Hazrat Ali Jayanti 2023: कब है हजरत अली जयंती? जानें इस्लाम में इनका महत्व और कैसे करते हैं सेलिब्रेशन?
आला हजरत की मजार (Photo Credits WC)

इस्लाम धर्म के पहले वैज्ञानिक माने जाने वाले हजरत अली, जिन्हें अली इब्न अबी तालिब के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म इस्लामिक कैलेंडर के सातवें महीने रजब की 13वीं तारीख को पवित्र इस्लामिक तीर्थ स्थल काबा में हुआ था. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष इनका जन्म 4 फरवरी 2023 शनिवार को मनाया जायेगा. इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिए इस दिन का विशेष महत्व है. गौरतलब है कि हजरत अली का निकाह पैगंबर मोहम्मद की बेटी फातिमा के साथ हुआ था, वे मोहम्मद पैगंबर के वारिस, शिया समाज के पहले इमाम और सूफियों के पहले वली भी हैं. आइये जानें इस्लाम धर्म के उपासक कैसे करते हैं हजरत अली जयंती का सेलिब्रेशन.. यह भी पढ़ें: Hazrat Ali Wiladat: कौन हैं हजरत अली? जानें पहले मुस्लिम वैज्ञानिक का इतिहास एवं महत्व!

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पैगंबर मोहम्मद सल्लाहुअलैहिवसल्लम ने जब इस्लाम धर्म का संदेश दिया था तो हजरत अली इसे स्वीकार करने वाले पहले युवा मुस्लिम थे, और मात्र 10 वर्ष के थे. हजरत अली बहुत उदार एवं दयालु शासक थे, इसलिए मुसलमान उन्हें बहुत पसंद करते हैं, एवं उनके द्वारा किए गए मानव कल्याणकारी कार्यों और प्रयासों को ध्यान में रखते हुए, उनके सम्मान में बड़ी धूमधाम से उनकी जयंती मनाई जाती है.

इस्लाम में हज़रत अली का महत्व

इस्लामिक धर्मग्रंथों में, हज़रत अली को उनके ज्ञान, ईमानदारी, धर्म के प्रति असीम समर्पित, निष्ठा, समानता एवं न्याय की भावना के लिए सम्मानित किया जाता है. युद्ध क्षेत्र में हारे हुए दुश्मनों को भी उदारतापूर्वक क्षमा करने वाले दयालु मनुष्य के रूप में जाने जाते थे. वह गरीबों एवं जरूरतमंदों को लिए दयाभाव के साथ ही दान आदि से मदद करते थे. फुर्सत के समय वह खेत जोतने, कुएं खोदने, वृक्षारोपण करते थे. वह बहुत सादा एवं श्रम भरा जीवन बिताते थे.

हजरत अली का इतिहास

इस्लामिक अभिलेखों के अनुसार, हजरत अली का जन्म अली इब्न अबी तालिब के रूप में फातिमा बिन्त असद और अबू तालिब के पुत्र के रूप में काबा के एक पवित्र अभयारण्य में हुआ था, उन्हें पैगंबर मोहम्मद का दामाद एवं उनका असली उत्तराधिकारी माना जाता है. वह बड़े साहस के साथ हर वक्त उनके साथ खड़े रहे और इस्लामिक नींव को मजबूत बनाने की लड़ाई लड़ी. उन्हें अल-मुर्तजा, अमीर-अल-मोमिनीन, अबू तुराब, असद अल्लाह आदि नामों से भी जाना जाता है.

हजरत अली जयंती पर सेलिब्रेशन

पैगंबर मुहम्मद के निधन के पश्चात मुसलमान समुदाय दो वर्गों में बंट गया. जिसने अबु बकर को अपना नेता माना वे सुन्नी मुसलमान, और हजरत अली को अपना नेता मानने वाले मुस्लिम शिया मुसलमान कहलाये गये. हजरत अली सौहार्द एवं भाईचारे के प्रतीक माने जाते थे. इसलिए उनकी जयंती दुनिया भर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जाती है. इस दिन मस्जिदों एवं इमामबाड़ों को सजाते हैं, यहां धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जुलूस निकाली जाती है. लोग अपने घरों की भी साफ-सफाई करते हैं और उसे डेकोरेट करते हैं. घरों में दावतों का आयोजन किया जाता है, जिसमें दोस्त एवं परिजन शिरकत करते हैं. एक दूसरे को हजरत अली के विचारों का आदान-प्रदान करते हैं.

निधन

हज़रत अली सन 40 हिजरी में रमज़ान की 18 तारीख को रोज़ा इफ्तार कर अगली सुबह नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद में गये तो वहां सजदे में जाते समय ‘अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम’ नामक व्यक्ति ने उनके सिर पर ज़हर लगी तलवार से जानलेवा हमला कर दिया. इस घटना के दो दिन बाद ही रमजान की 21वीं तारीख को हजरत अली की मौत हो गयी.