चुना था. करीब 9 हजार पौंड वाले यूरेनियम-235 बम को बी-29 बमवर्षक पर लोड किया गया, जिसके पायलट कर्नल पॉल थे. विमान ने सुबह 08.15 बजे पैराशूट से बम गिराया जिसका कोड नाम था ‘लिटिल बॉय’. यह हिरोशिमा से 2,000 फीट ऊपर फट गया, जिससे शहर का लगभग 12.95 वर्ग किमी क्षेत्र तबाह हो गया. इसके बावजूद जापान ने आत्मसमर्पण नहीं किया. लिहाजा 9 अगस्त 1945 को सुबह 11.02 बजे मेजर चार्ल्स स्वीनी ने एक और प्लूटोनियम बम, जिसका कोड था ‘फैट मैन’, जो ‘लिटिल बॉय’ से ज्यादा शक्तिशाली था, लेकिन घने बादलों के कारण यह बम निर्धारित लक्ष्य कुकुरा शहर के बजाय संकरी घाटियों में बसे नागासाकी में गिरने से बम का प्रभाव कम हो गया, इस धमाके से 40 हजार से ज्यादा लोग मारे गये.
आत्मसमर्पण और राहत
जापान के दोनों विकसित शहरों के श्मशान में परिवर्तित होने के बाद 15 अगस्त 1945 को जापान के सम्राट हिरोहितो ने एक रेडियो संबोधन में दुनिया के सबसे क्रूरतम, विनाशकारी एवं कायराना हमला बताते हुए बिना शर्त आत्मसमर्पण की घोषणा की. सूत्रों की मानें तो अगर जापान 15 अगस्त को आत्म-समर्पण नहीं करता तो अमेरिका जापान के एक और शहर पर परमाणु बम गिराने की योजना बनाई थी. हालांकि अमेरिका के इस कृत्य की सभी देशों ने भर्त्सना की थी.