Bada Mangal 2021: लखनऊ में साम्प्रदायिक सौहार्द का अनूठा पर्व! जानें मुस्लिम नवाब ने क्यों बनवाया हनुमान मंदिर! जब नवाबी कानून में बंदरों की हत्या ‘गुनाह’ था!
मंदिर के पुजारी के अनुसार, आज जहां पॉलिटेक्निक है, दो-ढाई सौ साल पहले वहां एक टिला होता था, जिसका नाम हनुमान टिला था. मुगलकाल में उस टिले का नाम इस्लामबाड़ी कर दिया गया. उन दिनों बड़ी मान्यता थी कि इस्लामबाड़ी टिले पर मन्नत मांगने पर मन्नत अवश्य पूरी होती है. नवाब वाजिद अली शाह की दादी बेगम आलिया और उनके पति शुजाउद्दौला को कोई संतान नहीं थी.
नवाबों का शहर लखनऊ (Lucknow) यूं तो मुगलई खानपान और चिकन के कपड़ों (Chicken clothes) के लिए मशहूर है. लेकिन प्रत्येक वर्तमान में पूरे शहर में ‘बड़ा मंगल’ (Bada Mangal) पर्व की धूम मची है. वस्तुतः ज्येष्ठ मास (Jyestha Maas) के पहले मंगलवार से अंतिम मंगलवार तक शहर के हर हनुमान मंदिरों (Hanuman Temples) में बड़ी धूमधाम से यह पर्व मनाया जाता है. इस दरम्यान शहर के लगभग सभी 9 हजार हनुमान मंदिरों को फूलों से अलंकृत किया जाता है. भारी तादात में हनुमान-भक्त अपने ईष्ट देव का दर्शन कर कृतार्थ होते हैं. ज्येष्ठ मास के सभी मंगलवारों को शहर भर में भंडारे चलते हैं, जहां समाज के हर तबकों को गरमागरम पूरी-कचौड़ी, सब्जी, खिचड़ी, हलवा, बूंदी और शरबत इत्यादि बांटे जाते हैं. इस मेले की सबसे बड़ी खासियत यह है कि हनुमान भक्तों में हिंदू (Hindu) ही नहीं, बल्कि मुस्लिम (Muslim) समाज के लोग भी शिरकत करते हैं. भंडारे के आयोजन से लेकर दर्शन तक हर जगह उनकी खासी उपस्थिति होती है. साम्प्रदायिक सद्भावना का ऐसा उदाहरण कम ही देखने को मिलता है. इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है, कि ‘बड़ा मंगल’ पर्व की शुरुआत एक मुस्लिम नवाब सआदत अली खान (Nawab Saadat Ali Khan) ने करीब 229 साल पहले शुरु किया था. आइये जानें कैसे हुई शुरुआत बड़े मंगल के आयोजन की. Vindhyavasini Pooja 2021: कौन हैं मां विंध्यवासिनी? जहां हर सिद्धियां होती हैं पूरी! जानें क्या है इनका महात्म्य एवं पूजा विधि? और क्यों कहते हैं इन्हें महिषासुर मर्दिनी?
मंदिर का इतिहास
मंदिर के पुजारी के अनुसार, आज जहां पॉलिटेक्निक है, दो-ढाई सौ साल पहले वहां एक टिला होता था, जिसका नाम हनुमान टिला था. मुगलकाल में उस टिले का नाम इस्लामबाड़ी कर दिया गया. उन दिनों बड़ी मान्यता थी कि इस्लामबाड़ी टिले पर मन्नत मांगने पर मन्नत अवश्य पूरी होती है. नवाब वाजिद अली शाह की दादी बेगम आलिया और उनके पति शुजाउद्दौला को कोई संतान नहीं थी. किसी के कहने पर वह इस्लाम बाड़ी टिले पर गईं और मन्नत मांगकर वापस आ गईं. शीघ्र ही वे गर्भवती हो गईं. एक रात उन्होंने सपना देखा कि उनका गर्भस्थ शिशु कह रहा है कि टिले की खुदाई करवाओ. वहां जो विग्रह मिलेगा, उसे मंदिर बनवाकर स्थापित करवाओ. बेगम के कहने पर खुदाई हुई तो उसमें से हनुमान जी का विग्रह मिला. नवाब और बेगम का हिंदू धर्म के प्रति आस्था बढ गयी. उन लोगों ने वहां मंदिर बनवाया. इधर बेगम को पुत्र पैदा हुआ. जब वह तीन साल का था, उसकी तबीयत काफी बिगड़ गई. जब सारे उपाय बेकार हो गये, तब उसी मंदिर के महंत ने कहा कि बच्चे को मंदिर में छोड़ जाओ. सुबह आकर ले जाना. निराश बेगम के पास कोई और रास्ता नहीं था. उसने बच्चे को वहीं छोड़ दिया. अगली सुबह नवाब अपनी बेगम के साथ वापस आया तो देखा बच्चा स्वस्थ होकर खेल रहा है. नवाब ने खुश होकर पुजारी से कहा आप जो ईनाम मांगें मैं दूंगा. महंत ने कहा, आप ज्येष्ठ मंगलवार को यहां ऐसा आयोजन करवाइये कि भक्त इस मंदिर में आयें. उन दिनों ज्येष्ठ का महीना चल रहा था. अगले मंगलवार के दिन नवाब ने वहां बहुत बड़े मेले का आयोजन करवाया और सभी के लिए भंडारा लगवाया. उसे 'बड़ा मंगल' का नाम दिया गया.
नवाबी कानून में बंदरों को मारना अपराध माना जाता था
धीरे-धीरे बड़ा मंगल की लोकप्रियता बढ़ने लगी और पूरे लखनऊ में इसका आयोजन होने लगा. ज्येष्ठ माह के मंगलवार को यह मेला केवल लखनऊ और आसपास के इलाकों में ही दिखता है. इसमें लखनऊ की मिली-जुली संस्कृति दिखती है. अवध सल्तनत के कौमी निशान के तौर पर इस मंदिर के शिखर पर दूज का चांद आज भी बना हुआ है. बड़े मंगल के अवसर पर नवाब वाजिद अली शाह जहां भंडारे का आयोजन करवाते थे, वहीं बेगमों की तरफ से बंदरिया बाग में बंदरों को चना खिलाया जाता था. प्याऊ और शर्बत की व्यवस्था होती थी. कहते हैं कि कालांतर में भी अवध के नवाबों में हनुमानजी के प्रति आस्था रही. नवाबी काल में बंदर की हत्या पर पूर्णतया प्रतिबंध था. किसी ने गलती से भी बंदरों पर गोली चलाई तो उसे कड़ी सजा भुगतनी पड़ती थी.