Father's Day 2019: मां से कम नहीं होती है एक पिता की भूमिका, फिर उनके प्यार और त्याग की अनदेखी क्यों?
क्या कभी किसी ने पिता के त्याग, वात्सल्य और समर्पण के कसीदे पढ़े? उनकी प्रशंसा में दो शब्द लिखे? शायद नहीं या फिर बहुत कम. आज तक माँ पर न जाने कितनी कहावतें, मुहावरें और लोकोक्तियां आदि रची और गढ़ी गईं, पर पिता के बारे में बामुश्किल कुछ पढ़ने अथवा देखने को मिलता है.
Father's Day 2019: गर कहीं जन्नत है तो मां (Mother) के कदमों में ही है.. मां के आंचल में सारी दुनिया है… मां ममता और त्याग की मूर्ति है...’ मां शब्द के साथ ऐसे अनगिनत स्लोगन्स पढ़ने अथवा सुनने को मिलेंगे, लेकिन क्या कभी किसी ने पिता के त्याग, वात्सल्य और समर्पण के कसीदे पढ़े? उनकी प्रशंसा में दो शब्द लिखे? शायद नहीं या फिर बहुत कम. आज तक मां पर न जाने कितनी कहावतें, मुहावरें और लोकोक्तियां आदि रची और गढ़ी गईं, पर पिता (Father) के बारे में बामुश्किल कुछ पढ़ने अथवा देखने को मिलता है, लेकिन इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पिता के त्याग और दिशा निर्देशन में कई शख्सियतें जमीन से शिखर तक पहुंचीं हैं. आज ‘फादर्स डे’ (Father's Day 2019) पर हम कुछ ऐसे ही पिता का उल्लेख करेंगे जिनके त्याग, समर्पण और सहारा पाकर उसकी संतान आम से खास बनीं.
कहावत लोकप्रिय है कि माता-पिता का गृहस्थ जीवन सायकिल के दो पहियों के समान होते हैं. दोनों के संतुलन पर ही उनकी गृहस्थ फलती-फूलती है. उसी तरह बच्चों की परवरिश में भी मां से कमतर भूमिका पिता की नहीं होती. यह भी पढ़े: Father's Day 2019 Wishes And Messages: फादर्स डे के मौके पर पिता से व्यक्त करें अपनी भावनाएं, उन्हें भेजें ये शानदार WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, GIF Images और SMS
पंडित नेहरू-इंदिरा प्रियदर्शिनी
देश की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की पहचान उनके मजबूत मनोबल एवं द्दढ़निश्चयी व्यक्तित्व की रही है. जिसके सहारे ही वह देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचीं. अलबत्ता वे अक्सर कहती थीं कि उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया, उसकी शिक्षा उन्हें उनके पिता पं. जवाहर लाल नेहरू जी से मिली थी. इस संदर्भ में उन्होंने कभी भी मां कमला नेहरू का नाम नहीं लिया. आजादी से पूर्व जब कभी नेहरू और किशोरवय (प्रियदर्शिनी) इंदिरा किन्हीं वजहों से एक दूसरे से दूर होते थे, तब नेहरू जी अक्सर खत के माध्यम से बेटी इंदिरा को अपनी भावनाओं से परिचित करवाते थे. ऐसे तमाम पत्रों में एक पत्र का अंश यहां प्रस्तुत है.
“जब तुम मेरे साथ रहती हो तो अक्सर तमाम सवाल करती रहती और मैं उनका जवाब देने की कोशिश करता, लेकिन आज जब तुम मसूरी में हो और मैं इलाहाबाद में, हम दोनों रूबरू बातचीत नहीं कर सकते. इसलिए मैंने सोचा है कि कभी-कभी तुम्हें इस दुनिया की और उन छोटे-बड़े देशों की छोटी-छोटी कथाएँ लिखूंगा. तुमने हिंदुस्तान और इंग्लैंड का इतिहास में पढ़ा है. इंग्लैंड एक छोटा-सा टापू है और हिंदुस्तान एक बहुत बड़ा देश है, फिर भी भारत दुनिया का छोटा-सा हिस्सा कहलाता है. अगर तुम्हें इस दुनिया से परिचित होना है, तो तुम्हें सब देशों और उन सब जातियों का जो इसमें बसी हुई हैं, उनसे भी परिचित होना होगा, केवल उस ‘एक छोटे’ देश का नहीं, जहां तुम पैदा हुई हो.”
प्रकाश पादुकोण-दीपिका पादुकोण
पिता-पुत्री के बीच अक्सर इस तरह के प्रेरक और भावनात्मक रिश्ते देखने-सुनने को मिलते हैं. कुछ समय पूर्व एक अवॉर्ड समारोह में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने अपने पिता एवं पहले ऑल इंडिया इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियन प्रकाश पादुकोण के संदेश को जब दर्शकों के सामने पढ़कर सुनाया तो दर्शक ही नहीं बल्कि सेलीब्रेटीज की भी आंखे नम हो गयी थीं. दीपिका ने जो पढ़ा वह कुछ इस तरह था, “चैंपियन तो कई होते हैं, लेकिन हर चैंपियन के पास अपनी सोच नहीं होती, जज़्बात तो होते हैं लेकिन उन भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं होते.”
