Chaitra Navratri 2019: मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की आराधना का पर्व है नवरात्रि, जानिए उन औषधियों के बारे में जिनमें बसती हैं ये 9 शक्तियां

भगवान ब्रह्माजी के ‘दुर्गा कवच’ में उल्लेखित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में विराजमान हैं. ये नवदुर्गा वास्तव में दिव्य गुणोंवाली 9 औषधियां हैं. ये औषधियां जीव-जंतुओं के हर तरह के रोगों को दूर करने और उन्हें रोगों से बचाए रखने में मजबूत कवच की तरह कार्य करती हैं.

मां दुर्गा के नौ स्वरूप (Photo Credits: Instagram, mehul_1609)

जीवन को खुशहाल, स्वस्थ एवं रिश्तों को मजबूत बनाने में हमारे पर्वों का महत्वपूर्ण योगदान है. हर पर्व का अपना आध्यात्मिक एवं सामाजिक महत्व होता है, जो सेहत के लिए विशेष रूप से प्रभावशाली होता है. नवरात्रि पर्व पर हम नौ दिन उपवास रखकर शक्ति की आराधना करते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि हम मां दुर्गा के जिन नौ स्वरुपों की पूजा करते हैं, वे सभी नौ दुर्गा औषधि स्वरूपा भी हैं. नौ दुर्गा के नौ रूप औषधियों के रूप में भी कार्य करते हैं, इसलिए चैत्र नवरात्रि सेहत के रूप में भी जानी जाती है. सर्वप्रथम इसका उल्लेख एवं दर्शन मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति में देखा गया.

गौरतलब है कि भगवान ब्रह्माजी के ‘दुर्गा कवच’ में उल्लेखित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में विराजमान हैं. ये नवदुर्गा वास्तव में दिव्य गुणोंवाली 9 औषधियां हैं. ये औषधियां जीव-जंतुओं के हर तरह के रोगों को दूर करने और उन्हें रोगों से बचाए रखने में मजबूत कवच की तरह कार्य करती हैं. चलिए उन औषधियों के बारे में विस्तार से जानते है, जिनमें मां दुर्गा के नौ रूप समाहित हैं.

 शैलपुत्री

पत्थर, मिट्टी, जल, वायु, अग्नि, प्रकाश एवं आकाश सभी शैलपुत्री का प्रथम रूप है यानी शैलपुत्री के पूजन का आशय है जड़ एवं पदार्थों में ईश्वर को महसूस करना. शैलपुत्री को हिमावती हरड़ भी कहते हैं. यह आयुर्वेद की मुख्य औषधि है, जो सात प्रकार (पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी) की होती है.

 ब्रह्मचारिणी

हरिति ब्रह्मचारिणी ब्राह्मी, आयु एवं याददाश्त को बढ़ाकर रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है. इसे सरस्वती भी कहते हैं. यह पूर्ण रूपेण औषधिय पौधा है. यह ह्रदय एवं नाड़ियों के लिए पौष्टिक होता है. कब्ज को दूर करता है. इसके पत्ते के रस में पेट्रोल मिलाकर लगाने से गठिया की बीमारी दूर हो जाती है.  यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2019: 6 अप्रैल से शुरू हो रही है चैत्र नवरात्रि, जानें किस दिन करनी चाहिए किस शक्ति की पूजा

चंद्रघंटा

भगवती के इस तीसरे रूप में जीवों में वाणी प्रकट होती है. चंद्रघंटा को चंद्रसूर भी कहते हैं. यह धनिये की तरह का पौधा होता है. यह ह्रदय रोग को ठीक करता है और मोटापा दूर करता है. संबंधित रोगियों को मां चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए.

मां कुष्मांडा

यह अंडों को धारण करनेवाली, स्त्री और पुरुष की गर्भधारण करनेवाली शक्ति है, जो वास्तव में देवी की ही शक्ति है. इसे समस्त प्राणी में देखा जा सकता है. पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक, रक्त-विकार. पेट विकार एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों को मां कुष्माण्डा की आराधना अवश्य करनी चाहिए. ऐसे व्यक्ति को पेठा से बनी हुए खाद्य-पदार्थ अवश्य इस्तेमाल करना चाहिए.

स्कन्दमाताः

स्कन्दमाता पुत्रवान एवं पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है. इनकी कृपा से अशिक्षित व अत्यंत गरीब भक्त भी ज्ञानी और धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है. स्कन्दमाता अलसी में विद्यमान हैं, जो वात, पित्त व कफ रोगों को दूर करनेवाली औषधि है. अलसी वातनाशक, पित्तनाशक तथा कफ निस्सारक भी होती है. यह चर्मरोगों, सूजन एवं दर्द निवारक तथा जलन मिटानेवाला होता है.

कात्यायनी

कात्यायनी भगवती के रूप में कन्या की माता-पिता ही होती हैं. देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका जैसे कई नामों से जाना जाता है. इन्हें मोइया भी कहते हैं. यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है.

कालरात्रि

यह माता भगवती का सातवां रूप है, जिसके अंतर्गत सभी जड़, चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं. जीवन के अंतिम पलों में सभी मनुष्यों को इस स्वरूप का अनुभव होता है. यह मस्तिष्क विकारों को हरती हैं. इन्हें महायोगिनी, महायोगीश्वरी भी कहा जाता है. यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं तथा सभी प्रकार के रोगों की नाशक, सर्वत्र विजय दिलाने वाली, मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2019: माता सती के 4 अज्ञात शक्तिपीठ, जिनको लेकर आज भी रहस्य है बरकरार

महागौरी

गौर वर्ण वाली यह माता भगवती का आठवां महागौरी का रूप है. ये ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक हैं, जिसे लंबी तपस्या एवं साधना से ही प्राप्त किया जा सकता है. महागौरी तुलसी भी कहलाती हैं. तुलसी सात प्रकार (सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र) की होती हैं, ये रक्त को साफ कर ह्रदय रोगों का नाश करती है.

सिद्धिदात्री

यह भगवती का नौवां स्वरूप है. इनकी साधना करके लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है. कहते हैं कि भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं. सिद्धिदात्री स्वरूप में ही नारायण शतावरी भी होता है. यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए अत्यंत उपयोगी है.

मां दुर्गा के ये नौ रूप सुख, शांति, ऐश्वर्य, निरोगी काया एवं भौतिक आर्थिक इच्छाओं को पूर्ण करने वाले होते हैं. मां के चरणों में शरणागत होकर हमें निरंतर नियमपूर्वक उपासना करनी चाहिए. इनका स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं.

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