Basava Jayanti 2023: कौन हैं बसवन्ना? उन्होंने लिंगायत समाज की स्थापना क्यों की? जानें मंत्री से समाज सुधारक बनने की गाथा!

विविधता में एकता वाले भारत में तमाम किस्म के पर्व एवं उत्सव मनाये जाते हैं. ऐसा ही एक उत्सव बसव जयंती है, जो दक्षिण भारत के कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना एवं आंध्रप्रदेश में लिंगायत समाज द्वारा पूरी श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया जाता है.

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विविधता में एकता वाले भारत में तमाम किस्म के पर्व एवं उत्सव मनाये जाते हैं. ऐसा ही एक उत्सव बसव जयंती है, जो दक्षिण भारत के कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना एवं आंध्रप्रदेश में लिंगायत समाज द्वारा पूरी श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया जाता है. बसव जयंती को बासवन्ना युग या बसवेश्वर युग भी कहते हैं. यह अमूमन वैशाख माह की तृतीया तिथि को पड़ता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष बसव जयंती 23 अप्रैल 2023, रविवार को मनाई जाएगी. बसव कौन थे? उनकी जयंती कब, क्यों और कैसे मनायी जाती है, आइये जानते हैं इस संदर्भ में विस्तार से.. यह भी पढ़ें: Shani Jayanti 2023: कब है शनि जयंती? साल में दो बार क्यों मनाई जाती है जयंती? जानें पूजा-विधि, मुहूर्त एवं महत्व!

बसव जयंती का महत्व!

बसव जयंती मूलतः हिंदू पर्व है, इसकी मान्यता को देखते हुए कर्नाटक राज्य में इस दिन राजकीय अवकाश रहता है, क्योंकि कर्नाटक में इसके अनुयायियों की बड़ी संख्या है. कर्नाटक में लगभग सभी शहरों एवं गांवों में इस दिन को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. इस दिन भक्त भारी संख्या में भगवान बसवेश्वर के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते हैं. दक्षिण के किसानों में इस पर्व का विशेष महत्व है. कर्नाटक के अलावा महाराष्ट्र, एवं आंध्र प्रदेश में भी लिंगायत समितियां इस पर्व को बड़े उत्साह के साथ सेलिब्रेट करती हैं. बसव जयंती के अवसर पर लोग एक दूसरे को मिठाइयां एवं उपहार आदि के साथ शुभकामनाएं देते हैं, तथा बसवन्ना की शिक्षाओं का व्याख्यान करते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि कर्नाटक चुनाव में लिंगायत समाज की बड़ी भूमिका होती है.

कौन हैं बासवन्ना?

मान्यतानुसार बासवन्ना का जन्म 1105 ईस्वी में बागेवाड़ी (कर्नाटक) में कम्मे ब्राह्मण मदारसा और मदलाम्बिके के परिवार में हुआ था, जो अराध्य ब्राह्मण की श्रेणी में गिने जाते है. भगवान शिव की भक्ति करने वाले कम्मे ब्राह्मण मूलतः शैव संप्रदाय के होते हैं. इनमें से कुछ वीरशैव होते हैं, यानी घर का हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत शिवलिंग की पूजा करता है. ये लोग अपने शरीर के किसी भी हिस्से पर शिवलिंग तस्वीरों अथवा माला आदि के रूप धारण नहीं करते हैं. अमूमन शिवलिंग पूजा-गृह में स्थापित होता है.

हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्में बासव (बासवन्ना) ने बचपन से ही अपने माता-पिता को धर्म के नाम पर अंधविश्वास एवं कुरीतियों में लिप्त देखा. उन्हें यह देख अच्छा नहीं लगता था कि धर्म के नाम पर शिक्षित ब्राह्मण भी वही काम करते हैं, जो अशिक्षित लोग करते हैं. इन्हीं कुरीतियों एवं अंधविश्वास को मिटाने के लिए उन्होंने लिंगायत संप्रदाय की स्थापना की. आज उनके लाखों अनुयायी हैं.

लिंगायत धर्म से जुड़ने की 7 शर्तें!

बासव ने अपने अनुयायियों से कहा कि लिंगायत धर्म का अनुसरण कोई भी कर सकता है, लेकिन लिंगायत धर्म से जुड़ने से पूर्व उन्हें निम्न सात शर्तों को स्वीकार करना होगा.

* चोरी नहीं करना

* हत्या नहीं करना

* झूठ नहीं बोलना

* क्रोध से दूर रहना

* एक-दूसरे के साथ सहयोग करना

* दुख का सामना करना

* अहंकार से दूर रहना

मंत्री से समाज सुधारक तक का सफर!

गुरुकुल से शिक्षा अर्जित करने के बाद बसव राजा बिज्जल के दरबार में काम करने लगे. अपने आकर्षक व्यक्तित्व एवं प्रतिभा से वह सभी को आकर्षित कर लेते थे. उन्होंने पाया कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में बंटा समाज व्यक्ति को निकम्मा और भ्रष्ट बना देगा. उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया. उस समय समाज में स्त्रियों की हालत काफी दयनीय थी.

उन्हें घर की चौखट लांघने, शिक्षा अर्जित करने, एवं स्वतंत्र जीवन जीने पर पाबंदी थी, उन्होंने इसका विरोध करते हुए स्त्री को बराबर का दर्जा दिये जाने की वकालत की. इसके साथ ही उन्होंने समाज में फैले धार्मिक आडंबरों, और अंधविश्वासों का खुलकर विरोध किया. कुछ लोगों ने बासव की नीतियों की आलोचना की तो कुछ ने समर्थन किया. उन्होंने लिंगायत संप्रदाय की स्थापना करते हुए स्पष्ट किया कि इसमें वह कोई भी बुराई नहीं होगी जो हिंदू समाज में व्याप्त है. बसव के निधन के स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, मान्यता है कि बीजापुर (कर्नाटक) के बागवाड़ी में 1105 ईस्वी में उऩका निधन हुआ था.

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