प्रकाश पादुकोण की पुत्रियों को अच्छी सीख वाली एक पंक्ति यह भी थी कि उन्होंने ज़िंदगी से कभी कोई शिकायत नहीं की. उनके समय में बैडमिंटन के लिए कोई सुविधा नहीं थी. वह कैनरा बैंक के एक मैरेज हाल में अभ्यास करते. वो हॉल बहुत मुश्किल से खाली नहीं हो पाता था, लेकिन ज्यों ही मौका मिलता, वे दिन-रात भूलकर अभ्यास करते.
प्रकाश ने दोनों बेटियों के नाम भी एक संदेश लिखा था, -“दृढ़ता, मेहनत, संकल्प और जुनून का कोई विकल्प नहीं होता. अगर आपको अपने काम से प्यार है तो इससे बड़ी बात कुछ नहीं हो सकती. न पुरस्कार, न पैसा और न ही टेलीविजन और समाचार पत्रों में अपना चेहरा देखना.”
डोराई राज-मिताली राज
यह सच है कि नौ माह कोख में रखकर जो मां संतान को पालती है, वह इतना आसान नहीं होता. इसके लिए उसे ना जाने कितनी पीड़ा उठानी पड़ती है, लेकिन क्या कोख से पैदा कर देना ही किसी भी संतान के लिए उसकी जिंदगी का पर्याय बन जाता है? अलबत्ता एक पिता ही है जिसकी इच्छा होती है कि उसकी संतान वह करे जो वह स्वयं नहीं कर सका अथवा कुछ ऐसा करे कि पिता का सर गर्व से ऊंचा हो जाये. भारतीय महिला क्रिकेट जगत में पहला दोहरा शतक बनाने वाली मिताली राज एवं उनके पिता के बीच कुछ ऐसे ही रिश्ते थे. मिताली ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनकी इच्छा क्लासिकल डांसर बनने की थी, जबकि इंडियन एयरफोर्स में विमान चालक की नौकरी करने वाले पिता डोराई राज जो युवावस्था में बेहतरीन क्रिकेटर भी थे,उन्होंने मिताली के भीतर भी एक बेहतरीन क्रिकेटर को महसूस कर लिया था. उन्होंने मिताली के डांस के शौक को पूरा करने के लिए एक गुरु नियुक्त किया, साथ ही वह उसे क्रिकेट खेलने के लिए भी प्रोत्साहित करते थे. मिताली ने बताया था कि किशोरावस्था में वह काफी आलसी थीं, खुद को बस डांसर तक सीमित रखना चाहती थीं. अंततः उन्हें क्रिकेटर बनाने के लिए पिता ने अपनी नौकरी छोड़ दी. अपने खर्चों में कटौती किया, ताकि मिताली को क्रिकेट खेलने के लिए यात्रा खर्च अथवा दूसरे खर्चों को वह वहन कर सकें. मिताली मानती हैं कि आज वे जो कुछ भी हैं उसमें उनके पिता की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी. यह भी पढ़ें: Father's Day 2019 Gift Ideas: फादर्स डे पर अपने पिता को दें प्यार भरा सरप्राइज, इस दिन को खास बना देंगे ये शानदार गिफ्ट आइडियाज
देखा जाये तो हर माता-पिता की यही ख्वाहिश होती है कि उनकी संतान सफलता की उन ऊंचाईयों को छूए कि वह सर उठाकर कह सकें ‘हां मैं उसका पिता हूं.’ इसीलिए उसकी हर संभव यही कोशिश होती है कि वह अपनी संतान को ऊंची से ऊंची शिक्षा दें, अच्छी परवरिश एवं बेहतर खान-पान दे, भले ही इसके लिए उसे अतिरिक्त कार्य क्यों ना करना पड़े, अपने शौक पर पाबंदियां लगानी पड़े, अपनी छोटी-मोटी बीमारियों को नजरंदाज करना पड़े. यह होता है एक पिता का दायित्व अपनी संतान के प्रति. ऐसे में क्या उसका भी हक नहीं बनता कि कोई उसके भी त्याग, समर्पण आदि का उल्लेख करे. किसी कवि ने ठीक ही लिखा है...
पापा मेरी नन्ही दुनिया, तुमसे मिल कर पली-बढ़ी
आज तेरी ये नन्ही बढ़कर, तुझसे इतनी दूर खड़ी
तुमने ही तो सिखलाया था, ये संसार तो छोटा है
तेरे पंखों में दम है तो, नील गगन भी छोटा है
कोई न हो जब साथ में तेरे, तू बिलकुल एकाकी है
मत घबराना बिटिया, तेरे साथ में पप्पा बाकी है
पीछे हटना, डरना-झुकना, तेरे लिए है नहीं बना
आगे बढ़ कर सूरज छूना, तेरी आंख का है सपना.