
आश्विन मास में पड़ने वाले शारदीय नवरात्रि में नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करने के बाद 10वें दिन विजयादशमी यानी दशहरे का पर्व मनाया जाता है. इस पर्व को असत्य पर सत्य के विजय के तौर पर मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण से लंबा युद्ध किया था और युद्ध के 10वें दिन उन्होंने रावण का वध करके विजय प्राप्त की थी, इसलिए आज भी दशहरे के दिन जगह-जगह पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है. रावण दहन के बाद लोग एक-दूसरे से मिलकर विजयादशमी की शुभकामनाओं के साथ सोने की पत्तियां बांटते हैं.
विजयादशमी के दिन सोने की पत्तियों के आदान-प्रदान की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. इन पत्तियों को बिड़ी के पत्ते और शमी के पत्ते के नाम से भी जाना जाता है. आखिर क्यों दशहरे पर सोने की यानी शमी की पत्तियां दी जाती हैं, चलिए जानते हैं इससे जुड़ी मान्यताएं.
श्रीराम ने की थी इस वृक्ष की पूजा
मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले शमी वृक्ष के सामने शीश झुकाकर जीत के लिए प्रार्थना की थी. उन्होंने इन पत्तियों को स्पर्श किया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें रावण पर विजय मिली. इसलिए सदियों से यह मान्यता चली आ रही है कि विजयादशमी के लिए सोने के प्रतीक के तौर पर शमी की पत्तियों का आदान-प्रदान करने से सुख, समृद्धि और विजय की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें: Dussehra 2018: इन Messages के जरिए दीजिए अपने दोस्तों को विजयादशमी की शुभकामनाएं