Ganeshotsav 2019: अष्टविनायकों में भगवान गणेश का एक स्वरूप है विघ्नेश्वर विनायक, जहां दर्शन मात्र से दूर होते हैं जीवन के सभी विघ्न
विघ्नेश्वर अष्टविनायक, ओझर (Photo Credits: Facebook)

Ganeshotsav: गणेशोत्सव (Ganeshotsav) के दौरान भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती (Mata Parvati) के लाड़ले पुत्र गणेश जी (Lord Ganesha) की आराधना देशभर में की जा रही है. गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) से लेकर अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) तक चलने वाले दस दिवसीय गणेशोत्सव के दौरान भक्त अपने आराध्य गणेश के विभिन्न रूपों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं. बात करें महाराष्ट्र के अष्टविनायक की तो हर कोई यह कोशिश करता है कि गणेशोत्सव के दौरान वो बाप्पा के मनमोहक और इच्छाओं की पूर्ति करने वाले अष्टविनायक स्वरूप के दर्शन कर सकें, लेकिन बहुत कम लोगों ही दर्शन का मौका मिल पाता है. अगर आप अष्टविनायक के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं तो उनकी महिमा के बारे में जरूर जान लीजिए. इसी कड़ी में गणेश जी के अष्टविनायक स्वरूपों में से आज हम आपको बताने जा रहे हैं विघ्नेश्वर विनायक स्वरूप की महिमा.

विघ्नेश्वर अष्टविनायक का मंदिर (Vighneshwar Ashtavinayak Temple) महाराष्ट्र के पुणे जिले (Pune) में कुकड़ी नदी के किनारे ओझर (Ozhar) नामक गांव में स्थित है. अष्टविनायक (Ashtavinayak) के अन्य मंदिरों की तरह विघ्नेश्वर मंदिर भी पूर्वीमुखी है और यहां विराजमान गणेश जी की प्रतिमा पूर्वमुखी है. गणेश जी की प्रतिमा सिंदूर और तेल से संलेपित हैं. उनकी आंखों और नाभि में हीरे जड़े हुए हैं. विघ्नेश्वर अष्टविनायक का यह मंदिर पुणे-नासिक रोड़ पर करीब 85 किलोमीटर दूरी पर ओझर गांव में स्थित है. इस मंदिर को विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहर नामों से भी जाना जाता है. यह भी पढ़ें: Ganeshotsav 2019: अष्टविनायकों में भगवान गणेश का एक स्वरूप है बल्लालेश्वर, पाली स्थित बाप्पा के इस मंदिर में भक्तों की हर मुराद होती है पूरी

गणेश जी का नाम कैसे पड़ा विघ्नेश्वर?

इस मंदिर से जुड़ी प्रचलित मान्यता के अनुसार, विघ्नेश्वर नामक एक दैत्य का वध करने की वजह से ही यहां विराजमान गणेश जी का नाम विघ्नेश्वर विनायक पड़ा. कहा जाता है कि देवराज इंद्र ने राजा अभिनंदन में विघ्न डालने के लिए एक विघनसुर नामक दावन का निर्माण किया था. उस दानव ने सभी वैदिक और धार्मिक कृत्यों को नष्ट कर दिया, तब भगवान गणेश ने भक्तों की प्रार्थना पूर्ण करने के लिए उसे हराया.

गणेश जी से हारने के बाद दानव ने गणेश जी से दया की प्रार्थना की और उन्होंने उसकी प्रार्थना मान ली, लेकिन गणेश जी ने उसके सामने एक शर्त रखी कि जहां भी गणेश जी की पूजा हो रही होगी, वहां विघनसुर नहीं जाएगा. दानव ने उनकी शर्त मान ली और गणेश जी से प्रार्थना की कि गणेश जी के नाम के साथ उसका नाम भी जोड़ा जाए, तभी से गणपति का नाम विघ्नहर पड़ा और ओझर के गणेशजी श्री विघ्नेश्वर विनायक के नाम से प्रचलित हो गए. यह भी पढ़ें: Ganeshotsav 2019: अष्टविनायकों में से एक है सिद्धटेक का सिद्धिविनायक मंदिर, सूंड के आधार पर पड़ा था यहां विराजमान बाप्पा का नाम

रिद्धि-सिद्धि के साथ विराजमान हैं गणपति

मंदिर के चारों तरफ पत्थर की ऊंची दीवारें है और उसका शिखर सोने से बना हुआ है. मंदिर का बाहरी कक्ष 20 फुट लंबा है और अंदर का कक्ष 10 फुट लंबा है. मंदिर में स्थापित मूर्ति की सूंड बाईं ओर है और उनकी आंखों व नाभि में हीरे जड़े हुए हैं. इस मंदिर में भगवान गणेश जी रिद्धि-सिद्धि के साथ विराजमान हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर का शीर्ष सोने का बना है, जिसे साल 1785 के आसपास चिमाजी अप्पा ने पुर्तगाली शासकों को हराने के बाद बनवाया था.