हरेला एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जो उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों और हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है. हरेला त्यौहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है. हिंदू चंद्र-सौर कैलेंडर के अनुसार, हरेला त्योहार श्रावण-मास के पहले दिन मनाया जाता है, जिसे श्रावण-संक्रांति या कर्क-संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है. यह त्योहार मानसून के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है और देवताओं की पूजा के लिए समर्पित है. जहां लोग अच्छी फसल और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं. हरेला बुआई चक्र की शुरुआत का प्रतीक है और इसलिए इसे बहुत शुभ माना जाता है. इस वर्ष, हरेला सोमवार, 17 जुलाई 2023 को मनाया जा रहा है.
इतिहास
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्योहार की उत्पत्ति का पता नव-पाषाण प्रजनन त्योहारों से लगाया जा सकता है, जिन्हें भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह के धार्मिक उत्सव के रूप में चिह्नित किया गया था. हरेला का अर्थ है 'हरियाली का दिन' जो हरी फसलों या हरियाली का प्रतीक है. यह त्यौहार क्षेत्र के कृषक समुदायों में बहुत महत्व रखता है. गढ़वाल क्षेत्र में हरेला पर्व के दिन व्यक्तिगत रूप से अथवा समुदाय द्वारा पौधारोपण करने की परम्परा है. हरेला के त्यौहार को कांगड़ा, शिमला और सिरमौर क्षेत्रों में हरियाली/रिहयाली, हिमाचल प्रदेश के जुब्बल और किन्नौर क्षेत्रों में दखरैन कहा जाता है.
महत्व
विशेषकर उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में हरेला का बहुत महत्व है. यह त्यौहार नई फसल और बरसात के मौसम का प्रतीक है. हरेला बोने के लिए विभिन्न प्रकार के बीज जैसे गेहूं, जौ, धान, मक्का या सरसों को एक टोकरी में बोया जाता है और 11 दिनों तक उगने के लिए रखा जाता है. फिर कर्क संक्रांति के दिन हरेला काटा जाता है. इसके बाद लोग भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं. हरेला के अंतिम दिन, अंकुरित जौ को उखाड़ा जाता है और परिवार के सदस्यों और दोस्तों के बीच वितरित किया जाता है. लोग हरेला को एक फलदायी कृषि मौसम के लिए सद्भावना और आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में मनाते हैं. इस उत्सव में सांस्कृतिक प्रदर्शन, लोक गीत गाना और पारंपरिक नृत्य भी शामिल होते हैं.