Chhath Puja 2023 Greetings: शुभ छठ पूजा! इन मनमोहक WhatsApp Stickers, HD Images, Wallpapers और Photo Wishes के जरिए दें बधाई
छठ पूजा 2023 (Photo Credits: File Image)

Chhath Puja 2023 Greetings in Hindi: जगमग दीयों के उत्सव दिवाली (Diwali) के बाद हर तरफ छठ की छटा देखने को मिलती है. आस्था के महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja) को बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और नेपाल के तराई वाले क्षेत्रों में मनाया जाता है. इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर सप्तमी तिथि तक छठ पूजा के महापर्व को चार दिनों तक मनाया जाता है, जबकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी इस पर्व का सबसे अहम दिन होता है. इस दिन व्रती किसी पवित्र नदी या तालाब के जल में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं, जिसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है, जबकि इस पर्व के आखिरी यानी चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसे ऊषा अर्घ्य कहा जाता है.

छठ पूजा महापर्व के तीसरे दिन नदियों और तालाबों पर जनसैलाब उमड़ता है. इस दौरान जिनका व्रत होता है वो डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी संतान और घर-परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं. साथ ही शुभकामना संदेशों का आदान-प्रदान होता है. ऐसे में आप भी इस खास अवसर पर इन मनमोहक ग्रीटिंग्स, वॉट्सऐप स्टिकर्स, एचडी इमेजेस, वॉलपेपर्स और फोटो विशेज के जरिए शुभ छठ पूजा कह सकते हैं.

1- छठ पूजा की शुभकामनाएं

छठ पूजा 2023 (Photo Credits: File Image)

2- छठ पूजा जी हार्दिक बधाई

छठ पूजा 2023 (Photo Credits: File Image)

3- शुभ छठ पूजा

छठ पूजा 2023 (Photo Credits: File Image)

4- हैप्पी छठ पूजा

छठ पूजा 2023 (Photo Credits: File Image)

5- छठ पूजा 2023

छठ पूजा 2023 (Photo Credits: File Image)

गौरतलब है कि नहाय-खाय के साथ छठ पूजा का महापर्व शुरु हो जाता है, इसके दूसरे दिन खरना होता है, जबकि तीसरे दिन शाम को सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है और चौथे दिन ऊषा अर्घ्य के बाद इस व्रत का पारण किया जाता है. छठ पूजा के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में अनूठी छठा देखने को मिलती है. ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव और छठ मैया की उपासना से भक्तों के जीवन में उत्तम आरोग्य, सुख-समृद्धि, धन-धान्य और खुशहाली का आगमन होता है. बताया जाता है कि त्रेता युग से ही इस व्रत को करने की पंरपरा निभाई जा रही है.